प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister’s Office) ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि ‘पीएम केयर्स’ भारत सरकार का फंड नहीं है। क्योंकि इसका पैसा भारत सरकार के खजाने में नहीं जाता है। यह आरटीआई (RTI) के तहत नहीं आता है इसलिए इससे संबंधित कोई सूचना नहीं दी जा सकती है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से दी गई दलीलों के पीछे छिपे मंसूबों का विश्लेषण करें तो मैसेज साफ है, ‘पीएम केयर्स फंड’ नमो नारायण की संस्था मात्र है। इसे कहते हैं, “एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी।”
विदित हो कि इससे पहले भी अप्रैल, 2020 में कैग के हवाले से कहा गया था कि इन इमरजेंसी सिचुएशंस फंड (Prime Minister’s Citizen Assistance And Relief In Emergency Situations Fund) अर्थात ‘पीएम केयर्स फंड’ का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ( Comptroller and Auditor General-CAG) द्वारा अंकेक्षण यानी ऑडिट नहीं करवाया जाएगा। कैग के हवाले से यह बताया गया था कि चूंकि यह फंड व्यक्तियों और संगठनों के दान पर आधारित है, इसलिए हमें इस चैरिटेबल ट्रस्ट के ऑडिट का कोई अधिकार नहीं है। ट्रस्टियों द्वारा नियुक्त स्वतंत्र लेखा परीक्षकों द्वारा ही पीएम केयर्स फंड की रकम की ऑडिट की जाएगी। यानि रकम कहां से आयी, कितनी रकम आयी, किस प्रकार खर्च हुई आदि किसी जानकारी का कोई सरकारी दस्तावेज नहीं होगा।
इसके बाद ट्रस्ट डीड की एक प्रति पीएम केयर्स फंड द्वारा दिसंबर 2020 में अपनी वेबसाइट पर जारी की गई थी। ट्रस्ट डीड की इस प्रति के अनुसार पीएम केयर्स फंड संविधान द्वारा या उसके तहत या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा नहीं बनाई गई है।
अब सरकार एक बार फिर से अपनी पुरानी दलील को दुहरा रही है। दिल्ली हाईकोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से यह जवाब सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है, जिसमें पीएम केयर्स फंड को सरकारी घोषित करने की मांग की गई है। सम्यक गंगवाल की याचिका में कहा गया है कि पीएम केयर्स कोष एक ‘राज्य’ है क्योंकि इसे 27 मार्च, 2020 में प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के मद्देनगर भारत के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था।
प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने दिल्ली हाईकोर्ट में सौंपे एक जवाब में कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-12 के तहत ये ट्रस्ट सरकारी हो या ना हो, या फिर सूचना का अधिकार कानून की धारा 2 (एच) के तहत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ हो या न हो, लेकिन आरटीआई कानून की धारा आठ की उपधारा (आई) एवं उपधारा (जे) के अनुसार थर्ड पार्टी से संबंधित कोई भी जानकारी नहीं दी जा सकती है।
मालूम हो कि संविधान के अनुच्छेद-12 (Article 12) में राज्य की परिभाषा दी गई हैं। जबकि आरटीआई एक्ट (IT Act) की धारा 2 (एच) में ‘पब्लिक अथॉरिटी (public authority)’ की परिभाषा दी गई है और ये बताया गया है कि किस तरह के संस्थान इसके दायरे में आतें है।
दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र की तरफ से अपर सचिव प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने अदालत को बताया कि, “ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ काम करता है और इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है, जो भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा तैयार पैनल से एक चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं।”
श्रीवास्तव के द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दी गई इस दलील में भी भ्रामक सूचना को परोसा गया है क्योंकि इससे पहले कैग के हवाले से जो जानकारी दी गई थी उसमें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि, “कैग के पास इस चैरिटेबल ट्रस्ट के ऑडिट का कोई अधिकार नहीं है। ट्रस्टियों द्वारा नियुक्त स्वतंत्र लेखा परीक्षकों द्वारा ही पीएम केयर्स फंड की रकम की ऑडिट की जाएगी। यानी सरकार के ही दोनों दलीलों में ही विरोधाभाष (contradiction) है।
बरहाल बहस का सबसे अहम मुद्दा यह है कि आख़िर सरकार ‘पीएम केयर्स फंड’ को सरकारी फंड कहने से बचना क्यों चाहती है? और जब पीएम केयर्स फंड की आय-खर्च पारदर्शिता के साथ हुई है तो इसके संदर्भ में सूचना देने में आनाकानी क्यों ?
