झारखंड: पीड़ितों के बगैर मुआवजे और पुनर्वास के जारी है कोयले का खनन

झारखंड के गोड्डा जिले के बसडीहा गांव को ईसीएल प्रबंधन द्वारा गांव को बिना पुनर्वासित किए और बिना मुआवजा दिए उनकी जमीन पर कोयला उत्खनन किया जा रहा है। यहां तक कि उनके कब्रिस्तान तक पर सड़क निर्माण किया जा रहा है। इसको लेकर गांव वाले काफी परेशान हैं और अब वे आंदोलित हो रहे हैं।

कुछ दिनों पहले बसडीहा गांव के इर्दगिर्द ईसीएल प्रबंधन ने ग्रामीणों को झूठा आश्वासन देकर उनकी जमीनों को अपने नाम पर आवंटित कर लिया है, लेकिन गांव वालों को अभी तक कोई सुविधा नहीं दी गई है। गांव वालों का कहना है कि जब तक हमारे गांव को दूसरी जगह नहीं बसाया जाता है, तब तक हम कब्रिस्तान पर सड़क और खुदाई नहीं होने देंगे। यही हमारी मांग है, लेकिन प्रबंधन हमारी बिना परवाह किए पुलिस प्रशासन के बल पर हमारे कब्रिस्तान पर सड़क निर्माण का काम तेजी से करती जा रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि प्रबंधन हमारी जमीनों के अंदर से ही कोयला निकाल रही है, लेकिन हमारे ही गांव के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। एक तरफ गांव का गांव उजाड़ा जा रहा है, तो दूसरी तरफ हमारे युवाओं को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

ग्रामीणों का आरोप है कि प्रबंधन ने जमीन लेने से पहले वादा किया था कि आप सब लोगों को नयी जगह बसाया जाएगा और स्कूल-अस्पताल, बिजली-पानी और रोजगार दिया जाएगा। जब तक आप सब लोगों को दूसरी जगह बसाया नहीं जाएगा, तब तक आपके कब्रिस्तान को हाथ नहीं लगाया जाएगा, लेकिन कंपनी वादाखिलाफी के साथ कब्रिस्तान की भूमि को अतिक्रमण कर सड़क बना रही है।

ऐसा नहीं है कि बसडीहा गांव के लोगों के साथ ही ऐसा हो रहा है, इस तरह का विश्वासघात झारखंड के तमाम विस्थापितों के साथ हो रहा है। उन्हें उनकी जमीन लेने के पहले बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए जाते हैं और उनकी जमीन को हथिया लेने के बाद उन्हें ठेंगा दिखा दिया जाता है।

कहना न होगा कि आज भी पूरे झारखंड में लोगों को बेघर करके खनिज संपदाओं की लूट जारी है, वहीं विस्थापन के सवाल गौण होते जा रहे हैं। सरकारें आती हैं और जाती हैं। जो विपक्ष में होता है वह जनता के अधिकारों को लेकर काफी संजीदा होता लेकिन सत्ता में आते ही वह तमाम जन सवालों से किनारा कर लेता है।

हेमंत सोरेन ने भी विपक्ष में रहने पर झारखंडी जनता के साथ कई वायदे किए, जिसमें बसडीहा गांव का भी दर्द शामिल था, लेकिन वे सत्ता में आते ही इनके सारे वायदे भूल गए। यह गांव बोरियो विधानसभा क्षेत्र में आता है और यहां विधायक झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम हैं। इस गांव के लोगों ने बड़ी आस के साथ इन्हें अपना वोट दिया था, लेकिन उनका सवाल आज भी यूं ही बना हुआ है।

उस राज्य के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है कि जिस राज्य के अंदर तमाम खनिज संपदाएं और कंपनियां हैं, उस राज्य के युवाओं को दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है। ऐसा क्यों है? के सवाल पर सरकार को जवाब देना चहिए।

वहीं दूसरी तरफ आज जहां-जहां भी कॉरपोरेट घरानों की लूट व झूठ के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। वहां के युवा-नौजवानों को टारगेट करते हुए जेल के सलाखों के अंदर बंद किया जा रहा है और सरकार और पुलिसिया गठजोड़ के द्वारा दमन जारी है।

बसडीहा गांव के युवा मुजफ्फर कहते हैं कि ईसीएल प्रबंधन के सारे वादे झूठे हैं, न तो अभी तक उन्होंने रोजगार दिया, न ही बिजली-पानी, सड़क और अब हमारे कब्रिस्तान को भी छिनना चाह रहे हैं। वहीं युवा फैय्याज कहते हैं कि हम ईसीएल मैनेजमेंट की मनमानी अब नहीं चलने देंगे। कब्रिस्तान के ऊपर किसी भी सूरत में सड़क बनने नहीं देंगे। जब तक हम तमाम ग्रामीण वासियों को दूसरी जगह बसा नहीं दिया जाता है, और तमाम सुविधाएं जो कंपनी के द्वारा वादा किया गया है, नहीं मिल जाता है। हम इन सवालों को लेकर आंदोलन करेंगे और कंपनियों की मनमानी के खिलाफ संघर्ष करेंगे।

इस्माइल कहते हैं कि पहले हमें तमाम सुविधाएं कंपनी उपलब्ध कराए और जहां हमें पुनर्वासित किया जाएगा वहां कब्रिस्तान के लिए भी जगह दे, उसके बाद ही हम कब्रिस्तान के ऊपर सड़क और खुदाई करने देंगे। वे कहते हैं कि जब तक सांस रहेगी अंतिम दम तक हम संघर्ष करेंगे।

अगर देखा जाए तो यह स्थिति कोई ललमटिया खादान की अकेले की नहीं है। यह पूरे झारखंड में एक बड़े सवाल के रूप में मुंह फाड़े खड़ा है। गांव वालों से झूठे वादे और दावे करके ग्रामीणों को गुमराह करना और उनकी जमीन हथिया कर उन्हें चींटी के तरह उठा कर फेंक देना।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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