मॉडर्ना और फाइजर द्वारा केवल भारत सरकार से वैक्सीन डील करने के बयान के बाद देश के तमाम राज्यों द्वारा सीधे कंपनियों से कोरोना वैक्सीन खरीदने की कोशिशों कों करारा आघात लगा है। आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मीडिया में बयान देकर बताया है कि- “हमने वैक्सीन के लिए फाइजर, मॉडर्ना से बात की है और दोनों कंपनियों ने सीधे हमें टीके बेचने से मना कर दिया है। दोनों कंपनियों ने कहा है कि वो केवल भारत सरकार से डील करेंगे।
गौरतलब है कि केजरीवाल की टिप्पणी के एक दिन पहले पंजाब के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि मॉडर्ना ने सीधे राज्य सरकार को टीके देने से इनकार करते हुए कहा है वह केवल केंद्र के साथ बात करेगी।
गौरतलब है कि दिल्ली में वैक्सीन 18-44 आयु वर्ग के लोगों को वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। वैक्सीन की कमी के चलते मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 18-44 आयु वर्ग के लोगों के वैक्सीनेशन पर रोक लगाने का एलान किया था। और तो और वैक्सीन की कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकार लगातार केंद्र से मदद मांग रही है और वैक्सीन की कमी को दूर करने की बात कह रही है।
केंद्र सरकार द्वारा हाथ खड़े करने के बाद तमाम राज्य़ों के मुख्यमंत्री सीधे वैक्सीन कंपनियों से वैक्सीन खरीदने के लिये निविदायें आमंत्रित की थी। लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सोमवार को बताया कि वो लगातार वैक्सीन बनाने वाली कंपनी फाइजर और मॉडर्ना के संपर्क में थे और वैक्सीन की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब फाइजर और मॉडर्ना ने उनकी उम्मीद पर यह कहकर पानी फेर दिया है कि वे केवल भारत सरकार के साथ वैक्सीन की डील करेंगी।
दिल्ली में बंद हुआ 18-44 आयु वर्ग का टीकाकरण
दिल्ली के गृहमंत्री मनीष सिसोदिया ने आज एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में बताया है कि दिल्ली में टीके खत्म होने के बाद 18 से 44 साल आयु वर्ग के लोगों के लिए सभी 400 टीकाकरण केंद्रों को बंद कर दिया गया है। इसके साथ ही 45 साल से अधिक उम्र के लोगों, स्वास्थ्य कर्मियों तथा अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले लोगों के लिए कोवैक्सीन के केंद्रों को भी टीकों की कमी के कारण बंद किया गया है।
मनीष सिसोदिया ने आगे कहा है कि लोगों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए इस समय टीकाकरण बहुत जरूरी है और उन्होंने मॉडर्ना, फाइजर तथा जॉनसन एंड जॉनसन कंपनियों से टीकों के लिए बात की है लेकिन फाइजर और मॉडर्ना ने हमें सीधे टीके बेचने से इनकार कर दिया है और बताया है कि वे केंद्र से बात कर रही हैं। केंद्र ने फाइजर और मॉडर्ना को मंजूरी नहीं दी है वहीं पूरी दुनिया में इन्हें मंजूरी दी गयी है, और कई देशों ने इन टीकों की खरीदारी की है।
मनीष सिसोदिया ने कहा है कि कुछ देशों ने परीक्षण के स्तर पर ही टीकों को खरीद लिया लेकिन भारत ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। केंद्र सरकार ने 2020 में स्पुतनिक वैक्सीन को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था और पिछले महीने ही इसे मंजूरी दी।
मनीष सिसोदिया ने केंद्र की मोदी सरकार के मंसूबे पर सवाल खड़े करते हुये कहा है कि-“मैं केंद्र से अनुरोध करता हूं कि इस टीकाकरण कार्यक्रम को मजाक न बनाएं। राज्यों को फाइजर और मॉडर्ना से संपर्क करने के लिए कहने के बजाए युद्धस्तर पर इन्हें मंजूरी दें। ऐसा न हो कि जब तक हम टीका लगाएं, तब तक टीका लगवा चुके लोगों के एंटीबॉडी भी समाप्त हो जाएं और उन्हें फिर टीका लगवाने की जरूरत पड़ जाए।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था केंद्र खरीदे वैक्सीन
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले से ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए वैक्सीन नीति की आलोचना करते आ रहे हैं। गौरतलब है कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार की वैक्सीन नीति समस्या को और बिगाड़ रही है। भारत इसे झेल नहीं सकता। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार वैक्सीन खरीदे और इसके वितरण की जिम्मेदारी राज्यों की दी जानी चाहिए।
राहुल गांधी के उक्त प्रस्ताव को आज फाइजर और मॉडर्ना से नकारे जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दोहराते हुये कहा है कि मैं केंद्र सरकार से हाथ जोड़कर अपील करता हूं कि इन कंपनियों के साथ बात कर टीकों का आयात करें और उन्हें राज्यों के बीच वितरित करें।
