कांग्रेस ने एक पूर्वोत्तर के सबसे अहम राज्य असम में बड़ा संगठनात्मक फेरबदल करते हुए गौरव गोगोई को असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (APCC) का नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। इस नियुक्ति को लेकर राजनीतिक गलियारे में काफी अर्से से चर्चा चल रही थी, क्योंकि आने वाले दिनों में असम सहित पूर्वोत्तर भारत के लिए इसके गहरे निहितार्थ देखने को मिल सकते हैं।
वर्तमान में गौरव गोगोई लोकसभा में विपक्ष के उपनेता के तौर पर अहम पद पर हैं, और कई बार कांग्रेस की ओर से उन्होंने सदन में प्रमुख वक्ता के रूप में अपनी भूमिका अदा की है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बेटे और तीन बार के सांसद के रूप में गोगोई, भूपेन कुमार बोरा के स्थान पर राज्य की कमान संभालेंगे, जिसका साफ़ अर्थ है कि अगले वर्ष के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई के चेहरे पर चुनाव लड़ा जायेगा।
इसके साथ ही कांग्रेस कार्यकारणी ने तीन प्रदेश कार्यकारी अध्यक्षों जाकिर हुसैन सिकदर, रोज़लिना तिर्की और प्रदीप सरकार की भी नियुक्ति की है, जिसे असमिया व्यापक सामाजिक प्रतिनिधित्व को प्रदान करने के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस के इस फैसले को असम के मुख्यमंत्री, हिमंता बिस्वा सरमा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। अगर हम ध्यान दें तो पिछले कुछ महीनों से सीएम हिमंता के निशाने पर गौरव गोगोई और उनकी पत्नी रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी कांग्रेस की भावी रणनीति का आभास हो गया था।
कांग्रेस नेतृत्व में इस बदलाव को लेकर मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि, “कांग्रेस में अहमियत सिर्फ शाही परिवार के बच्चों को ही दी जाती है। असम कांग्रेस में कल हुई नई नियुक्ति ने एक बार फिर इस बात को साबित कर दिया है।” बता दें कि हिमंता लंबे समय तक कांग्रेस कार्यकर्ता से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के दाहिने हाथ के रूप में अपनी अहमियत बना चुके थे।
13 वर्ष पूर्व जब तरुण गोगोई ने अपने पुत्र गौरव गोगोई को राजनीति में ऊपर लाना शुरू किया था, उसके बाद से ही हिमंता बिस्वा सरमा का पार्टी से मोहभंग और अंततः बीजेपी में अपने राजनीतिक भविष्य को तलाशने की राह बनी थी। यह असम के लिए ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस के अवसान का समय था, जिससे वह अभी तक जूझ रही है।
असम में भले ही बीजेपी सर्वानन्द सोनोवाल के नेतृत्व में सत्ता की बागडोर संभालने में सफल रही, लेकिन पूर्वोत्तर के सातों राज्यों पर हिमंता बिस्वा सरमा की मजबूत पकड़ का ही यह कमाल था, जिसके चलते अगले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने असम की सत्ता उनके हाथों में सौंप दी थी, और सोनोवाल केंद्र की राजनीति में आ गये।
भाजपा में सत्ता का केन्द्रीयकरण किस कदर सिर्फ दो नेताओं के इर्दगिर्द सिमट चुका है, इसके बारे में किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है। राज्यों की कमान ऐसे नेतृत्व के हाथ में देने का सिलसिला बना हुआ है, जो या तो पहली बार विधायक के रूप में निर्वाचित होकर आते हैं या उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, और वे सीधे पीएमओ या गृह मंत्री के निर्देश पर राजकाज चलाते हैं। इसका अपवाद सिर्फ उत्तर प्रदेश और असम को माना जा सकता है, हालांकि यह स्वायत्तता प्रदेश की खुशहाली के लिए कितनी कारगर है, यह दीगर प्रश्न है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पिछले बयानों पर गौर करें तो उनके लिए असम और गुजरात दो ऐसे राज्य हैं, जहां वे कांग्रेस की सरकार देखना चाहते हैं। उनके पास प्रयोग के तौर पर तेलंगाना का उदाहरण है, जहां कांग्रेस की जीत पर शायद ही किसी को यकीन था। कहा तो यहां तक जा रहा था कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर बीजेपी आ सकती है, लेकिन दो वर्षों की मेहनत ने एक बड़े उलटफेर को अंजाम दे दिया। भारत जोड़ो यात्रा अभियान में भी राहुल गांधी को यदि किसी एक राज्य में सबसे अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ा था, तो वह राज्य था असम।
2021 विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल के नेतृत्व में बीजेपी असम की कुल 126 सीटों में से 60 पर जीतने में सफल रही थी, जबकि एनडीए गठबंधन के तौर पर कुल 75 सीटें जीतकर पहली बार राज्य में एक गैर-कांग्रेसी सरकार लगातार दूसरी बार बनी थी। कांग्रेस के हिस्से में 25 सीटें और उसका गठबंधन महाजोत 50 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहा था।
हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व में बीजेपी पहली बार असम का चुनाव लड़ने जा रही है, लेकिन उनके बड़बोले बयानों और राज्य की जमीनी स्थिति के बीच में कितना संतुलन है, इसका असली इम्तिहान 2026 में ही देखने को मिलेगा। बीजेपी ने इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव की कमान असम के मुख्यमंत्री के हाथों ही सौंपी थी, और चुनाव से पूर्व की मीडिया रिपोर्टें ऐसा आभास भी दिला रही थीं कि हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी काफी कठिन है, लेकिन इसके ठीक उलट हुआ।
गौरव गोगोई के खिलाफ घेराबंदी के लिए उनकी पत्नी, जो मूलतः ब्रिटिश हैं, के पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी के साथ संबंधों के आरोप लगाये जा रहे हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री, हिमंता बिस्वा सरमा पिछले कुछ समय से लगातार सार्वजनिक रूप से बयानबाजी भी कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा था कि इन आरोपों को देखते हुए कांग्रेस हाई कमान राज्य की बागडोर गौरव गोगोई को सौंपने से पहले सौ बार विचार करेगी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका।
असम सरकार ने इस मामले की तहकीकात के लिए एक एसआईटी का गठन भी किया है। अब असम के मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि 10 सितंबर तक एसआईटी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हो जायेगा, और गौरव गोगोई की पत्नी के पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेपर्दा हो जायेंगे।
यह आरोप बेहद सनसनीखेज है, जिसे असम मुख्यमंत्री पहलगाम के आतंकी घटना से पहले से लगा रहे हैं, और उसके बाद तो यह और भी अहम हो जाता है। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने गौरव गोगोई पर दांव खेलकर संभवतः लंबे अर्से बाद अपनी बदली सोच का परिचय दिया है। यह इशारा करता है कि कांग्रेस नेतृत्व अब बीजेपी के हमलों और हिंदुत्वादी शक्तियों से घबराने के बजाय दो-दो हाथ करने के लिए खुद को तैयार कर रही है।
गौरव गोगोई का व्यक्तित्व भी शायद इसके माकूल है। वे भले ही असम में राजनीतिक विरासत के प्रतीक के तौर पर देखे जा सकते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक परिपक्वता, दृढ़ता और नेतृत्व का उनपर भरोसा उन्हें कई मायनों में कांग्रेस के अन्य नेताओं से अलग खड़ा कर देता है।
क्या गौरव गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस असम में बाजी पलट पाने में समर्थ हो सकती है? यह सवाल अभी भी दूर की कौड़ी है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद से जिस प्रकार से सोशल मीडिया और असम में चर्चा है, उसे देखते हुए ऐसा अवश्य लगता है कि हिमंता बिस्वा सरमा के लिए आगे की राह कहीं से भी आसान नहीं है।
कांग्रेस यदि असम की चुनौती को जीत लेती है, तो उसके लिए पूर्वोत्तर में बाजी पलटने में खास मुश्किल नहीं होने वाली। लेकिन इसमें यह भी ध्यान देना होगा कि हाल के वर्षों में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व, आरएसएस और कॉर्पोरेट निवेश भी पूर्वोत्तर खासकर असम में बड़े पैमाने पर हुआ है। अभी तो लाभांश कमाने की बारी है, और असम में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना उन्हें नई कवायद के लिए बाध्य कर सकती है।
फिलहाल, ताजा खबर तो यही है कि रायजोर दल के अध्यक्ष अखिल गोगोई ने गौरव गोगोई को असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) के अध्यक्ष के तौर पर उनकी नियुक्ति पर बधाई दी है। शिवसागर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए अखिल गोगोई ने राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए एकजुट विपक्ष की भी वकालत की है।
अखिल गोगोई ने कहा, “हम गौरव गोगोई को उनकी नई भूमिका के लिए बधाई देते हैं। 2026 में बीजेपी को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों को आपस में हाथ मिलाना होगा।” उन्होंने कांग्रेस-रायजोर दल के बीच गठबंधन के बारे में चर्चा को अंतिम स्वरूप देने के लिए 30 मई की समय सीमा का प्रस्ताव रखा है।
अभी तो असम विधानसभा चुनाव में काफी वक्त है। अच्छी बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व समय रहते अपनी रणनीति को अंजाम देते हुए आवश्यक कदम उठा रही है, जिसका उसे सकारात्मक परिणाम आने वाले दिनों में मिल सकता है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)