लेखकों ने भी बुलंद की किसानों के समर्थन में आवाज, कहा- वापस लिए जाएं कृषि विरोधी काले कानून

केंद्र सरकार के कृषि विरोधी तीनों कानूनों को वापस लेने के लिए किसान संघर्षरत हैं। वह दिल्ली के बार्डर पर मौजूद हैं और अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। काले कानूनों को वापस लेने की मांग करते किसानों का समर्थन जनवादी लेखक संघ ने भी किया है। इस बारे में संगठन की तरफ से उसके महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और संयुक्त महासचिव राजेश जोशी और संजीव कुमार ने बयान जारी किया है।

जलेस ने अपने बयान में कहा है कि ऊंचा सुनने वाली केंद्र सरकार को अपनी मांग सुनाने के लिए किसान दिल्ली पहुंच चुके हैं और वह सरकार, जिसने उन्हें दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए सारे इंतज़ामात किए थे, आखिरकार ढेर सारे किंतु-परंतु के साथ उनसे बात करने को राज़ी हुई है।

अपने हुकूक़ के लिए इस सर्दी में दिल्ली के बुराड़ी मैदान और सिंघू बॉर्डर पर जमे संघर्षशील किसानों का हम इस्तक़बाल करते हैं। किसानों का यह प्रतिरोध सितंबर में पारित उन तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ है, जिनका उद्देश्य कृषि का कॉरपोरेटीकरण है। यह अकारण नहीं कि इसे बार-बार भारतीय कृषि के लिए ‘1991-मोमेंट’ कहा गया है। किसान बहुत अच्छी तरह समझते हैं कि इस ‘1991-मोमेंट’ के क्या मायने हैं।

उन्हें अपनी फसल के लिए न्यूनतम मूल्य मिलने की गारंटी खत्म होने जा रही है और वे बड़े कॉर्पोरेट घरानों के ग़ुलाम बनने जा रहे हैं, इस बात को उन्होंने महसूस कर लिया है, इसलिए उनकी जायज़ मांग है कि ये क़ानून वापस लिए जाएं और एपीएमसी के ज़रिए सरकारी खरीद की व्यवस्था को बहाल रखने की गारंटी की जाए।

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता के कुछ दलाल इन आंदोलनरत किसानों को खालिस्तानी और भारत-विरोधी बता रहे हैं और यह हास्यास्पद झूठ फैलाने की कोशिश भी कर रहे हैं कि इनके जत्थों में ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए गए। ऐसी घटिया अफ़वाहबाज़ी भाजपा-आरएसएस की पुरानी चाल है, जिसके उदाहरण 2014 के बाद से सैकड़ों बार मिल चुके हैं।

जनवादी लेखन संघ किसानों की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता है। हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपने जमावड़े के लिए रामलीला मैदान में जगह दिए जाने और इस सर्दी के मौसम में उनके लिए आवश्यक न्यूनतम सुविधाएं मुहैया कराने की मांग करते हैं। हम मांग करते हैं कि केंद्र सरकार अविलंब उनके साथ बातचीत करके किसानों के पक्ष में मुद्दे का हल निकाले जो कि किसान-विरोधी कृषि-क़ानूनों को वापस लिए जाने के रूप में ही हो सकता है। 

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