वैक्सीन की खरीददारी पर मोदी सरकार की भ्रामक नीतियां
कोरोना टीकाकरण को लेकर केंद्र की डांवाडोल नीतियों के चलते भारत में टीकाकरण अभियान कमजोर पड़ रहा है। दरअसल केंद्र सरकार ने शुरू में कहा था कि कोरोना वैक्सीन की खरीद राज्य सरकारें नहीं कर सकतीं, लेकिन फिर बाद में मोदी सरकार ने कहा कि राज्य सरकारें अपने स्तर से कोरोना वैक्सीन की खरीद करें। इसके अलावा भारत में बन रहे टीकों (कोवैक्सिन और कोविशील्ड) के लिये राज्यों का कोटा भी सीमित कर दिया। अब जब तमाम राज्य ग्लोबल टेंडर के जरिये वैक्सीन की कमी पाटने की कोशिश कर रही हैं तो कोई भी कंपनी वैक्सीन सप्लाई के लिये आगे ही नहीं आ रही।
मार्च, 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने सदन में बताया था कि सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को टीका बनाने वाली कंपनियों से सीधी खरीद का कोई करार करने से मना किया है। लेकिन फिर 19 अप्रैल को केंद्र सरकार ने यू टर्न लेते हुये कहा कि राज्य अब कंपनियों से सीधे टीका खरीदें। इसके लिये केंद्र सरकार ने कोटा भी तय कर दिया और कंपनियों को राज्य सरकारों व निजी अस्पतालों के लिये अलग-अलग कीमत तय करने की भी छूट दे दी।
केंद्र सराकर के यू टर्न के बाद कंपनियां जो टीका केंद्र को 150 रुपए में दे रही हैं, वही टीका राज्य सरकारों को 400 रुपए में देने का एलान कर दिया। यह हाल तब है, जब केंद्र सरकार ने खुद कोर्ट में हलफनामा देकर बताया है कि कोरोना वैक्सीन विकसित करने के लिये सरकार ने किसी बी कंपनी को कोई अनुदान नहीं दिया है।
इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने मुफ्त टीका लगाने की योजना भी सीमित कर दी और कहा कि अब केवल सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीका लगेगा। ऐसे में राज्यों के ऊपर बोझ पड़ा और राज्यों ने ग्लोबल टेंडर के जरिये कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता सामान्य करने की पहल की। लेकिन हालत यह है कि राज्यों के टेंडर के जवाब में वैक्सीन सप्लाई के लिये कोई कंपनी आगे ही नहीं आ रही। बीएमसी ने 12 मई को एक करोड़ टीके की सप्लाई के लिये ग्लोबल टेंडर निकला और 18 मई की आखिरी तारीख तक जब कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया तो समय-सीमा एक हफ्ते के लिये आगे बढ़ाना पड़ा।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने अप्रैल में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिये सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को 3000 करोड़ और भारत बायोटेक को 1500 करोड़ रुपए एडवांस देने का एलान किया। फरवरी 2021 में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने एलान किया था कि टीकाकरण के लिये 35,000 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है और ज़रूरत पड़ने पर और रकम दी जाएगी।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार दोनों कंपनियों से खुद 150 रुपये प्रति डोज की जिस दर पर वैक्सीन खरीद रही है, उस दर से 35000 करोड़ रुपए में करीब 88 करोड़ लोगों को (सौ रुपए प्रति व्यक्ति अतिरिक्त खर्च जोड़ कर भी) दोनों डोज दी जा सकती है। लेकिन 10 मई को वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि 35,000 करोड़ का जो प्रावधान किया गया था, उससे टीका खरीद कर राज्यों को दिया जा रहा है। यह रकम राज्यों को हस्तांतरण के मद में रखा गया था और इसका यह मतलब नहीं कि केंद्र इस रकम को खर्च नहीं कर सकता।
केंद्र सरकार की टीका नियंत्रण नीति
केंद्र की मोदी सरकार न तो खुद पर्याप्त कोरोना टीके का इंतजाम कर पा रही है, न ही राज्यों को वैक्सीन खरीद के पैसे दे रही है, बावजूद इसके केंद्र सरकार राज्यों द्वारा कोरोना वैक्सीन की खरीद पर अपना नियंत्रण बनाये हुए है। केंद्र ने 9 मई, 2021 को सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि वह कंपनियों के साथ मिलकर तय करती है कि कौन सा राज्य कितने टीके खरीदेगा। केंद्र हर राज्य को महीने का कोटा लिख कर देता है। इसमें तय संख्या से ज्यादा टीका राज्य सरकारें नहीं खरीद सकतीं। आखिर केंद्र सराकर ऐसा क्यों कर रही है। क्या उसे इस बात का डर है कि अगर गैर भाजपा शासित राज्यों ने ज़्यादा वैक्सीन खरीदकर अपने राज्य के हर एक नागरिक का टीकाकरण कर दिया तो भाजपा शासित राज्यों पर दबाव बढ़ेगा और आने वाले चुनावों में इसका खामियाजा मोदी की पार्टी भाजपा को उठाना पड़ेगा।
