Friday, June 9, 2023

दया नंद

आक्सफैम ने किया भारत की विषमता को बेपर्दा

जिस देश में 16,091 व्यक्ति दिवालिया या कर्ज में डूबे होने के कारण तथा 9,140 व्यक्ति बेरोजगारी के दंश के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं, उस देश के मात्र 21 लोगों की संपत्ति देश की 70 करोड़ लोगों...

भूख के पैमाने पर भारत फिसड्डी

दुनिया भर के देशों में भूख और पोषण का आकलन करने वाली ‘वैश्विक भूख सूचकांक’(Global Hunger Index- GHI)- 2021 जारी कर दिया गया है। इस सूचकांक में भारत की स्थिति पिछले वर्ष के मुकाबले और अधिक बदतर हालात में...

पीएम केयर्स फंड: सरकारी साधनों से इकट्ठा किए गए धन का आखिर निजी इस्तेमाल क्यों?

प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister's Office) ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि 'पीएम केयर्स' भारत सरकार का फंड नहीं है। क्योंकि इसका पैसा भारत सरकार के खजाने में नहीं जाता है। यह आरटीआई (RTI) के तहत नहीं आता है इसलिए...

जाति जनगणना आखिर क्यों है जरूरी

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व कद्दावर समाजवादी नेता लालू प्रसाद यादव ने जातिगत जनगणना को लेकर एक ट्वीट किया जो सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। लालू यादव ने अपने ट्वीट में लिखा, "अगर 2021 जनगणना...

विरोध को कुचलने का हथियार बन गयी है राजद्रोह की धारा 124ए

"प्रधानमंत्री आतंकी हमले और मौत का इस्तेमाल वोट के लिए कर रहे हैं"  यही वो बयान है जो वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ ने अपने यूट्यूब शो में कहा था, जिसके आधार पर उन पर राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया...

‘भरोसे की प्रतीक’ एलआईसी अब किसके भरोसे?

सरकार की अयोग्यता और ख़राब आर्थिक नीतियों के कारण बेदम और बदहाल अर्थव्यवस्था अब बर्बादी की कब्रगाह बन चुकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को आम बजट पेश किया और बजट पेश करने के साथ ही उन्होंने...

प्रशांत भूषण अवमानना मामला: कहीं किसी दबाव में तो नहीं है सुप्रीम कोर्ट?

तारीख 12 जनवरी 2018 तो याद ही होगा ...यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का वह दिन है जब विशाल लोकतांत्रिक देश की संविधान रक्षक सर्वोच्च संवैधानिक संस्था सुप्रीमकोर्ट (उच्चतम न्यायालय) के तत्कालीन सर्वेसर्वा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, चीफ जस्टिस ऑफ...

ख्वाबों के परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गए सचिन

एक कहावत है - "उसी के साहिल, उसी के कगारे, तलातुम में फंस कर जो दो हाथ मारे" कांग्रेस की नैया भीषण मंझधार में हिचकोले खा रही है और इस बुरे दौर में जिन युवाओं की तरफ आस भरी निगाहों से पार्टी...

विकास की गिरफ्तारी या फिर सत्ता के संरक्षण में पूर्व नियोजित सरेंडर?

लंबी लुका-छिपी के बाद विकास दुबे का पकड़ा जाना कानपुर पुलिस हत्याकांड का पटाक्षेप नहीं बल्कि अपराध-राजनीति-पुलिस गठजोड़ के ड्रामे का एक कौतूहल भरा और चौंकाने वाला दृश्य मात्र है, क्योंकि कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी जिस नाटकीय...

कॉरपोरेट लूट की वेदी पर अब भारतीय रेलवे के बलि की तैयारी

इंडियन रेलवे जिसे 'आम भारतीय जनमानस की जीवन रेखा' कहा जाता रहा है, अब इसके जीवन की बागडोर कॉरपोरेट के हाथों होगी। और भारतीय रेलवे की धड़कनें पूँजीवादी शोषकों के इशारों पर निर्देशित होंगी। ऐसा नहीं कि अचानक से भारतीय...

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अन्याय के 1000 दिन, प्रतिरोध और आंदोलन के हजार दिन!

नई दिल्ली। “यह 1000 दिनों की कैद के साथ-साथ 1000 दिनों का प्रतिरोध भी है। उमर खालिद यह सुनकर...