भाजपा मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और वर्तमान में विजयराघवगढ़ से विधायक संजय पाठक, जिन्हें प्रदेश के अरबपति विधायक का गौरव हासिल है, इस समय डिंडोरी के आदिवासी अंचल की बाक्साइट खनिज संपदा से सम्पन्न ज़मीन खरीद मामले में चर्चाओं में हैं।
सीधे-सीधे विधायक महोदय ने यहां के आदिवासियों की ज़मीनें नहीं खरीदी हैं जिनका रकबा तकरीबन 700 एकड़ बताया जा रहा है। जिसकी कीमत तकरीबन एक हज़ार करोड़ बताई जा रही है। चूंकि संविधान के मुताबिक आदिवासियों की ज़मीन आदिवासी ही खरीद सकता है। इसीलिए बड़ी चतुराई से विधायक जी ने अपने क्षेत्र के गरीब भोले-भाले अपने बंधुआ चार आदिवासी मज़दूरों को अंधेरे में रखकर उनके नाम से शातिराना तरीके से उनकी ज़मीन हथिया ली। यह ज़मीन बेशकीमती है इसमें खनिज सम्पदा है।
इस बात की जानकारी तब सामने आई जब संजय पाठक की कंपनी ने इस क्षेत्र में खनिज दोहन का कार्य प्रारंभ करने की कोशिश की।
जब यह बात गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संज्ञान में आई तब उन्होंने भूमिहीन हुए आदिवासियों को भूमि दिलाने और खनन से मुक्ति दिलाने की पहल प्रारंभ की। तब यह रहस्यपूर्ण ज़मीन खरीदने का सच उजागर हुआ। इस कृत्य के कर्ताधर्ता आदिवासी नहीं बल्कि एक अमीर खरबपति विधायक हैं। वे इस समय भाजपा में हैं एक समय उनका परिवार कांग्रेसी था। इस खदान माफिया ने अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए ही भाजपा में प्रवेश किया था। शिवराज काल में कुछ ऐसे मामले भी सामने आ गए थे जो ग़लत थे। उनको नोटिस भी जारी किए गए पर संजय पाठक के भाजपा प्रवेश और प्रदेश सरकार में मंत्री बनाए जाने के एवज में कहा जाता है लंबी राशि भाजपा ने डकारी और तब से अब तक संजय पाठक लगातार अपने पैसों के दम और भाजपाई होने की आड़ में असंवैधानिक कार्य करते रहे हैं।
डिंडोरी के गरीब बैगा आदिवासियों के ज़मीन की डोर आजकल अप्रत्यक्ष तौर पर उनके हाथ में है। इस घटना के प्रकाश में आते ही कई सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता यहां सक्रिय हो गए हैं। आदिवासी आंदोलनरत हैं।आदिवासियों के शोषण की यह एक अनोखी घटना है। इस घटना से यह समझा जा सकता है कि आदिवासियों के साथ इस तरह से छल और भी जगह हो रहे हों तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आदिवासियों को प्रदत्त सुविधाओं का लाभ अन्य लोगों द्वारा उठाए जाने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैं। लेकिन उन पर एक्शन हुआ हो यह जानकारी में नहीं है। आदिवासियों की शहर किनारे की ज़मीनें भी उनके समाज की लड़की से विवाह करके कई लोग उपभोग कर रहे हैं। उनकी वनोपज सस्ते दामों में लेकर उनका शोषण हो रहा है। यौनिक शोषण की भी बैगा महिलाएं शिकार हैं।
ऐसी घटनाओं पर अभी तक सामाजिक कार्यकर्ता आवाज उठाते रहे हैं उन्हें अर्बन नक्सलवादी मानकर जेल में ठूंसा गया है। उनके क्षेत्रों में दख़ल और लूट का यह सिलसिला बहुत पुराना है। इस बार आदिवासियों की पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने यह मामला उठाया है इसीलिए इसको महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देखना यह है कि सरकार अपने अमीर विधायक के प्रति क्या एक्शन लेती है? मामला संगीन है गहन अपराध की श्रेणी में आता है।
उन चार विधायक के क्षेत्र के बंधुआ आदिवासियों से जब इन ज़मीनों की ख़रीद फरोख्त की बात करने पत्रकार पहुंचे तो उनके हालात देखकर किसी को भी रोना आ जाएगा जो बेशकीमती ज़मीन का मालिकाना हक रखते हैं। वे गरीबी रेखा में आते हैं। तौबा-तौबा ऐसी अमीरी का जिन्होंने भोले-भाले अपने बंधुआ मजदूरों के नाम का फायदा लेकर खनिज संपदा के दोहन का सपना संजोया। इससे दर्दनाक स्थिति में डिंडोरी के वे आदिवासी भी हैं जिनकी ज़मीनें औने-पौने दाम देकर खरीद ली गई हैं वे भूमिहीन होकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
विश्वास है, सरकार ईमानदारी का परिचय देकर इन ज़मीनों को मुक्त कराकर भूमिहीन आदिवासियों को वापस कराएगी तथा अपराध में शामिल लोगों को दंडित करेगी। उधर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को सरकार पर भरोसा नहीं है वह इसे अदालत में ले जाने की तैयारी में है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)