ग्राउंड रिपोर्ट : बनारस के फ्लावर बेल्ट में अब तक का सबसे बेकार सीजन, आखिर क्यों मुरझाये हैं किसानों के चेहरे !  

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वाराणसी। बनारस के ‘फ्लावर बेल्ट’ काशी विद्यापीठ विकासखंड के हजारों फूल की खेती करने वालों किसानों को इन दिनों कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। तेजी से गर्म होते मौसम ने हर तीसरे दिन सिंचाई का खर्च बढ़ा दिया है, कीटों के हमले और उत्पादन में गिरावट आई है तो वहीं, दूसरी ओर बाजार में मंदी की मार ने किसानों के हौसले पस्त कर दिए हैं। पुष्प उत्पादक किसानों के लिए वर्ष 2024 के मानसून से लेकर चल रहे 2025 में अब तक का सीजन बेकार गया है। इसके पहले चुनावी साल, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर उद्घाटन और अन्य बड़े-बड़े आयोजनों को लेकर फूलों की स्थानीय स्तर पर जबरदस्त खपत से किसान उत्साहित थे, लेकिन हाल के दिनों में यह कड़ी टूट गई है। इससे किसानों की आजीविका अधर में लटक गई है और चेहरे मुरझाये हुए हैं।  

मलदहिया के किसान फूल मंडी में गेंदे का स्टॉक

सबसे बुरी स्थिति गेंदा फूल उत्पादक किसान

वाराणसी जिला उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार जनपद के बड़ागांव, राजातालाब, चिरईगांव, चोलापुर, हरहुआ, काशी विद्यापीठ, पिंडरा और सेवापुरी विकासखंड के सैकड़ों गांवों में हजारों किसान फूल की खेती करते हैं। इनमें गेंदा, गुलाब, गुड़हल, अपराजिता, नौरंगी, श्रीकांति प्रमुख है। खेत के मालगुजारी के पैसे, अजमेर-उज्जैन से मंगाए गए महंगे फूल के पौधों के बीज, उर्वरक, जुताई, सिंचाई, निराई-गुड़ाई और माला तैयार करने की मजदूरी के बाद फूलों को मलदहिया एवं बांसफाटक फूल मंडी उनकी पूछ नहीं है। इसके चलते किसानों को औने-पौने दाम में अपनी उपज बेचनी पड़ रही है। सबसे बुरी स्थिति गेंदा फूल उत्पादक किसानों की है। 

मलदहिया स्थित मंडी में फूलों की बिक्री न होने से व्यापारी भी परेशान हैं

 औने-पौने दाम में बिक रही किसानों की कमाई 

काशी विद्यापीठ ब्लॉक के कोटवां गांव निवासी ओमप्रकाश राजभर तकरीबन डेढ दशक से कई प्रकार के सुगंधित फूलों की खेती करते आ रहे हैं। राजभर कहते हैं, “मेरे अबतक के होश में यह स्थिति फूल उत्पादक किसानों के लिए बहुत चिंताजनक है। फूलों की खेती में हाड़तोड़ मेहनत करना पड़ता है। छोटे बच्चे सी देखरेख करनी पड़ती है। पौधे लगाना, पानी देना और हर दूसरे-तीसरे दिन सिंचाई व देखभाल करना आसान काम नहीं है। शहर और देश के अन्य राज्यों से मांग न होने से मंडी में किसानों के फूल औने-पौने दाम में बिक रहे हैं।”

अपराजिता पुष्प के खेत में किसान ओमप्रकाश राजभर

“आलम यह है कि इन दिनों तो कई बार तो मंडी में फूल के खरीददार ही नहीं मिलते हैं, ऐसे में खून-पसीने से उपजाई फसल को कूड़े में फेंककर घर आना पड़ रहा है। फूल आने पर उन्हें तोड़ना, उनकी माला बनाना और फिर उसे मंडियों में ले जाकर बेचना हर किसी के बस में नहीं है। इस बार फूलों की खेती सबसे बेकार जा रही है। लागत भी निकलना मुश्किल हो रहा है।”

