दिल्ली चुनाव बनाम ‘महिला सम्मान योजना’

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई है। 5 फरवरी तक सभी चुनावी पार्टियां बड़े-बड़े वादों और बड़ी-बड़ी योजनाओं के साथ मैदान में उतर कर शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं।

आम आदमी पार्टी ने फ्री शिक्षा, बीस हजार लीटर फ्री पानी, 200 यूनिट बिजली फ्री, साठ साल से अधिक उम्र वालों को फ्री इलाज, मन्दिर के पुजारियों ग्रंथियों को 18,000 रुपये मासिक मानदेय, बुर्जुगों को फ्री तीर्थयात्रा, महिला सम्मान योजना के अर्न्तगत 18 साल से ऊपर की महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये, किरायेदारों को फ्री बिजली के अलावा और बड़ी-बड़ी घोषणाएं की है।

आम आदमी पार्टी की तर्ज पर वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस और बीजेपी भी बढ़-चढ़ कर फ्री देने की घोषणा कर रही है। कांग्रेस ने हर महीने फ्री राशन, 500 रुपये में गैस सिलेण्डर, 300 यूनिट तक की फ्री बिजली, महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये, हर नागरिक को 25 लाख रू. तक का फ्री इलाज, बेरोजगार युवाओं को हर महीने 8500 रुपये, व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण देने के अलावा कई बड़ी घोषणाएं की।

केन्द्र की सत्ता में बैठी भाजपा ने भी ‘वादों’ (जुमलों) की झड़ी लगा दी है। गरीब महिलाओं को 500 रुपये में घरेलू सिलेण्डर, होली दिपावली में एक-एक सिलेण्डर फ्री, गर्भवती महिलाओं को 21000 हजार रुपये और 6 पोषण किट, दिल्ली में आयुष्मान योजना के अर्न्तगत 10 लाख तक का इलाज, महिला समृद्धि योजना के अर्न्तगत हर महीने महिलाओं को 2500 रुपये, झुग्गियों में अटल कैंटीन के तहत 5 रुपये में पौष्टिक भोजन व वरिष्ठ नागरिकों को 3000 रुपये पेंशन देने के अलावा और भी कई बड़े-बड़े वादे किए है।

इस बार के चुनावों में सभी पार्टियों की इस तरह की घोषणाओं से ऐसा लगता है कि चुनावी मुद्दों के समीकरण बदल चुके है।

2019 के चुनावों में जब आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली पानी और बसों में मुफ्त यात्रा की योजना को लागू किया था, तब विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ताओं की ओर से प्रचार किया जाने लगा था कि इस तरह सबकुछ फ्री कर देने से देश घाटे में चला जायेगा, कुछ कहते थे कि फ्री यात्रा, और फ्री बिजली पानी के कारण मंहगाई हो गई है।

आज भी जब राशन की दुकान पर महिलाएं राशन लेने जाती है तो दुकानदार इस तरह व्यंग्य करता है कि “इन्हें सब कुछ फ्री मिल रहा है तब भी कमी है”।

2019 में जब बस में महिलाओं की टिकट फ्री की गई थी तब अक्सर ड्राईवर और कंडक्टर या पुरुष सवारी यह कहते थे कि “अब महिलाओं को कोई काम नहीं फ्री बस है तो निकल जाती है घूमने”।

धीरे-धीरे स्थिति यह हो गई कि आज जब महिलायें बसों में महिला आरक्षित सीट से पुरुष सवारी को उठने के लिए कहती है तो पुरुष सवारी उठते नहीं हैं, उल्टे महिलाओं को बोलते हैं कि ‘एक तो फ्री में बस में घूमती है ऊपर से बैठने के लिए सीट भी चाहिए‘, हमने बस में टिकट ली है हम सीट से नहीं उठेंगे।

2019 से बसों में बैठने वाले पुरुषों के मुंह से इस तरह के व्यंग्य से तंग आकर हालत यह हो गई है कि महिलाओं ने अब सीट के लिए बोलना ही छोड़ दिया। उनके मानसिक पटल पर भी यह बात छप गई है कि ‘हम फ्री में ही तो आते-जाते हैं’। क्या हुआ अगर कोई आदमी महिला सीट पर बैठ गया आखिर उसने टिकट का पैसा दिया है।

