भीमा कोरेगांव से जुड़े एक्टिविस्टों ने भी मिलायी किसानों के साथ आवाज़, जेल में रखा उपवास

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किसानों को गुलाम बनाने की केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ एल्गार परिषद  भीमा कोरेगांव केस में तलोजा जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ताओं-बुद्धिजीवियों ने आज 23 दिसंबर को किसान दिवस के अवसर पर सांकेतिक उपवास किया। इसके जरिये इन फंसाये गये सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आंदोलनकारी किसानों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया और अपने वकील निहाल सिंह राठौर के माध्यम से उनके संघर्ष के बारे में संदेश दिया।

इसमें उन्होंने कहा है कि सबसे पहले हम उन किसानों को श्रद्धांजलि देते हैं जो आंदोलन में शहीद हुए हैं। हमें यकीन है कि उनका बलिदान इस आंदोलन को और मजबूत और दृढ़ बना देगा। हालांकि हम कैदी, आपके आंदोलन में सीधे शामिल नहीं हो सकते, हम एक दिन के सांकेतिक उपवास पर जाकर आपके संघर्ष में शामिल जरूर हो रहे हैं। आपकी मांगें जायज हैं और केंद्र सरकार इस कानून के अनुसार किसानों को कंपनियों का गुलाम बनाने की योजना बना रही है। यह इस देश में किसानों की जमीन छीनने के लिए अडानी-अम्बानी की एक चालाक चाल है, जहां किसानों को पीड़ित बनाया जाएगा। यह समय समझते हुए, हमने जो जन संघर्ष किया है, वह ऐतिहासिक है और साथ ही यह केंद्र सरकार को भी होश में लाने का काम कर रहा है।
केंद्र सरकार और उसके सहयोगी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) बिल्कुल भी लोकतंत्र नहीं चाहते हैं। वे सहिष्णुता, एकता, समानता, भाईचारे से नफरत करते हैं। यह उनके नस्लवादी-धार्मिक उद्देश्यों के खिलाफ जाता है।

वे उन लोगों को डराते हैं जो लोकतंत्र और संविधान के मूल्यों को बढ़ावा देते हैं और फिर जानबूझकर ऐसे लोगों का नाम बदनाम करते हैं। उनका उद्देश्य ऐसे लोगों की विश्वसनीयता को कम करना है या लोगों के मन में भ्रम पैदा करना है। उन्होंने पिछले 6-7 वर्षों में इसी तरह की साजिशों को अंजाम दिया है और कई सामाजिक रूप से संवेदनशील लोगों को विस्थापित करने में सफल रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने किसानों को आतंकवादी, देशद्रोही, दलाल आदि खिताब देने की एक असफल कोशिश की है। किसान आंदोलन के माध्यम से किसान और जागरूक जनता ने शासक वर्ग के मन में भय पैदा कर दिया है।

इन विपरीत परिस्थितियों में किसानों ने जो लड़ाई छेड़ी है, वह बहुत प्रेरणादायक है और आने वाले समय के लिए एक उदाहरण होगी। इस आंदोलन के माध्यम से हमने संघ, मोदी सरकार, उनके मंत्रियों और उनके गोदी मीडिया के इरादे को तोड़ दिया है और उनकी साजिशों को उजागर किया है। लोकतंत्र और सरकार का चौथा स्तंभ पूंजीवादियों की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी तो छोड़ ही दी है। धर्म के आधार पर उन्हें विभाजित करने के अलावा हमारे देश के अन्नदाताओं पर वाटर-कैनन का इस्तेमाल हुआ।

जिन सरकारी कंपनियों को इस देश के लोग अपने खून पसीने से खड़ा करते हैं, उन्हें गुठलियों के दाम पूंजीवादियों को बेचा जा रहा है। एक तरफ पूंजीपतियों को कर्ज, जुर्माना, कर माफ किया जा रहा है और दूसरी तरफ लोगों पर कर का बोझ डाला जा रहा है। ऐसे समय में जब कोरोना के कारण पूरे देश में उथल-पुथल थी, इस सत्ताधारी पार्टी ने मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल चलने दिया, समस्या का समाधान नहीं किया, बल्कि पूंजीपतियों की जेब भरी। इन पूंजीपतियों को लाखों-करोड़ों रुपये का पैकेज दिया जा रहा है और यह आम आदमी से वसूला जा रहा है। देश, जो यहां के किसान-मजदूर की 70 साल की मेहनत के बाद बना है, उसे बेचा जा रहा है। ये लोग ही असली गद्दार हैं, आतंकवादी हैं।

प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि हमें स्वास्थ्य के मुद्दों के कारण फादर स्टेन स्वामी और गौतम नवलखा को इस प्रतीकात्मक उपवास में शामिल नहीं होने देने का निर्णय लेना पड़ा। अपने स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने आंदोलन में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। लेकिन सभी के विचारों का सम्मान करते हुए, उन्होंने कहा कि वह इस आंदोलन के समर्थन में भावनात्मक रूप से शामिल हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसानों द्वारा दिखाई गई एकता, संघर्ष की भावना और दृढ़ संकल्प हमारे सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत होंगे। हम उनके संघर्ष का पूरा समर्थन करते हैं और सभी बुद्धिमान नागरिकों से इस संघर्ष में पूरे दिल से शामिल होने ओर किसानों की आवाज उठाने का आग्रह करते हैं।

इस तरह से सुधीर ढावले, सुरेंद्र गाडलिंग, आनंद तेलतुंबडे, रोना विल्सन, हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गायचोर, महेश राउत, अरूण फरेरा, वर्नन गोन्साल्विस, फादर स्टेन स्वामी और गौतम नवलखा ने किसान आंदोलन को संयुक्त रूप से समर्थन दिया। 

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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