यूक्रेन युद्ध: सैन्य संघर्ष या आर्थिक मुनाफाखोरी?

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युद्ध की गर्जना में डूबा यूक्रेन, समय की एक ऐसी प्रयोगशाला बन चुका है जहां संघर्ष, धैर्य, विनाश और उम्मीद का मिश्रण तैयार हो रहा है। कभी कला, संस्कृति और विज्ञान का समृद्ध केंद्र रहा यह देश अब टूटते शहरों, जलती इमारतों और विस्थापित चेहरों का आईना बन गया है।

इतिहास की धारा में यह कोई नया अध्याय नहीं, लेकिन हर युद्ध अपने घाव छोड़ जाता है-माताओं की सूनी आंखें, बच्चों की अधूरी हंसी और सैनिकों के कंधों पर टंगा अनकहा बोझ। दुनिया इसे एक खेल की तरह देखती है-राजनीति के प्यादे चलते हैं, कूटनीति के मोहरे बदले जाते हैं, लेकिन बीच में पिसते हैं वे लोग जो न तो किसी नीति का हिस्सा बनते हैं और न किसी महत्वाकांक्षा के रथ पर सवार होते हैं।

ध्वस्त भवनों के बीच से एक नई सुबह फूटेगी या यह अंधकार और गहराएगा, यह केवल युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि सभ्यता के विवेक पर निर्भर करेगा। इतिहास की किताबें विजय और पराजय को दर्ज करेंगी, लेकिन असली सवाल यह रहेगा-क्या मानवता इस अग्निपरीक्षा में बची रह पाएगी?

अमेरिका और रूस के बीच यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए वार्ता की घोषणा ने वैश्विक राजनीति में बड़ा मोड़ ला दिया है। तीन वर्षों तक अमेरिका ने रूस को अलग-थलग करने और यूक्रेन को पूर्ण समर्थन देने की नीति अपनाई थी, लेकिन अब इस नए कदम से स्पष्ट होता है कि वाशिंगटन अपनी रणनीति बदल रहा है। यह वार्ता सऊदी अरब की राजधानी रियाद में स्थित दिरियाह पैलेस में हुई, जो फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से अमेरिका और रूस के बीच हुई सबसे उच्च-स्तरीय बैठक थी।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस वार्ता के बाद संकेत दिया कि यदि यूक्रेन को इन वार्ताओं में शामिल होना है, तो उसे पहले चुनाव करवाने होंगे। उन्होंने कहा, “जब वे वार्ता में एक सीट चाहते हैं… क्या यूक्रेन की जनता को यह नहीं कहना चाहिए कि लंबे समय से चुनाव नहीं हुए हैं?” यह बयान स्पष्ट रूप से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की पूर्व टिप्पणियों से मेल खाता है, जिन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को अवैध ठहराया था और चुनाव कराने की मांग की थी।

ज़ेलेंस्की का कार्यकाल 2024 में समाप्त हो चुका है, लेकिन मार्शल लॉ लागू होने के कारण चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। जब ज़ेलेंस्की ने अमेरिका और रूस के बीच वार्ता से बाहर रखे जाने पर असंतोष जताया, तो ट्रंप ने तीखी प्रतिक्रिया दी, “आप तीन साल से वहां हैं। इसे तीन साल में समाप्त कर देना चाहिए था। इसे कभी शुरू ही नहीं होना चाहिए था।” ट्रंप ने व्यक्तिगत रूप से ज़ेलेंस्की को पसंद करने की बात कही, लेकिन जोर देकर कहा कि व्यक्तिगत पसंद से अधिक महत्वपूर्ण काम को पूरा करना है।

ज़ेलेंस्की ने तुर्की में राष्ट्रपति रेसेप तैय्यब एर्दोगान से मुलाकात के दौरान कहा कि यूक्रेन के भविष्य पर किसी अन्य देश को निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने दोहराया कि रूस वास्तव में युद्ध समाप्त करना नहीं चाहता और शांति तभी संभव होगी जब अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देंगे, जिसमें संभवतः उनकी सेनाएं यूक्रेन में तैनात करना भी शामिल हो सकता है।

