भारत: दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय 

पिछले सप्ताह बजाज ऑटो लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक राकेश शर्मा की इस चेतावनी ने भारतीय उद्योग जगत में बड़ी खलबली मचा दी, जब उन्होंने घोषणा की कि यदि जुलाई तक रेयर अर्थ मैगनेट पर चीनी प्रतिबंधों में ढील नहीं दी गई तो कंपनी का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। राकेश शर्मा ने मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि चीनी प्रतिबंधों की वजह से इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) व्यवसाय के लिए अस्तित्व का खतरा उत्पन्न हो गया है।

दरअसल, पिछले महीने से चीन ने रेयर अर्थ मैगनेट के निर्यात को मंजूरी देने के लिए अंतिम-उपयोगकर्ता प्रमाणपत्र (end user certificate) मांगना शुरू कर दिया है, जो इलेक्ट्रिक मोटर और ईवी में इस्तेमाल होने वाले अन्य घटकों के लिए आवश्यक है।

मिंट अख़बार के मुताबिक भारतीय वाहन निर्माताओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय, भारी उद्योग मंत्रालय सहित वाणिज्य मंत्रालय के समक्ष पहले से ही रेयर अर्थ मैगनेट के मुद्दे को उठाने के लिए याचिका दायर की हुई है।

उद्योग जगत ने सरकार को बताया है कि अगर स्थिति का जल्द समाधान नहीं किया गया तो ऑटोमोबाइल कारखानों में प्रोडक्शन लाइन के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

इस खबर को देखने पर लग सकता है कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, देश में इससे भी कई गुना बड़े मुद्दे पिछले 11 वर्षों से मुंह बाए खड़े हैं। मोदी सरकार ने बेरोजगारी, असमानता और छोटे एवं मझौले उद्योगों पर तो अभी तक कुछ नहीं किया, ऐसे में अगर इलेक्ट्रिक वाहनों पर भी कुछ चोट पड़ती है तो क्या फर्क पड़ता है। 

लेकिन मुद्दा इतना सरल नहीं है। यहां पर सवाल सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन के उत्पादन का नहीं है। रेयर अर्थ मैगनेट आज की हाई-टेक वस्तुओं के निर्माण में आवश्यक तत्व हैं, जिनमें स्मार्टफोन, लैपटॉप, हाइब्रिड कार, पवन टर्बाइन और सौर सेल आदि शामिल हैं। इतना ही नहीं, जेट फाइटर इंजन, मिसाइल गाइडिंग सिस्टम, एंटीमिसाइल डिफेंस, अंतरिक्ष-आधारित उपग्रह और संचार प्रणाली जैसे महत्वपूर्ण रक्षा सिस्टम भी हैं। इस रेयर मिनरल के बगैर कई रक्षा उपकरण तैयार ही नहीं किये जा सकते।

इसका अर्थ हुआ कि इन धातुओं के बगैर न भारत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई छलांग लगा सकता है, न ही ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए अपने घोषित लक्ष्यों का पीछा कर सकता है और न ही आत्मरक्षा, अन्तरिक्ष में नए अनुसन्धान के मामले में ही आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा सकता है। 

उद्योग जगत में चीन के इस फैसले को लेकर चिंता का माहौल व्याप्त है। हमारे बजट में भी ईवी, सौर ऊर्जा, जीसीसी इत्यादि को लेकर बड़ी उम्मीदें जताई गई हैं। असल में यही वह क्षेत्र है जिसमें अमेरिका और चीन में नंबर वन बनने की होड़ लगी हुई है, लेकिन उत्पादन और क्षमता वृद्धि के मामले में चीन ने पूरी दुनिया को पहले ही पछाड़ दिया है।

भारत सरकार और कॉर्पोरेट की निगाहें भी इसी क्षेत्र में पूंजी निवेश में लगी हुई हैं, क्योंकि नवोन्मेष मुनाफे और तेज आर्थिक वृद्धि के द्वार खोलता है। यह अलग बात है कि भारत में 80% आबादी के लिए अभी भी बुनियादी जरूरतों की आवश्यकता है, लेकिन उसे जीडीपी ग्रोथ के लिए फिलहाल नजरअंदाज कर दिया गया है।