सरकार की इस दलील के बाद एक बार फिर से ‘सरकारी समर्थित लूट’ के इस फंड पर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
कोरोना संक्रमण के भयंकर आपदा में भी अपने ही देश की जनता के रकम को लूटने की ऐसी अनोखी स्कीम दुनिया के किसी भी देश में यक़ीनन देखने को नहीं मिलेगी।
बता दें कि कोरोना वायरस के संक्रमण से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम सिटिजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशंस फंड (पीएम केयर्स फंड) की घोषणा ख़ुद अपने ट्विटर अकाउंट से 28 मार्च 2020 को किया, और देश के नागरिकों और पूंजीवादी कॉरपोरेट घरानों से इस फंड में दान करने की अपील की। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस फंड में जो पैसा आएगा, उससे कोरोना वायरस के खिलाफ चल रहे युद्ध को मजबूती मिलेगी।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री द्वारा बनाए गए इस ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसके अलावा इस ट्रस्ट के सदस्यों में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी शामिल हैं। प्रारम्भ में सरकार की ओर से बयान जारी कर कहा गया कि कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी से उत्पन्न किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट से निपटने के प्राथमिक उद्देश्य से एक विशेष राष्ट्रीय कोष बनाने की आवश्यकता है, और इसी को ध्यान में रखते हुए और इससे प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए ‘पीएम केयर्स फंड’ के नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया गया है। अब अहम सवाल यह है कि-
● जब यह ट्रस्ट सरकारी नहीं है तो प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, वित्तमंत्री किस हैसियत से इस ट्रस्ट का हिस्सा हैं ?
● प्रधानमंत्री, ट्रस्ट से जुड़े अन्य मंत्री, सरकार की एजेंसियां एवं बीजेपी के नेता इसे सरकारी कोष की तरह क्यों प्रचारित किया ?
● कोरोना संकट के बीच ‘पीएम केयर्स फंड’ को पूरी तरह से सरकार की पहल की तरह पेश किया गया। पीएम का नाम, उनकी तस्वीर, राष्ट्रीय चिन्ह, सरकारी वेबसाइट (gov.in) और पीएम दफ्तर के पता का प्रयोग कैसे हुआ ?
● जब सरकार किसी भी तरह से इस ट्रस्ट को नियंत्रित नहीं करती है तो सरकार किस आधार पर यह दावा कर रही है कि ट्रस्ट पूरी पारदर्शिता के साथ कार्य कर रही है?
● जब “प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष” (Prime Minister’s National Relief Fund) यानी (PMNRF) पहले से ही है तो ऐसे में “पीएम केयर्स फंड” की नई स्कीम की आवश्यकता क्यों?
यहां यह भी समझना आवश्यक है कि भारत में इस प्रकार के किसी भी ट्रस्ट का गठन और क्रियान्वयन इंडियन ट्रस्ट एक्ट, 1882 के तहत होता है। किसी भी धर्मार्थ ट्रस्ट के लिए यह जरूरी होता है कि उसकी एक ट्रस्ट डीड बने जिसमें इस बात का स्पष्ट जिक्र होता है कि संबंधित ट्रस्ट किन उद्देश्यों के लिए बना है, उसकी संरचना क्या होगी और वह कौन-कौन से काम किस ढंग से करेगा, इसके बाद ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन होता है। लेकिन सरकार ने कोर्ट में यह साफ कर दिया कि पीएम केयर्स फंड’ की ट्रस्ट डीड, और इसके रजिस्ट्रेशन आदि की भी कोई जानकारी अब सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
इस फंड के बारे में 29 मार्च 2020 को देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और कॉरपोरेट मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पीएम केयर्स फंड में दी जाने वाली राशि को कंपनियों की CSR (Corporate social responsibility) के मद में शामिल किया जाएगा। तथा इस कोष में दी जाने वाली दान राशि पर धारा 80 (जी) के तहत आयकर से छूट दी जाएगी।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि भारत या भारत से बाहर के लोग और संस्था भी पीएम केयर्स फंड में दान दे सकते हैं। उच्चायोगों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई मीटिंग में पीएम केयर्स ट्रस्ट के लिए विदेश से भी चंदा लेने की जरूरतों पर जोर दिया गया था। मोदी सरकार ने कहा है कि पीएम केयर्स फंड में विदेशी फंड भी स्वीकार किए जाएंगे ताकि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को और गति प्रदान किया जा सके। हालांकि विदेशी चंदे के मुद्दे पर जब विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा तो सरकार की ओर से सफाई दी गयी कि पीएम केयर्स फंड केवल उन व्यक्तियों और संगठनों से दान और योगदान स्वीकार करेगा जो विदेशों में आधारित हैं और यह प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के संबंध में भारत की नीति के अनुरूप है।
मसला न केवल बेहद संगीन है बल्कि आपराधिक भी है। फ़िलहाल तो देश यह जानना चाहता है कि कोरोना जैसी वैश्विक आपदा के इस कठिन वक्त में पीएम केयर्स फंड में जमा रकम का प्रयोग कहाँ किया जा रहा है।
हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस अमित बंसल की बेंच ने इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है। लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि अदालती कार्यवाही से इतर देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए पीएम केयर्स फंड के संदर्भ में उठने वाली तमाम शंकाओं को दूर करते हुए पूरी पारदर्शिता के साथ ‘पीएम केयर्स फंड’ को सरकारी घोषित करेंगे अथवा पीएम केयर्स फंड में जमा रकम पहले से गठित ‘प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष (PMNRF) में ट्रांसफर कर एक जिम्मेवार और ईमानदार सरकार की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेंगे।
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