महिलाएं ये नहीं समझ पा रहीं कि बस में आरक्षित सीट पर उनका अधिकार है। चुनावी पार्टियों की योजनाओं में बेशक महिला सम्मान योजना के नाम से योजनाएं लागू है लेकिन योजनाओं से सम्मान की जगह ग्लानि की भावनाएं ज्यादा बढ़ी है।

महिला सुरक्षा व सम्मान का मुद्दा चुनाव तक ही है। महिलाओं के वास्तविक सम्मान का एजेन्डा किसी भी राजनैतिक पार्टी का एजेन्डा नहीं है। सच में महिलाओं के सम्मान की बात की जाती तो महिलाओं को बसों में और दुकानों में ‘फ्री’ का ताना देने वाले पुरुष किसी न किसी पार्टी के समर्थक होंगे जो आज महिला ‘सम्मान’ की बात कर रही है।

महिला सम्मान का ढोल पिटने की जगह ये पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं को सच में महिलाओं को सम्मान करना सिखाते तो आज ‘फ्री’ ‘सम्मान’ की जगह महिलाओं के अधिकार की बात होती और बसों में महिलाओं को देखते ही सम्मान के साथ सीट दे दी जातीं, जिससे वास्तव में महिलाएं अपने को सुरक्षित और सम्मानित महसूस करती।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटा के अनुसार 2022 में 4,45256 महिलाएं हिंसा की शिकार हुई यानी हर घंटे 51 महिला हिंसा की शिकार हुई। 

आज फ्री की इन योजनाओं का इतना ज्यादा प्रचार किया जा रहा है कि अपने हक़ और अधिकार को भूल गई है। विपक्षी पार्टियां जो फ्री बांटने को लेकर देश के घाटे की बात कर रही थी आज वही पार्टियां बढ़-चढ़ कर फ्री की सेल लगाए चुनावी जंग जीतने की तैयारी में लगी है।

जनता भी केवल यह देख रही है कि कौन सी पार्टी, क्या-क्या सुविधाएं दे रही है। जनता ये भूल गई कि जिन योजनाओं के वे वास्तविक हकदार है, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन की करोड़ों फाइलें आज भी सरकारी दफतरों में पेंडिंग पड़े हैं।

2010 से राशन कार्ड की लाखों एप्लीकेशन पेंडिंग पड़ी हुई हैं, जिन पर आज भी कोई चर्चा नहीं की जा रही है। योजनाओं की इस प्रतियोगिता में जनता भूल गई है कि उनके असली मुद्दे क्या होने चाहिए थे और क्या है?

मुफ्त शिक्षा की बात केवल आम आदमी पार्टी की ओर से कही गई जबकि उच्च शिक्षा को लगातार प्राईवेट किया जा रहा है, उच्च शिक्षा की फीस बढ़ाई जा रही है।

दाल, मसाले, तेल, सब्जियों के दाम आसमान छू रहे है, महंगाई का मुद्दा चुनावों में से गायब है। कोरोना काल के बाद प्राइवेट सेक्टर में तनख्वाह बढ़ने की बजाय कम हुई है, लोगों के काम के घंटे बढ़ा दिए गए हैं, जिससे बेरोजगारी में इजाफा हो चुका है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार दिसम्बर 2024 में भारत की बेरोजगारी दर बढ़कर 8.30 प्रतिशत हो गई है। दो करोड़ नौकरी देने के वादा करके केन्द्र में आई बीजेपी सरकार के मुंह से अब नौकरी और रोजगार की बात सुनने को नहीं मिलती।

जनता को मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं में कटौती करने वाली भाजपा सरकार भी वोट पाने के लिए फ्री योजनाओं की झड़ी लगा रही है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी पर सब चुप हैं।

‘महिला सम्मान’ की बात भी वैसी ही लगती है जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2017-2022 तक देश में महिलाओं के साथ 1.89 लाख बलात्कार के मामले दर्ज हुए यानी हर 15 मिनट में एक महिला बलात्कार कि शिकार हुई।

बहुत से मामले में तो घर वाले लोकलाज के भय से रिपोर्ट ही दर्ज नहीं कराते हैं। सड़कों, सीवर नालों का मुद्दा बना लेकिन एक-दूसरी पार्टियों को छींटाकशी करने के लिए। अब जनता को सोचना चाहिए कि इस बार का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है और वास्तविक मुद्दे महंगाई, रोजगार, सुरक्षा अधिकार क्यों गायब हैं?

(डॉ अशोक कुमारी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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