ऐसे में जब बजाज ऑटो के कार्यकारी निदेशक कहते हैं कि कंपनी में रेयर अर्थ मैगनेट का स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है, और अभी तक कंपनी ने चीन को 30 आवेदन प्रस्तुत कर दिए हैं, तो समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। शर्मा के अनुसार, चीनी सरकार का इस बारे में कहना है कि अंतिम अनुमोदन में अभी 45 दिन लगेंगे।

रेयर अर्थ मैगनेट की वैश्विक आपूर्ति के मामले में चीन का दबदबा लगभग पूरी तरह से है। अगर आप ध्यान दें तो हाल ही में अमेरिका ने चीन के खिलाफ 145% टैरिफ की घोषणा को अचानक से घटाकर 30% तक ला दिया। इसके पीछे यह भी एक बड़ी वजह बताई जा रही थी।

भारत तो वैसे भी अपने दवा उद्योग के लिए कच्चे माल और बल्क ड्रग की आपूर्ति मामले में पूरी तरह से चीन पर निर्भर था, जिसके भारत में प्रसंस्करण और पैकेजिंग के बल पर विश्व में भारतीय दवा उद्योग का अपना एक मुकाम है। लेकिन रेयर अर्थ मैगनेट की महत्ता के बारे में अनभिज्ञता के कारण आम लोगों के लिए इसके महत्व को समझना संभव नहीं था। लेकिन भारत सरकार को तो इसके महत्व के बारे में अवश्य पता होगा, लेकिन उसने भी मान लिया कि इसे तो वह आसानी से पड़ोसी देश चीन से जब चाहे आयात कर सकती है।

अब सवाल उठता है कि चीन ने आखिर ऐसा क्यों किया? 21 अप्रैल को चीन ने उन देशों को चेतावनी दी थी, जिनके बारे में उसे लगता था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ हमलों से बचने के लिए वे अमेरिका से हाथ मिलाने के लिए तत्पर हैं। भारत भी उन चंद देशों में से एक रहा है, जिसने टैरिफ लागू होने से पहले ही कई उत्पादों पर अमेरिकी आयात पर शुल्क को लगभग खत्म कर दिया है। भारतीय थिंक टैंक तो उल्टा खुश हो रहे थे कि इस टैरिफ वॉर से भारत-अमेरिका व्यापार 2030 तक 500 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से उलट चुकी हैं। चीन के साथ अमेरिका समझौते की ओर बढ़ चुका है अमेरिकी अदालत ने ट्रंप के मनमानेपूर्ण टैरिफ की घोषणाओं को अमान्य कर दिया है। लेकिन भारत सहित कुछ देश पहले से अमेरिकी प्रशासन के साथ जिन-जिन विषयों पर रजामंदी व्यक्त कर चुके हैं, उनसे पीछे जाने का तो सवाल ही नहीं उठता।

यानि कल यदि अमेरिकी अदालत का फैसला अंतिम रूप से स्वीकार्य होता है, तो उस सूरत में भारत भारी नुकसान की स्थिति में होगा। इसके बजाय जो देश, ट्रंप की घुड़कियों के जवाब में अपने देश में काउंटर-टैरिफ की तैयारी कर रहे थे, उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। वहीं चीन, जो इस टैरिफ वॉर के असल निशाने पर था, के सामने ट्रंप की बदौलत स्पष्ट हो चुका है कि वह किसे अपना दोस्त और प्रतिस्पर्धी समझे।

लेकिन यहां पर सवाल उठता है कि क्या रेयर अर्थ मिनरल के उत्पादन में भारत ने कोई ध्यान नहीं दिया? नहीं, उल्टा तथ्य ये बताते हैं कि आजादी मिलने के फौरन बाद से ही भारत ने इसके महत्व को समझकर 1950 में ही इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) की स्थापना कर दी थी। 1963 में इसका राष्ट्रीयकरण कर डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी को सौंप दिया गया था। चीन तब तक इस मामले में काफी पीछे था। 

लेकिन रेयर अर्थ के रूप में वर्गीकृत इसके 17 तत्वों में से अधिकांश वास्तव में दुर्लभ नहीं हैं, लेकिन उन्हें धरती से निकालने और अलग करने की प्रक्रिया बेहद दुरूह और महंगी होने के साथ-साथ प्रदूषण भी उत्पन्न करती है। इनमें नियोडिमियम, प्रेजोडियम और डिस्प्रोसियम शामिल हैं, जो पवन टर्बाइनों और इलेक्ट्रिक वाहनों, सहित अन्य उत्पादों में उपयोग किए जाने वाले energy-efficient permanent magnets के घटक हैं; और गैडोलीनियम, जिसे आप एमआरआई से पहले लेने वाले कंट्रास्ट एजेंट के रूप में पहचान सकते हैं।

