नीतीश कुमार सभा में।

प्याज से ‘महंगाई’ पर ये हमला है सुशासन बाबू!

पटना। कोरोना व महंगाई की मार के बीच कल मधुबनी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा में खूब प्याज व आलू चले। बिहार विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार की सभा में हंगामा या हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी सारण जिले के परसा विधान सभा क्षेत्र में भी मुख्यमंत्री के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो चुका है। सीएम यहां पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के बेटे व जदयू उम्मीदवार चंद्रिका प्रसाद राय की सभा को संबोधित करने आए थे। विरोध-प्रदर्शन पर यहां नीतीश कुमार काफी नाराज दिखे थे।

नीतीश कुमार को उनकी राजनीतिक परिपक्वता व सदासयता के बारे में जो भी जानता है, उसे सीएम की इस तात्कालिक प्रतिक्रिया पर आश्चर्य हुआ।

विरोध के एक और वाकये का चर्चा करना यहां ज़रूरी है। मुजफ्फरपुर के सकरा में एक चुनावी रैली के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हेलीकॉप्टर की तरफ किसी व्यक्ति ने चप्पल फेंक दिया था। हालांकि, चप्पल हेलीकॉप्टर तक नहीं पहुंचा। इस दौरान कुछ लोगों ने विरोध में नारेबाजी भी की थी।

प्याज से हमला व चप्पल फेंकने की घटना के कारणों की तलाश में इसकी एकाकी व्याख्या करना उचित नहीं होगा।

पहली बात यह है कि किसी तरह के हमले को कोई भी न्याय पसंद व्यक्ति जायज नहीं ठहरा सकता। इन घटनाओं के दूसरे पहलू पर नजर दौड़ाएं तो यह साफ है कि इन हमलों के पीछे कोई शारीरिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं रही होगी। यह दोनों घटनाओं की प्रकृति से साफ है। तब तो आखिर इन विरोध के तरीकों के पीछे के सैद्धांतिक तर्कों को तलाशना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोग कोई सिरफिरे नहीं बल्कि अधिकांश युवा थे। दिल्ली से बिहार चुनाव की रिपोर्टिंग करने आईं एक न्यूज चैनल की रिपोर्टर पूनम मसीह कहती हैं कि इस हमले को लोगों के सत्ता के प्रति आक्रोश के भी नजरिए से देखा जा सकता है।

कोरोना काल में नौकरी छिन जाने का दर्द लिए हजारों किलोमीटर पैदल चले युवाओं के जेहन में आज भी वे पुरानी बातें जिंदा है। लॉकडाउन के दौरान युवाओं  व मजदूरों के लिए सहानुभूति के दो शब्द बोलने की जगह नीतीश कुमार का वह बयान कि राज्य में किसी को घुसने नहीं दिया दिया जाएगा, असंतोष पैदा करने का बहुत बड़ा कारक बन गया था। अब असंतोष के पहलुओं पर आगे नजर दौड़ाएं तो महंगाई की एक बड़ी मार लोगों को इस समय झेलनी पड़ रही है।

इसमें प्याज महंगाई के एक बड़े प्रतीक के रूप में है। प्याज की महंगाई राजनीतिक क्षेत्र में हर बार अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री के उस काल की याद दिला देती है जिसने बीजेपी का उस चुनाव में बंटाधार कर दिया था। लॉकडाउन व महंगाई की मार के बीच आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के दस लाख युवाओं को रोजगार देने के एलान ने मौजूदा राजनीति को नया रंग दे दिया है।

रोजगार को लेकर महागठबंधन के इस स्टैंड ने चुनावी मुद्दे को इस बार इसी पर केंद्रित कर दिया है। इसके बावजूद 15 साल तक लगातार सत्ता में रहने पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दस लाख लोगों को रोजगार देने के मुद्दे पर अपना एक बयान देकर खुद फंसते नजर आए। नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार में कोई समुद्र नहीं है ऐसे में बड़ा कल कारखाना लगाना संभव नहीं है। जिसकी सोशल मीडिया पर बहुत आलोचना हुई थी।

हालांकि भाजपा ने महागठबंधन के चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के चंद दिन बाद ही अपने जारी संकल्प पत्र में 19 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा कर लंबी लकीर खींचने की कोशिश ज़रूर की। लेकिन अब तक के चुनावी अभियान में तेजस्वी यादव का 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा ही बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इसे जानकार तेजस्वी की सभाओं में युवाओं की बड़ी संख्या में उमड़ रही भीड़ को रोजगार के मुद्दे को सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं।

इन परिस्थितियों में सुशासन बाबू की सभाओं में विरोध प्रदर्शन के मामले आगे भी बढ़े तो इस पर आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जा सकता। लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में आक्रोश जताने का सबसे बढ़िया तरीका मतदान है न की किसी भी तरह की हमले की कार्रवाई में जाकर कानून को हाथ में लेना।

(पटना से जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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