केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पारित

पंजाब विधानसभा में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ बाकायदा प्रस्ताव पारित किया गया। एकसुर में कहा गया कि केंद्र के ये अध्यादेश ‘काले कानून’ हैं और किसान तथा किसानी को सिरे से तबाह करने वाले हैं। राज्य के कृषि मंत्री रणदीप सिंह नाभा ने इन अध्यादेशों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव रखते हुए कहा कि तीनों कृषि कानून दरअसल संघीय ढांचे पर केंद्र की ओर से राज्यों के अधिकारों पर सीधा हमला तो हैं ही बल्कि अन्नदाता के हितों की हत्या भी हैं।                         

विधानसभा में कहा गया कि किसान हितों की हिफाजत के लिए इन कानूनों को फौरन रद्द किया जाए। पंजाब विधानसभा के विशेष तौर पर बुलाए गए सत्र में इस पर चिंता जाहिर की गई कि राज्यसभा में विवादित अध्यादेशों के पास होने पर विरोधी पक्ष की संख्या के आधार पर विभाजन की मांग को नामंजूर किया गया था।                                             

कृषि मंत्री रणदीप सिंह नाभा ने प्रस्ताव में कहा कि समवर्ती सूची की एंट्री-33 व्यापार व वाणिज्य से संबंधित है और कृषि न तो व्यापार है और न ही वाणिज्य सेवा वाबस्ता हैं। किसान व्यापारी नहीं हैं और उनका संबंध व्यापारिक गतिविधियों से भी नहीं है। कृषक सिर्फ उत्पादक अथवा काश्तकार हैं। वे अपनी उपज को एसीएमजी मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर या आढ़ती द्वारा निर्धारित कीमत पर बेचने के लिए लाते हैं।                           

विधानसभा ने केंद्र सरकार की तरफ से समवर्ती सूची की एंट्री-33 (बी) में खाद्य पदार्थ शब्द को कृषि सामग्री (कृषि उपज) के समान होने की गलत व्याख्या करके संसद को गुमराह करने की निंदा की और कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से जो सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता था, उसे परोक्ष तौर पर किया गया।                                                 

राज्य विधानसभा ने केंद्र सरकार को याद करवाया कि एपीएमसी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता और मंजूरी है। ये राज्य के कानून हैं जो इस धारणा के अधीन बनाए गए हैं कि कृषि और कृषि का मंडीकरण राज्य का विषय है। एपीएमसी एक्टों के अधीन स्थापित की गई नियमित मंडियों की एक कानूनी बुनियाद है।         

कृषि मंत्री नाभा ने कहा कि किसान लंबे अरसे से कृषि अध्यादेशों के विरोध में आंदोलनरत हैं और केंद्र सरकार समाधान की तरफ कोई कदम नहीं बढ़ा रही। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि पंजाब सरकार हर तरह से किसानों के साथ है।                                           

गौरतलब है कि लगभग एक साल से किसान केंद्र सरकार के तीनों कृषि अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा शमहूलियत पंजाब के किसानों की है। खिलाफत में जारी धरना-प्रदर्शन के दौरान सूबे के लगभग 100 से ज्यादा किसानों की जान जा चुकी है। लेकिन केंद्र सरकार ने किसी की सुध नहीं ली। अलबत्ता पंजाब सरकार ने अपने तईं सबको आर्थिक राहत दी। राज्य सरकार की राहत राशि सुदूर लखीमपुर खीरी तक भी पहुंची, जहां किसान कृषि अध्यादेशों का विरोध करते हुए अपनी जान गंवा बैठे।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट)

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