राज्यों ने सीधे वैक्सीन खरीदने के लिये जारी की है निविदायें
18-44 आयु वर्ग के बीच बढ़ती वैक्सीन की मांग और खुराक की कमी के ख़िलाफ़, कई राज्यों ने कोविड के टीके खरीदने के लिए वैश्विक निविदाएं जारी की हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने वैक्सीन की 5 करोड़ खुराक के लिए वैश्विक निविदायें आमंत्रित की है जिसकी अंतिम तिथि 26 मई है। महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक एन रामास्वामी ने मीडिया में कहा है- “हमने स्पुतनिक को एक मेल लिखा लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।” वहीं सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र सरकार मॉडर्ना, फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन तक भी पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। गौरतलब है कि महाराष्ट्र को 18-44 आयु वर्ग के 5.7 करोड़ लोगों के टीकाकरण के लिए 12 करोड़ वैक्सीन खुराक की आवश्यकता है। इस बीच, बीएमसी को अपने वैश्विक निविदा के लिए तीन प्रतिक्रियाएं मिली हैं, लेकिन इन आवेदनों में दस्तावेज़ीकरण की कमी है।
वहीं उत्तर प्रदेश की प्रदेश सरकार की यूपी राज्य चिकित्सा आपूर्ति निगम लिमिटेड ने 7 मई को 4 करोड़ खुराक के लिए एक वैश्विक निविदा जारी की थी। जैसा कि इच्छुक वैक्सीन निर्माताओं ने मिलने में असमर्थता व्यक्त की थी। भंडारण और आपूर्ति आवश्यकताओं में से कुछ, राज्य सरकार ने बाद में मानदंडों में ढील दी – टीकों के निर्माताओं को माइनस 20 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर संग्रहीत और परिवहन करने की अनुमति दी। साथ ही सुरक्षा राशि को 16 करोड़ रुपये से घटाकर 8 करोड़ रुपये कर दिया। हालांकि, विक्रेताओं को टीकाकरण केंद्र तक भेजे जाने तक टीके के परिवहन और सुरक्षित भंडारण की “सुविधा” देनी होती है – जिसमें -20 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान की आवश्यकता होती है। तकनीकी बोली खोलने की अंतिम तिथि 31 मई तक बढ़ा दी गई है।
तमिलनाडु में तमिलनाड़ु चिकित्सा सेवा निगम ने 15 मई को 3.5 करोड़ टीकों की खरीद के लिए एक निविदा जारी की थी। निविदा जमा करने की अंतिम तिथि 5 जून है।
केरल राज्य की केरल मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने 22 मई को तीन करोड़ खुराक के लिए निविदाएं जारी कीं है। 25 मई को एक प्री-बिड मीटिंग होगी।
कर्नाटक राज्य में दो करोड़ टीकों के लिए राज्य सरकार की निविदा को 50 की आपूर्ति के लिए चार निविदाओं में विभाजित किया गया है। प्रत्येक की कुल लागत 843 करोड़ रुपये है। निविदा की अंतिम तिथि 24 मई है।
पश्चिम बंगाल की नवनिर्वाचित सरकार का प्रशासन वैश्विक निविदा की संभावना का मूल्यांकन कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि वह मंजूरी देने के लिए तैयार हैं।
वहीं पुणे नगर निगम और पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम में शामिल होने के लिए तैयार अन्य लोगों ने संयुक्त रूप से निर्माता से सीधे टीके खरीदने के लिए वैश्विक निविदाएं जारी करने का फैसला किया है।
गोवा राज्य भी कोविड के टीकों की खरीद के लिए एक वैश्विक निविदा जारी करेगा।
सरकार ने 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण के लिये नियम में बदलाव किया
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वैक्सीन लगवाने के नियम में बदलाव किया है। अब 18 से 44 साल के लोग बिना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के भी वैक्सीन लगवा सकेंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘कोविन’ एप पर 18 से 44 साल के लिए ऑन साइट रजिस्ट्रेशन व अपॉइंटमेंट शुरू कर दिया है। ये सुविधा वर्तमान में केवल सरकारी कोविड टीकाकरण केंद्रों (CVCs) के लिए ही है। ये सुविधा वर्तमान में निजी कोविड वैक्सीन सेंटर के लिए उपलब्ध नहीं होगी और निजी सीवीसी को अपने टीकाकरण कार्यक्रम को विशेष रूप से ऑनलाइन अपॉइंटमेंट के लिए स्लॉट के साथ प्रकाशित करना होगा।
दरअसल, कई लोग वैक्सीन के लिए स्लॉट बुक बुक करने के बाद भी टीका लगवाने के लिए सेंटर पर नहीं पहुंचते हैं और इस कारण टीकों के खराब होने की खबरें आ रही थीं। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह फैसला लिया है। इसके अलावा ग्रामीण स्तर पर ऑनलाइन बुकिंग के बारे में जानकारी के अभाव के चलते भी लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)
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