अमेरिका और रूस के बीच इस वार्ता को पश्चिमी देशों में भू-राजनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यूरोप पहले से ही उपराष्ट्रपति जेडी वांस की उस टिप्पणी से नाराज था, जिसमें उन्होंने यूरोपीय नेताओं पर अपने नागरिकों की इच्छाओं की अनदेखी करने का आरोप लगाया था। अब जब अमेरिका और रूस ने यूक्रेन की गैरमौजूदगी में बातचीत की, तो यूरोपीय नेताओं के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई।

इस बैठक में अमेरिका और रूस ने अपने राजनयिक मिशनों को फिर से बहाल करने पर सहमति जताई, जो 2022 के युद्ध के बाद से काफी हद तक निष्क्रिय हो गए थे। दोनों देशों ने आर्थिक और विदेश नीति के मुद्दों पर सहयोग के संभावित तरीकों की पहचान करने का भी निर्णय लिया, यह संकेत देते हुए कि यदि युद्ध समाप्त होता है तो संबंधों में सुधार संभव है।

बैठक में अमेरिकी पक्ष का नेतृत्व विदेश मंत्री मार्को रुबियो, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वॉल्ट्ज और ट्रंप के मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ़ ने किया, जबकि रूसी पक्ष का नेतृत्व राष्ट्रपति पुतिन के वरिष्ठ सलाहकार यूरी उशाकोव और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने किया।

रूस की ओर से प्रमुख भूमिका निभाने वाले किरिल दिमित्रियेव विशेष रूप से ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। दिमित्रियेव, जो एक पूर्व बैंकर हैं और हार्वर्ड से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, पुतिन के करीबी सहयोगी माने जाते हैं। उन्होंने पहले गोल्डमैन सैक्स और मैकिन्सी जैसी वैश्विक कंपनियों में काम किया है और अब रूस के संप्रभु संपत्ति कोष के प्रमुख हैं। वे अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग की संभावनाओं को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। उनकी पत्नी, पुतिन की छोटी बेटी कतेरीना तिखोनोवा की करीबी मित्र और व्यापारिक साझेदार हैं।

रूस के वार्ता दल में दिमित्रियेव की उपस्थिति को महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम माना जा रहा है। वे अमेरिका के व्यापारिक हितों को संबोधित करते हुए वार्ता को आर्थिक सहयोग की दिशा में मोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। उन्होंने पहले ही अमेरिकी कंपनियों को आर्कटिक में रूसी तेल और गैस परियोजनाओं में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है।

यूक्रेन के खनिज संसाधनों को लेकर हो रही बातचीत दर्शाती है कि यह युद्ध महज राजनीतिक या सैन्य संघर्ष नहीं है, बल्कि आर्थिक हितों का टकराव भी है। ज़ेलेंस्की द्वारा इन संसाधनों को सौदेबाज़ी का हिस्सा बनाने से स्पष्ट है कि अमेरिका और पश्चिमी देश दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने के लिए यूक्रेन का उपयोग कर रहे हैं।

ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने इस वार्ता की गति को ट्रंप की त्वरित निर्णय लेने की प्रवृत्ति का परिणाम बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह वार्ता रूस की मंशा को परखने का अवसर है। हालांकि, रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन को किसी भी क्षेत्रीय रियायत की कोई संभावना नहीं है और यूरोपीय देशों को इस वार्ता में शामिल करने की कोई जरूरत नहीं है।

यह वार्ता एक नए वैश्विक शक्ति संतुलन की ओर संकेत करती है। अमेरिका ने जिस तरह से यूक्रेन को वार्ता से अलग रखा और यूरोप की भूमिका को कम किया, वह पश्चिमी सहयोगियों के लिए एक कड़ा संदेश है। वहीं, रूस अपनी कूटनीतिक और आर्थिक ताकत का उपयोग कर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले हफ्तों में यह वार्ता किस दिशा में आगे बढ़ती है और क्या यूक्रेन की नियति वास्तव में बिना उसकी भागीदारी के तय होगी। हर युग अपने साथ एक नई चुनौती, एक नई संभावना और एक नया सबक लेकर आता है। जो समाज अपने अतीत से सीखते हैं, वे ही अपने भविष्य को साकार करने में सक्षम होते हैं।

(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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