‘हार्ली डेविडसन पर चीफ़ जस्टिस की फ़ोटू और लंबर्गिनी चलाने की मेरी अधूरी ख़्वाहिश’

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ट्विटर पर इस तस्वीर को देख कर गर्व से सीना 56.2 इंच का हो गया। .2 इंच की बढ़ोत्तरियाँ बेपरवाह ख़ुशी देने वाली हैं वैसे ही जैसे इतनी सी तोंद कम हो जाने पर मिलती है। भाव बता रहा है कि हम सभी के भीतर नौजवानी कुलाँचे मारती रहती है।

बाइक के क़द्रदान ही समझ पाएँगे हार्ली डेविडसन पर बैठने की ख़ुशी। इस ख़ुशी को प्राप्त करने के लिए ज़रूरी नहीं कि बाइक अपनी हो। यह ख़ुशी दूसरे की बाइक पर बैठ कर ही महसूस की जाती है। दोस्त की नई बाइक स्टार्ट करने को मिले तो समझिए कि दोस्ती गहरी है। बस ऐसा दोस्त भी हो जिसके पास डेविडसन, जावा और बुलेट हो। बाइक विहीन मित्रता अधूरी मित्रता होती है।

हार्ली डेविडसन बाइक पर भारत के चीफ़ जस्टिस बैठे हैं। उनके चेहरे की ख़ुशी भी दोस्त की बाइक पर बैठ कर शौक़ पूरा करने वाली ख़ुशी लगती है। यह तस्वीर ट्विटर पर ख़ूब चल रही है। अनावश्यक टिप्पणी से मामला सीरियस न हो जाए इसलिए बहुत बातें छलक नहीं पा रही हैं। शेयर करने वाले सीमा में हैं। बहुत कुछ कहने की इच्छा रखने वाले लोग क़ानून के दायरे में हैं। ये तड़प सिर्फ़ ईर्ष्या के कारण नहीं हो सकती।

दूसरी तरफ़ तस्वीर के वायरल होने से अनजान चीफ़ जस्टिस फ़िलहाल एक क्षणिक सुख का आभास कर रहे हैं। किसी भी प्रकार के भय और लोक-आलोचना के दायरे से बाहर जीवन के इस आनंद को जीते नज़र आ रहे हैं। पल भर के लिए ही सही। चंद सेकेंड की यह तस्वीर आगे पीछे की कोई कहानी नहीं कहती। कई लोगों ने नंबर से पता लगाया है कि बाइक चीफ़ जस्टिस की नहीं है। किसी और की है। तभी मैंने कहा कि हर कोई मित्र की बाइक पर बैठने की ख़ुशी नहीं जानता है। वही जानता है जिसके पास दोस्त हो और दोस्त के पास बाइक हो।

हम सब अपने न्यायाधीशों को बोरिंग सफ़ेद एंबेसडर कार में ही सिमटे देखते रहे हैं। मुमकिन है कारों का ब्रांड बदल गया हो लेकिन वो भी साधारण ही होंगी। बी एम डब्ल्यू या मर्क नहीं होंगी। सार्वजनिक तौर पर न्यायाधीश लोग अपनी तस्वीरों को लेकर काफ़ी सजग रहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि उनके भीतर जीवन का रस और रंग नहीं होता है। उनके शौक़ नहीं होते। ख़ूब पढ़ने से लेकर घूमने और न जाने क्या क्या। लेकिन वे किसी को पता नहीं चलने देते। यह सही भी है। वरना पता चल जाए कि प्रेमचंद को पसंद करते हैं तो वकील हर दूसरी दलील में प्रेमचंद का नाम लेने लगेगा।

इसलिए एकाध बार के लिए ऐसे दृश्य ग़ज़ब का उत्साह पैदा करते हैं। देखने वाला अपने हिसाब से कहने के लिए बाध्य होगा। जल्दी ही इतिहास से ऐसी और तस्वीरें आ जाएँगी लेकिन अपवाद होकर भी ये वाली तस्वीर अमर होगी। पिछले तीन साल में न्यायपालिका की तीन तस्वीरें अमरत्व को प्राप्त कर चुकी हैं। जब चार जज लॉन में आ गए प्रेस कांफ्रेंस करने। इन चार में से एक राज्य सभा चले गए। और ये तीसरी । इस तस्वीर की अपनी सत्ता है। बेतकल्लुफ़ होने की सत्ता। सत्ता होने की बेतकल्लुफ़ी।

बस मास्क पहन लेते तो अच्छा रहता। रुकी हुई बाइक पर हेल्मेट पहनने की बात ठीक नहीं। चलाने का प्रमाण नहीं है इसलिए हेल्मेट की बात अनुचित है। तस्वीर में जो बाइक है वो लिमिटेड एडिशन है। जब ये चीफ़ जस्टिस की है ही नहीं तो दाम सर्च करना ठीक नहीं लगता। वैसे इसकी क़ीमत 50 लाख तक हो सकती है। बेहतर है जिसकी है वही बताए। हो सकता है पचास हज़ार का डिस्काउंट भी मिला हो।

एक बार मैंने भी मर्सिडीज़ की सवारी की थी। दोस्त की नानी की थी। ग़ज़ब की कार है। जब से मॉडल टाउन में लंबर्गिनी वाला गाना सुना हूँ तब से इस कार में सवारी की तलब है। 

किसी दोस्त की दादी के पास हो तो सूचित करें । मुझे मॉडल टाउन अपनी दोस्त से मिलने जाना है !

(रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

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