ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली के ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों को डिमांड और बाजार का है इंतजार

चंदौली (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश स्थित चंदौली के खेतों में हरी-हरी पत्तियों समेत कंधे तक लंबे ब्लैक राइस (चखाओ) के पौधे लहलहा रहे हैं। इन दिनों बालियां, दाने पड़ने व पकने की वजह से झुक गई हैं। जो राह चलते किसी भी राहगीर का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच रही हैं। कर्मनाशा नदी के मैदानी भाग में स्थित बरहनी विकास खंड, चंदौली, चकिया और चहनियां में बगैर रासायनिक खाद और कीटनाशक के इस्तेमाल से ब्लैक राइस की खेती की गई है। स्वस्थ और दाने से लकदक फसल देख किसानों के चेहरे पर संतोष का भाव है। सैकड़ों किसानों को उम्मीद है इस साल कि ब्लैक राइस की पैदावार के बाद अनाज की बिक्री के लिए अच्छा बाजार मिल जाएगा। मणिपुर के ब्लैक राइस को भौगोलिक संकेत (GI) टैग भी मिला है। ब्लैक राइस को मणिपुर में चखाओ के नाम से जाना जाता है। 

जलालपुर के धनंजय मौर्य वर्ष 2021 में हुए ब्लैक राइस की उपज के साथ।

हाल के तीन वर्षों में छह सौ से अधिक किसानों ने सैकड़ों हेक्टेयर में बड़े पैमाने पर ब्लैक राइस की बड़े पैमाने पर खेती की। गंगा, कर्मनाशा और चन्द्रप्रभा के मैदानों ने किसानों का भरपूर साथ दिया और बंपर पैदावार हुई। चंदौली में पैदा किये गए औषधीय गुणों वाले ब्लैक राइस ने जल्द ही देश से निकलकर विदेशों में भी धूम मचा दिया। देश के बड़े महानगरों में शुमार दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु और पंजाब के शहर के साथ-साथ विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात में अच्छी कीमत में ब्लैक राइस बिक गया। इस सफलता के बाद से फिर चंदौली के किसानों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2021 में डिमांड और बाजार नहीं मिलने से चंदौली कृषि मंडी के गोदाम में तकरीबन पांच सौ क्विंटल और इतना ही किसानों के पास रखा हुआ है। लिहाजा, उत्साहजनक बाजार नहीं मिलने से वर्ष 2021 में खरीफ सीजन में ब्लैक राइस की खेती का रकबा 100 हेक्टेयर से घटकर 50 हेक्टेयर पर आ गया। फिर भी कम लागत में बेहतर मुनाफा देने वाली ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों का मोह भंग नहीं हुआ है।  

ब्लैक राइस।

बरहनी विकास खंड के अमड़ा गांव के 55 वर्षीय किसान शशिकांत राय तीन सालों से ब्लैक राइस की खेती करते आ रहे हैं। इन्होंने अपनी उपज बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमाया। “साल 2020 में 250 से अधिक किसानों का एक हजार से अधिक क्विंटल ब्लैक राइस पंजाब और मुंबई को 8500 रुपए प्रति क्विंटल के दर से बिक गया। वर्तमान समय में चंदौली कृषि मंडी में 500 क्विंटल ब्लैक राइस पहुंच गया है। इसकी बिक्री के लिए फर्मों से बातचीत की जा रही है। यदि मुनाफे को देखें तो आम धान की खेती में अधिक पानी, यूरिया, डीएपी, फास्फोरस, पोटास और कीटनाशक डालना पड़ता है। लेकिन, ब्लैक राइस में बिना रासायनिक खाद के इस्तेमाल से अच्छी उपज मिल रही है। हमारे यहां से सोनभद्र, गाजीपुर, प्रयागराज और मिर्जापुर के किसान बीज ले गए और खेती  कर रहे हैं। वर्तमान में मिलिंग (धान से छिलका हटाने की हाईटेक मशीन) की व्यवस्था नहीं  है। बाहरी डिमांड कम होने से लोकल में 60 से 70 रुपए प्रति किलो की दर से उपज बेचनी पड़ रही है।” उन्होंने ने कहा। 

वाराणसी के व्यापार सेंटर में एक स्टॉल पर बिक्री के लिए रखा गया ब्लैक राइस।

चंदौली विकास खंड के कांटा-जलालपुर के किसान धनंजय मौर्य ने साल 2020 में एक बीघे में ब्लैक राइस की रोपाई करवाई थी। पहली बार पारंपरिक लीक से हटकर की गई ब्लैक राइस की खेती में कम लागत से आशातीत उपज हुई। धनंजय कहते हैं कि ”मैं भी जनपद में ब्लैक राइस की खेती करने वाले पहले कुछ किसानों में से था।  ब्लैक राइस की खेती में लागत कम और मुनाफा अधिक है। मेरी पहले साल ही उपज को मंडी पहुंचाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। आस पास के जिलों के लोग आये और 60-70 रुपए प्रतिकिलो की दर से खरीद कर ले गए।