फूल खेती पर बढ़ी लागत  से घटता मुनाफा 

ओमप्रकाश अपराजिता, श्रीकांति, नौरंगी और गेंदा की खेती किये हैं। वह “जनचौक” को बताते हैं, “मालगुजारी पर 20 हजार रुपए में दो बीघा खेत, 8 हजार रुपए प्रति तीन माह पर अजमेर, उज्जैन और कलकत्ता से फूलों के बीज मंगाने होते हैं, जुताई का पांच हजार रुपए, खाद और कीटनाशक के 10 हजार रुपए, सिंचाई हर तीसरे-चौथे दिन (60 रुपए प्रति घंटे पानी) और चार लोगों की मजदूरी के फूलों की मंडी में मांग न होने से लागत निकलनी मुश्किल हो रही है। फूलों की खेती पर बढ़ी लागत ने मुनाफा कम कर दिया है। चूकि, किसान भाइयों के पास रोजगार के अन्य विकल्प न होने पर यह काम करना पड़ रहा है। फूलों के उत्पादन में आधा पैसा तो मजदूरी देने में ही चला जाता है।”

अपराजिता के फूल, गर्मी की वजह से सिंचाई का खर्च बढ़ गया है

गेंदा फूल उत्पादक किसान सुमन कुमार की कमर टूट गई है। वे कर्ज और बाहर से बीज मांगकर गेंदा फूल की खेती हुए हैं। उनके खेत में लगी फसल कीट के हमले से बेजार हो गई। हजारों रुपए के कीटनाशक, उर्वरक और सिंचाई के बाद पौधे थोड़े संभले ही थे कि फरवरी और मार्च में बढ़े तापमान से उत्पादन ही सिकुड़ गया। लिहाजा, कम और निम्न गुणवत्ता के फूलों की कोई पूछ नहीं है। 

गर्मी की वजह से सिकुड़ते फूल (घेरे में)

फूल की खेती घाटे का सबब

सुमन कुमार कहते हैं “यह पहली दफा है, जब मध्य मई और जून से पहले ही गेंदा फूल के उत्पादन में कमी आ गई है। पौधों में पानी और फूलों को टिके रहने के लिए दवा आदि के छिड़काव के बाद भी फूल की खेती घाटे का सबब बन गई है। पौधे के बुआई से लेकर बढ़वार तक फूलों की खेती के लिए जून, जुलाई और अगस्त महीने की बारिश जरूरी होती है। खेतों को जब बारिश की जरूरत थी, तब हुई नहीं। अब फरवरी और मार्च महीने में ही समय से पहले ही कड़ाके की गर्मी पड़नी शुरू हो गई है। इससे पौधे छोटे रह गए और जो फूल निकल भी रहे हैं, वे छोटे हैं। इसके मंडी हमारे फूलों की मांग नहीं रह गई है। बनारस के गेंदा किसानों का माल नहीं बिक रहा है। इसकी जगह पर कलकत्ता से व्यापारी माल मंगा रहे हैं। शायद नवरात्र में थोड़ा बहुत बिक जाए।” 

गेंदा फूल उत्पादक किसान सुमन कुमार गिरते उत्पादन परेशान हैं

कलकत्ता से  सस्ती आवक 

मलदहिया स्थित किसान फूलमंडी में फूलों के थोक व्यापारी भार्गव राय कहते हैं कि “इस बार जनपद के गांवों से गेंदा फूल निम्न कोटि का आ रहा है, जिसे खुदरा व्यापारी नहीं खरीद रहे हैं। मौसम की बेरुखी से किसान बताते हैं कि पौधों में फूल कम खिल रहे हैं। मंडी में इन दिनों गेंदा फूल के (माला) की नगद खरीद पिछले साल से कम कीमत पर महज चार हजार से पांच हजार रुपए पर हो रहा है। इसकी बड़ी वजह यह है, कोलकाता की मंडी में गेंदा फूल के रेट कम है। कीमत और गुणवत्ता में अच्छे माल की खरीद के अधिकतर बाहरी फूल व्यापारी कलकत्ता से ही माल मंगा रहे हैं। इससे हमलोगों का और बनारस के किसानों का सीधा नुकसान हो रहा है। ऐसे में भला हम और किसान क्या कर सकते हैं ?”

