आजकल सोशल मीडिया पर ऐसे रिश्तों के समाचारों की संख्या में वृद्धि हो रही है जो एक मनोविकार की तरह नज़र आता है किंतु यह एक बहुत गंभीर विषय है और इसकी वृद्धि के कारण हमारे पूर्वजों द्वारा बनाए नियमों की परिपाटी टूटने की कगार पर है। लंबे समय से लव-जिहाद के नाम पर परस्पर विवाह करने वाले लोगों का उत्पीड़न हम आज भी देख रहे हैं।
एक उम्र होती है जब देह में वासना का ज़ोर रहता है इस वक्त युवक-युवतियों के बीच संवाद भी जोखिम भरा होता है। किंतु इस जोखिम को उठाना हमारी जिम्मेदारी बनती है। रोक टोक से काम बिगड़ता है इसलिए उनसे स्नेहपूर्ण संवाद ही करना होगा। यदि दोनों की वय उचित है दोनों की रज़ामंदी है तो उनसे विरोध लेना भूल होगी ऐसी परिस्थिति में दोनों परिवारों को मिलकर इस नेक कार्य को सम्पन्न कराना चाहिए। भले ही वे किसी जाति या धर्म के हों।
लेकिन इसका उल्टा होता है लड़की को बेवजह प्रताड़ित होना पड़ता है वह मौका मिलते ही घर से भागती है और किसी मंदिर या अदालत में शादी कर लेती है। शादी हो जाती है पर दोनों परिवारों की छींटाकशी उसके वैवाहिक जीवन को बर्बाद कर देते हैं। ऐसे मामलों में आमतौर पर पति का दबदबा बढ़ता है जिसके वशीभूत हो ऐसी युवतियां आत्महत्या जैसा रास्ता चुन लेती हैं जिसका असर लड़कियों पर सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है।
यह वो असुरक्षा का भाव है जिससे निजात पाने के लिए वे अनजाने में अपने घर के अंदर ही किसी पुरुष से सम्बंध बना लेती हैं। बात जब बढ़ जाती है तो उससे शादी करने में संकोच नहीं करतीं। अब तो सगे भाई-बहनों की कई शादियां भी मंदिरों में होने के समाचार मिल रहे हैं। ऐसा मुस्लिम परिवारों में भी नहीं होता, उनमें भी सगे यानि एक मां बाप से जन्मे बच्चों में विवाह नहीं होते थे। वहां दूसरी मां या बहन के बच्चों, फूफी के बच्चों के बीच शादियां होती हैं जिन्हें हिंदू समाज गलत कहता रहा और मुस्लिमों से नफ़रत का एक कारण बताता था। जबकि मुसलमानों में इस तरह की शादियां रक्त शुद्धता के लिए होती थीं।
आज हिंदू समाज में भाई बहन की शादी हो रही है उसका कारण इस तरह के एक दम्पत्ति ने यह बताया कि वह अपनी बहन को किसी और को सौंप कर उसी कष्ट में नहीं देखना चाहता था। इसीलिए शादी की। इसी तरह एक दूसरे जोड़े का ख़्याल था इससे घर परिवार में जायदाद नहीं बंटेगी। सब पूर्ववत ही प्रसन्न रहेंगे। सब मिलकर खानदान का नाम रोशन करेंगे।
हालांकि सनातन धर्म में ऐसे किसी विवाह पर प्रतिबंध की बात नहीं की गई है। ये ज़रूर बताया गया है कि एक समान गोत्र में शादी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि एक गोत्र में शादी होने पर वे भाई-बहन होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि अगर माता-पिता के गोत्र में किसी से भी अगर संभोग करता है तो वह प्रतिदिन ब्रह्म हत्या का पाप का दोषी होता है लेकिन कई लोग आस-पास के रिलेटिव को भी भाई-बहन मानते हैं इसलिए वह शादी नहीं करते लेकिन जब आप धार्मिक पुराणों में जाएं तो देखते हैं कि गौतम बुद्ध की शादी उनकी बुआ की बेटी यशोधरा जो उनकी मामी की बेटी भी थीं, से हुई। कृष्ण भगवान ने भी अपनी बहन की शादी अपनी बुआ कुंती के बेटे अर्जुन से की। मान्यता शास्त्र सम्मत है दोनों ही माता-पिता के गोत्र में नहीं आते इसलिए कि और वह लोग आपस में भाई-बहन भी नहीं मानते थे। अलौकिक मान्यता में लोग पिता के गोत्र को तो देखते हैं लेकिन माता के गोत्र को नहीं देखते लेकिन शास्त्र के अनुसार यह भी गलत है।
बहरहाल, यदि गोत्रों की बात की जाए तो प्रायः सभी जातियों में एक से गोत्र धारी हैं तो दूसरे गोत्र यानि किसी भी जाति में शादी हो सकती है। लेकिन इसे मानता कौन है? शरीर विज्ञानी भी समगोत्र में विवाह अच्छा नहीं मानता।
दूसरा चिंता का सबब ये भी है कि दादा पोती पर रीझ जाए, चाची भतीजे के साथ इश्क कर बैठे या बेटी के होने वाले दामाद के साथ मां शादी रचाए तो चिंतन करना ही पड़ेगा। ऐसे अनमेल विवाह के पीछे मनोविकार नहीं मनोविज्ञान काम करता है। दादा यदि पोती से ब्याह कर रहा है तो वह उसकी ज़रूरत है इस उम्र में उससे शादी कौन रचाएगा। उसे और पोती को सहारा चाहिए। चाची भतीजे के लगाव में निश्चित तौर पर चाचा की उपेक्षा का शिकार रही होगी। होने वाले दामाद के साथ मां की शादी में भी लगभग ऐसा ही भाव रहा होगा।
ये तमाम स्थितियां इस बात की परिचायक हैं कि देश की बहुसंख्यक महिलाएं आज भी पति-पत्नी के आत्मीय रिश्ते के सुख से वंचित हैं। समाज आज भी प्रेम करने वालों से नफ़रत करता है। इस तरह यदि रिश्ते बढ़ रहे हैं तो उनके मूल में जाकर उन परिस्थितियों को सुधारना होगा जिनके वशीभूत होकर समाज में इस तरह के अनमेल विवाह सम्पन्न हो रहे हैं।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)