17 साल पहले आई सुनामी ने लिखा था तबाही का नया अध्याय

17 साल पहले हिंद महासागर में आई सुनामी ने भारत समेत दुनिया के कई देशों में भारी तबाही मचाई थी। 26 दिसंबर, 2004 का वह दिन इतिहास में दुखों का ऐसा अध्याय लिख गया, जिसे याद करने मात्र से ही सिहरन पैदा हो जाती है। 

अकेले भारत में ही सुनामी से 12 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 3 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। सबसे ज्यादा 8 हजार मौतें तमिलनाडु में हुई थीं। इसके अलावा अंडमान-निकोबार में 3 हजार से ज्यादा, पुदुचेरी में 599, केरल में 177 और आंध्र प्रदेश में 107 लोगों की मौत हुई थी। सुनामी से श्रीलंका में 13 और मालदीव में 1 भारतीय की मौत हुई थी।

इंडोनेशिया का एक दृश्य।

आज ही के दिन हिंद महासागर में आए 9.15 की तीव्रता वाले भयानक भूकंप के बाद सुनामी की लहरें उठी थीं। इस सुनामी की वजह से समुद्र में करीब 100 फीट ऊंची लहरें उठी थीं। सुनामी की इन लहरों ने भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाइलैंड, म्यांमार, मेडागास्कर, मालदीव, मलेशिया, सेशेल्स, सोमालिया, तंजानिया और केन्या में भारी तबाही मचाई थी।

बता दें कि इस सुनामी से देश को करीब 12 हजार करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। 

सुनामी ने भारत के अलावा जिन 12 देशों को प्रभावित किया था उनके यहां मरने वालों की संख्या 2 लाख से ज्यादा थी। सुनामी ने सबसे ज्यादा प्रभावित इंडोनेशिया और श्रीलंका को किया था, सुनामी के कारण इन दोनों देशों में 18 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। 50 हजार लोग लापता हो गए थे।

इंडोनेशिया में इस आपदा से 1 लाख 28 हजार लोग मारे गए थे और 37 हजार से ज्यादा लापता हो गए थे। उसके बाद श्रीलंका में 35 हजार से ज्यादा लोगों की या तो मौत हुई थी या लापता हो गए थे।

हिंद महासागर में आए भूंकप के बाद जब सुनामी आई और पानी की ऊंची-ऊंची लहरें करीब 800 किलोमीटर प्रति घंटे की बिजली की रफ्तार से तटीय इलाकों में पहुंचीं, तो लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला। इसके बाद भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया जैसे देशों से हजारों लोग मौत की नींद सो गए। इस सुनामी से भारत के हजारों मछुआरे लापता हो गए थे। बाद में कइयों के शव समुद्र से बहकर तटों की ओर वापस आए थे।

26 मई 2017 को जर्नल साइंस में पब्लिश हुई रिसर्च में सामने आया कि 26 दिसंबर 2004 को आई इस तबाही का कारण हिमालय पर्वत था। दरअसल, सुमात्रा में आए भूकंप का केंद्र हिंद महासागर में 30 किलोमीटर की गहराई में रहा, जहां भारत की टेक्टोनिक प्लेट आस्ट्रेलिया की टेक्टोनिक प्लेट की सीमा को छूती है।

हजारों वर्षों से हिमालय और तिब्बती पठार से कटने वाली तलछट गंगा और अन्य नदियों के जरिए हजारों किलोमीटर तक का सफर तय कर हिंद महासागर की तली में जाकर जमा होती रही। हिंद महासागर की तली में जमा होने वाली ये तलछट प्लेटों के बॉर्डर पर भी इकट्टा हो जाती है, जिसे सब्डक्शन जोन भी कहते हैं, जो तबाही मचाने वाली सुनामी का कारण बनती है।

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