हम जानते हैं कि एक फोटो हज़ार शब्दों के बराबर होता है। इसलिये फोटो का इस्तेमाल प्रचार को प्रभावशाली और भरोसेमंद बना देता है। लेकिन, जहां एक तरफ फोटो हमें प्रामाणिक तौर पर जानकारी देता है, तो दूसरी तरफ फोटो हमें गुमराह भी कर सकता है।
भाजपा ने अपने अधिकारिक X हैंडल से एक पोस्टर ट्विट किया है, जिसमें प्रधानमंत्री के बिहार आगमन की जानकारी दी गई है। पोस्टर में लिखा है कि प्रधानमंत्री बिहार को 17 हज़ार करोड़ की सड़क परियोजनाओं का उपहार देंगे। पोस्टर में पीछे एक हाईवे का फोटो भी लगाया गया है। क्या ये हाईवे सचमुच बिहार का है या फिर ये वोटरों को गुमराह करने का मामला है?
फोटो की पड़ताल
जब इस फोटो कs बारे में इंटरनेट पर खोजबीन की गई तो, ये फोटो राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के सोशल मीडिया पर मिला। NHAI ने फोटो के बारे में लिखा है कि ये फोटो तेलंगाना-मुंबई हाईवे का है। ये फोटो NHAI के ट्विटर और इंस्टाग्राम हैंडल पर मौजूद है। ये फोटो NH-161 का है, जो 135 किलोमीटर लंबा हाइवे है और तेलंगाना के सांगारेड्डी को मुंबई के अकोला से जोड़ता है। यानी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की जानकारी के मुताबिक ये फोटो बिहार का नहीं है।
प्रचार ठोस तो फोटो फ़र्ज़ी क्यों?
अब सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के पास बिहार के हाईवे का कोई ऐसा फोटो नहीं है, जिसका इस्तेमाल अपने प्रचार में कर सकें। अगर बीजेपी की प्रचार सामग्री की क्वालिटी आप देखेंगे तो समझ जाएंगे कि कंटेट पर खूब पैसा खर्च किया जा रहा है। लेकिन, क्या भाजपा प्रचार विभाग के पास बिहार राज्य की सड़कों के प्रचार के लिए एक फोटो तक नहीं है?
हालांकि पोस्टर में बिल्कुल बारीक अक्षरों में लिखा है कि तस्वीर सांकेतिक है, लेकिन वो इतना बारीक है कि आप उसे देख तक नहीं पाएंगे, पढ़ना तो दूर की बात है। दूसरी बात ये है कि अगर प्रचार बिहार का है, तो फिर फोटो तेलंगाना का क्यों? क्या ये सीधे तौर पर लोगों को गुमराह करने का मामला नहीं है? चमकदार फोटो दिखा-दिखा कर लोगों का माइंडवॉश करने का मामला नहीं है? राजनैतिक पार्टियों को फ़र्ज़ी फोटो इस्तेमाल नहीं करने चाहिए, खासतौर पर चुनाव के मौके पर। अगर प्रचार ठोस राज्य का है, तो फोटो भी उसी राज्य का होना चाहिए, ताकि जनता देख पाए कि उनके राज्य की सड़कें, अस्पताल, स्कूल आदि कैसे हैं।
(राज कुमार स्वतंत्र पत्रकार एवं फ़ैक्ट-चेकर हैं।)