2011 और फिर 2014 में भी जापान ने रेयर अर्थ मिनरल की अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ संयुक्त उपक्रम लगाने के प्रयास किये, लेकिन नौकरशाही और पर्यावरणीय मंजूरी के अभाव में यह मुल्तवी होता रहा। वर्ष 2015 में भी संसद में पूछे गये सवाल पर मोदी सरकार ने बताया था कि रेयर अर्थ के प्रोडक्शन वैल्यू चैन में कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाये जा रहे हैं।

भारत विश्व में 6% रेयर अर्थ मिनरल की हिस्सेदारी रखने के साथ दुनिया का 5वां महत्वपूर्ण देश है। चीन के पास 33% भंडार है, लेकिन वर्तमान में वह 85-90% रेयर अर्थ प्रसंस्करण करता है। अमेरिका तक अपनी 70% जरूरत के लिए चीन पर निर्भर है, और इसी प्रकार यूरोपीय देश भी। चीन ने न सिर्फ अपने रेयर अर्थ संसाधनों बल्कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका तक के देशों के रेयर अर्थ में अपनी हिस्सेदारी पहले से बढ़ा ली थी। 

चूँकि रेयर अर्थ के प्रसंस्करण में कई जटिलताएं और भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, और पिछले कुछ दशकों से चीन इसके उत्पादन में अग्रणी देश बन चुका था, जो अपेक्षाकृत किफायती दामों पर दुनिया को इन उत्पादों की आपूर्ति कर रहा था, इसलिए भारत ही नहीं अमेरिका तक में इसके उत्पादन और कारखाने ठप स्थिति में आ चुके हैं।

यूरोप में नॉर्वे के पास रेयर अर्थ का बड़ा भंडार मिला है, लेकिन उसमें भी अंतिम उत्पादन में 5 वर्ष तक का समय लग सकता है। ऐसे में, चीन चाहे तो दुनिया के विकास का पहिया जाम कर सकता है। आज चीन के इलेक्ट्रिक वाहन यूरोपीय इलेक्ट्रिक कारों और एलन मस्क की टेस्ला से काफी सस्ती ही नहीं ज्यादा दूरी तक सफर तय कर सकती हैं। लेकिन चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर पहले से कई देशों ने भारी टैरिफ लगाकर प्रवेश पर रोक लगा रखी है।

लेकिन जब चीन रेयर अर्थ मैगनेट मुहैया ही नहीं कराएगा तो पूरी श्रृंखला और विकास की रफ्तार जाम हो सकती है। भारत ने अमेरिका के साथ टैरिफ शुल्क में आगे बढ़कर समझौते की शुरुआत ही नहीं की है, बल्कि ब्रिक्स और एससीओ जैसे महत्वपूर्ण मंचों पर हाल के दिनों में उसकी उपस्थिति और भूमिका को लेकर भी चीन सवाल उठा रहा है।

यानि भारत के सामने डबल टैरिफ या दोहरी मार की स्थिति पैदा हो गई है। एक तरफ अमेरिकी दोस्ती का हश्र है तो दूसरी ओर उस दोस्ती की कीमत चीन वसूलने को उद्धत है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, भारत ने रूस से सस्ते तेल का आयात कर भारत के भीतर पेट्रोल-डीजल के दाम सस्ते नहीं किये, बल्कि रिलायंस और सार्वजनिक तेल कंपनियों ने उनका परिशोधन कर यूरोपीय देशों को बेचकर जमकर मुनाफा कमाया। यह बात आज यूरोपीय देशों को अखर रही है तो चीन भी रेयर अर्थ के मामले में संभवतः इसी वजह से अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है। आम भारतीय को तो इससे रत्तीभर का फायदा नहीं हुआ, लेकिन भारत की छवि को लेकर ज़रूर प्रश्न चिन्ह खड़े हो चुके हैं। देखना है, हमारे हुक्मरान इन अनुभवों से क्या सीख लेते हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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