‘अग्निपथ’ हिंदुओं के सैन्यीकरण का कोई संघी प्रकल्प तो नहीं है ! 

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मोदी सरकार ने भारतीय सेना में भर्ती के एक अजीबोग़रीब प्रकल्प को अपनाया है । प्रकल्प को नाम दिया गया है – अग्निपथ । इस प्रकल्प में पहले 17 से 21 साल के कुछ हज़ार नौजवानों को छः महीनों के सैन्य प्रशिक्षण के लिए चुना जाएगा और बाद में उनमें से 25 प्रतिशत को चार साल के बाद सेना की नियमित टुकड़ियों में शामिल किया जायेगा। 

नियमित सेना में भर्ती के लिए प्रशिक्षण के अपने सख़्त नियम और अवधि होती है। इसके साथ किसी भी प्रकार का समझौता सेना की दक्षता के साथ समझौता कहलायेगा। इस मामले में किसी भी प्रकार की ढिलाई का कोई सैन्य औचित्य नहीं हो सकता है ।

तब सवाल उठता है कि आख़िर यह किया क्यों जा रहा है, जिससे हमारी सेना की दक्षता साथ खिलवाड़ का ख़तरा पैदा होता है? ऊपर से, यह प्रकल्प सैनिकों के अंदर एक विभाजन भी पैदा करेगा। कुछ सैनिक एक साल के प्रशिक्षण वाले होंगे और कुछ सिर्फ़ छः महीनों के । 

इससे स्वाभाविक तौर पर मोदी सरकार की मंशा पर गहरा संदेह पैदा होता है। 

जो लोग भी आरएसएस और उसके उद्देश्यों के बारे में जानते हैं, वे जानते हैं कि हिन्दुओं का सैन्यीकरण आरएसएस के गठन के वक्त से ही उसका एक घोषित लक्ष्य रहा है। संघ के ‘हिंदुत्व’ का यह एक प्रमुख लक्ष्य है। 

संघ के शिविरों में शस्त्र पूजा और लाठी भांजने आदि के कार्यक्रमों के पीछे मूलतः हमेशा यही लक्ष्य काम करता है । हर कोई जानता है कि मोदी जितने भारत के प्रधानमंत्री हैं, उससे अधिक आज भी संघ के प्रचारक बने हुए हैं । इसीलिए मुसलमानों के प्रति नफ़रत और हिंसा के हर अभियान को उनका मूक समर्थन रहता है ।

इसीलिए यह स्वाभाविक सवाल उठता है कि कहीं मोदी सरकार के ‘अग्निपथ’ प्रकल्प का संघ के ‘हिंदुओं के सैन्यीकरण’ के कार्यक्रम से कोई संबंध तो नहीं है ? 

मोदी सरकार के अन्य कई अभियानों की तरह ही क्या यह राष्ट्र की क़ीमत पर संघ के कार्यक्रम पर अमल का कोई कदम तो नहीं है ? 

भारतीय सेना के खर्च पर तैयार किए जाने वाले ‘अग्निवीर’ भारत की रक्षा के लिए तैयार किए गए सैनिक होंगे या भारत में संघ के सांप्रदायिक एजेंडा पर काम करने वाले स्वयंसेवक ? 

‘अग्निपथ’ प्रकल्प को बहुत गहराई से समझने और उस पर नज़र रखने की ज़रूरत है ।

(अरुण माहेश्वरी लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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