मलदहिया के किसान फूल मंडी के थोक फूल व्यापारी भार्गव राय

वाराणसी जनपद में विकासखंड बड़ागांव 36 हेक्टेयर, चिरईगांव 65 हेक्टेयर, आराजीलाइन 72 हेक्टेयर, चोलापुर 30 हेक्टेयर, हरहुआ 42 हेक्टेयर, काशी विद्यापीठ 70 हेक्टेयर, पिंडरा 52 हेक्टेयर और सेवापुरी 43 हेक्टेयर में 2500 से अधिक किसान किसान पुष्प की खेती से जुड़े हैं।  

बिक्री दर (वर्ष 2022-2023 ) में 

गेंदा फूल- 25 रु से 50 रु प्रति माला

गुलाब फूल -100 रु से 150 रु किलो

गुड़हल- 200 रु से 300 रु में सौ पीस

बेला माला- 02 रु से 05 रु प्रति पीस 

मिक्स फ्लावर माला- 100 रुपए से 120 प्रति माला

बिक्री अब (वर्ष 2024-25)

गेंदा फूल 4-5 रुपए माला 

गुड़हल – 50 से 60 रुपए में सौ पीस 

अपराजिता – 5 से 6 रुपए माला 

श्रीकांती -8 से 10 रुपए माला

नौरंगी – 8 से 10 रुपए माला

आधे दाम पर बिक रहे फूल 

दोपहर में अपराजिता के फूलों को खेत से इकठ्ठा करती आरती को यह उम्मीद भी नहीं थी, जब उनके फूल तैयार हो जाएंगे तो भाव बेहिसाब गिर जाएगा। वह कहती हैं “जो अपराजिता फूल की माला 10 से 12 रुपए प्रति माला बिकते थे, अब वह सीधे आधे दाम पर 5 से 6 रुपए प्रति माला बिक रही है। हमलोग किसान मजदूर आदमी है। सभी खर्च खेती से ही चलाना है, लेकिन यह भी होता नहीं दिखाई दे रहा है। कुछ ही दिनों में बेहताशा गर्मी पड़ने लगेगी। ऐसे में उत्पादन छोड़िये खेत में पुष्प की फसल को बचाना मुश्किल हो जाएगा। इसके बावजूद अपनी हाड़तोड़ मेहनत से जुटे हुए हैं आने वाले दिनों में कुछ बेहतर आमदनी हो सके।”

बेला फूल की माला बनाती हुई एक लड़की

पुष्प उत्पादक किसान जोगीराज, छत्रधारी, लालमल, संजय,अच्छेलाल, लच्छू पहलवान, रामसुधार, रामकिशुन, हंसलाल और मुन्ना आदि गिरते कीमत और बाजार में मांग न होने से परेशान हैं। 

जोगीराज का कहना है कि “अब तो शहर में कोई बड़ा उत्सव व कार्यक्रम ही नहीं के बराबर हैं। पंद्रह दिनों बाद नवरात्र आएगा तो तो थोड़ा बहुत कीमतों में उठान से फूल-मालाओं के दाम बढ़ जाएंगे, लेकिन इसका अधिक फ़ायदा किसानों को नहीं मिलता है। बिचौलिए अधिक कमाई करते हैं। गर्मी का आलम यह की पहले फरवरी में इतना माल हो जाता था कि इन्हें खपाने के लिए व्यापारियों से चिरौरी करनी पड़ती है। लेकिन, जब खेतों में गेंदा फूल ही न के बराबर है। खेतों में जो छोटे-छोटे फूल हैं, इन्हें मंडी ले जाने पर व्यापारी कन्नी काटते हैं। इस बार मौसन ने धोखा दे दिया है।”

(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं)

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