बिहार: अस्पतालों की दुर्दशा की कहानी, आँकड़ों की जुबानी

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भाजपा बिहार के स्वास्थ्य ढाँचे के बारे में चमकदार पोस्टरों की आड़ में स्वास्थ्य ढाँचे की असली सच्चाई आपसे छिपा रही है। लेकिन, भाजपा जो छिपा रही है, उसे हमने इस लेख में ठोस आँकड़ों के साथ उजागर कर आपके सामने रखा है। भाजपा हर रोज़ मेडिकल और मेडिकल एजुकेशन के बारे में चमकदार पोस्टर जारी कर रही है, लेकिन यह नहीं बता रही कि बिहार का देहात किस प्रकार के अस्पतालों के भरोसे छोड़ दिया गया है। बिहार की 88% जनता गाँवों में निवास करती है। इस 88% जनता के लिए स्वास्थ्य का क्या इंतज़ाम किया गया है? आइए, इसे ठोस आँकड़ों की नज़र से समझते हैं।

बिहार के देहात में अस्पतालों की 58% कमी

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के ग्रामीण इलाकों में 22,543 सब-सेंटर चाहिए, लेकिन कुल 9,654 सब-सेंटर ही हैं, यानी 57% सब-सेंटर की कमी है। 3,748 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) चाहिए, लेकिन कुल 1,519 पीएचसी ही हैं, यानी 59% की कमी है। इसी प्रकार, बिहार के ग्रामीण इलाकों में 937 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) चाहिए, लेकिन सिर्फ़ 274 स्वास्थ्य केंद्र ही कार्यरत हैं, यानी 71% की कमी है। आँकड़े बता रहे हैं कि बिहार के गाँवों में बड़े पैमाने पर अस्पतालों की कमी है। जो अस्पताल कार्यरत हैं, उनकी क्या स्थिति है? आइए, जानते हैं।

अस्पतालों के पास अपनी बिल्डिंग तक नहीं

बिहार के 66% सब-सेंटर किराए की इमारत में या पंचायत आदि द्वारा दिए गए किसी भवन में चल रहे हैं; इनके पास अपनी इमारत नहीं है। 9,654 सब-सेंटरों में से मात्र 3,370 सब-सेंटर ही सरकारी भवनों में चल रहे हैं। 29% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के पास अपनी इमारत नहीं है; ये पंचायत आदि द्वारा दी गई किसी इमारत में चल रहे हैं।

डॉक्टरों के 76% पद खाली

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सर्जन, महिला रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और फिज़िशियन-इन चार विशेषज्ञ डॉक्टरों का होना अनिवार्य है। बिहार के ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1,096 विशेषज्ञ डॉक्टर चाहिए, जिनमें से 837 पद, यानी 76% पद खाली हैं।

  • सर्जन के 278 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 208 पद खाली हैं।
  • महिला रोग विशेषज्ञ के 278 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 206 पद खाली हैं।
  • 274 फिज़िशियन चाहिए, जिनमें से 248 पद खाली हैं।
  • बाल रोग विशेषज्ञ के 278 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 237 पद खाली हैं।

बिहार के 1,519 स्वास्थ्य केंद्रों में कुल 4,505 डॉक्टर/मेडिकल ऑफ़िसर चाहिए, जिनमें से 1,560, यानी 35% पद खाली हैं।

85% पीएचसी में नहीं है ऑपरेशन थिएटर

अब बात करते हैं बिहार के ग्रामीण अस्पतालों में उपलब्ध तकनीकी स्टाफ़, सहायक स्टाफ़ और तकनीकी सुविधाओं की।

  • 68% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लेबर रूम नहीं है और 85% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऑपरेशन थिएटर नहीं है।
  • 274 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से 111 में कार्यशील एक्स-रे मशीन नहीं है।
  • 84% पीएचसी के पास कंप्यूटर नहीं है।
  • ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में 274 रेडियोग्राफ़र चाहिए, जिनमें से मात्र 28 पदों पर भर्ती हुई है, यानी 90% पद खाली हैं।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ के 486 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 477 पद खाली हैं।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में फार्मासिस्ट के 2,252 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से मात्र 879 पदों पर भर्ती हुई है, यानी 61% पद खाली हैं।
  • लैब तकनीशियन के 1,987 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से मात्र 968 पदों पर भर्ती हुई है, यानी 52% पद खाली हैं।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ़ नर्स के 7,697 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से मात्र 3,748 पदों पर भर्ती हुई है, यानी 52% पद खाली हैं।
  • महिला स्वास्थ्यकर्मियों के 33,270 पद स्वीकृत हैं, लेकिन कुल 23,031 पदों पर ही भर्ती हुई है, यानी 31% पद खाली हैं।
  • पीएचसी में 3,066 महिला स्वास्थ्यकर्मियों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन कुल 1,708 पदों पर ही भर्ती हुई है, यानी पीएचसी में महिला स्वास्थ्यकर्मियों के 45% पद खाली हैं।

अस्पतालों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय तक नहीं

  • बिहार के 24.7% सब-सेंटरों में पानी की नियमित आपूर्ति नहीं है और 21.8% सब-सेंटरों में बिजली की सुविधा नहीं है।
  • 29% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पानी की नियमित आपूर्ति नहीं है और 20% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली नहीं है।
  • 2,028, यानी 21% सब-सेंटरों और 543, यानी 35% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की सुविधा नहीं है।

भाजपा अपने पोस्टरों में दावा कर रही है कि डबल इंजन की सरकार के नेतृत्व में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था विकसित हो रही है। भाजपा को बताना चाहिए कि अगर इसे ही विकसित व्यवस्था कहते हैं, तो फिर अव्यवस्था किसे कहते हैं?

नोट: सभी आँकड़े स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट Health Dynamics of India से लिए गए हैं।

(राज कुमार, स्वतंत्र पत्रकार एवं फ़ैक्ट-चेकर हैं)

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