चंदौली कृषि विभाग द्वारा जारी ब्लैक राइस के आंकड़े।

इसके पहले मैंने 30 से 40 रुपए प्रति किलो के हिसाब से अन्य धानों का चावल बेचा था। लेकिन, यहां तो ब्लैक राइस का धान ही अच्छी कीमत पर बिक रह है। अब भी ब्लैक राइस का बीज रखा हूं। बाजार मिलना शुरू हो जाए तो फिर से ब्लैक राइस की खेती शुरू करूंगा। राज नारायण कुशवाहा, बलवंत सिंह, लक्ष्मण प्रसाद, टाइगर सिंह, त्रिलोकी सिंह, रामविलास मौर्य, राजनाथ मौर्य, पिंटू, चांदेव, रणजीत प्रसाद, विकास, संतोष, झारखण्डे सिंह, प्रेम समेत कई किसानों का कहना है कि ब्लैक राइस की डिमांड बढ़ेगी तो ये हम लोग ब्लैक राइस की खेती कर सकते हैं। 

वाराणसी के व्यापार सेंटर में ब्लैक राइस के स्टॉल पर चंदौली के रामनरेश पाल।

चंदौली जनपद में बरहनी, सकलडीहा, चहनियां, चंदौली, चकिया, शहाबगंज और मुगलसराय आदि विकासखंडों में सैकड़ों किसानों ने ब्लैक राइस की खेती करते आ रहे हैं। चूंकि, बरहनी में कर्मनाशा के मैदान का क्षेत्रफल अधिक है, इसलिए यहां अधिक किसानों ने खेती की है। जलालपुर, कांटा, अमड़ा, नौबतपुर, चकिया, सिकंदरपुर, घुरहूपुर, शहाबगंज, तियरा, उरगांव, चहनियां, तेजोपुर, सुगाई, सिधाना, नेवादा, बगही, भुजना, दुधारी समेत तीन दर्जन से अधिक गांवों में इन दिनों ब्लैक राइस की खेती लहलहा रही है। वाराणसी में 17 से 21 अक्टूबर तक जीआई टैग महोत्सव मनाया जा रहा है। इस मेले में चंदौली के ब्लैक राइस की भी प्रदर्शनी लगाई गई है। ब्लैक राइस का स्टॉल लगाने वाले रामनरेश पाल के अनुसार लोग इंक्यावरी करने पहुंच रहे हैं। 

आंकड़ों में चंदौली का ब्लैक राइस  –

वर्ष          किसान      रकबा                उत्पादन 

2018      30          10 बीघा              04 क्विंटल 

2019      200        100 हेक्टेयर       1129 क्विंटल 

2020      275        100 हेक्टेयर        1300 क्विंटल 

2021      125        50 हेक्टेयर          500 क्विंटल 

*2022 में ब्लैक राइस के बुआई का आँकड़ा अभी उपलब्ध नहीं है। 

चंदौली के जिला कृषि अधिकारी बसंत दुबे ने ‘जनचौक’ को बताया कि वर्ष 2018 में मणिपुर से 25 किग्रा ब्लैक राइस का बीज मांगकर 30 किसानों से प्रायोगिक तौर पर खेती कराई गई। इससे से 70 किग्रा चावल प्रयागराज के कुम्भ मेले में बिक गया और शेष धान को बीज बनाकर जनपद के 100 किसानों में वितरित कर दिया गया। फिर इसके बाद साल दर साल ब्लैक राइस की खेती और उत्पादन बढ़ता गया। साल 2021 में बेहतर उत्पादन होने के चलते अब भी तकरीबन 500 क्विंटल ब्लैक राइस मंडी समिति चंदौली में रखा गया है। प्रशासन स्तर से विभिन्न फार्मों से बातचीत की जा रही है। उम्मीद है कि जल्द ही अच्छी कीमत पर किसानों का उत्पाद बिक जाएगा। साथ ही चंदौली में पैदा किये गए ब्लैक राइस की मार्केटिंग और ब्रांडिंग के लिए इसे भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान में भेजकर इसके गुण और फायदे विवरण मंगाने पर विचार किया जा रहा। जिसे पैकेट पर छापा जाए, इससे इसके बिक्री में अधिक समस्या नहीं आएगी। किसानों की आय बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। 

ब्लैक राइस के फायदे –

विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लैक राइस सेहत के लिहाज से काफी फायदेमंद है और तमाम बीमारियों से बचाव करता है। दरअसल, विशेष प्रकार के तत्व एथेसायनिन की वजह से ब्लैक राइस का रंग काला होता है। विशेषज्ञों की मानें तो ये चावल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर ब्लैक राइस में विटामिन ई, फाइबर और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और साथ ही चर्बी कम करके वजन घटाने में मददगार है और पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है। राइस शरीर के बुरे कोलेस्ट्रॉल को भी घटाता है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर होने की वजह से ये इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। 

ब्लैक राइस के खेती की तरकीब –

ब्लैक राइस की नर्सरी के लिए मई का महीना उपयुक्त है। नर्सरी तैयार होने में करीब एक महीना का समय लगता है। बीज की रोपाई के एक महीने बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई की जाती है। अन्य किस्मों की तुलना में काले चावल की फसल को तैयार होने में अधिक समय लगता है। फसल करीब 5 से 6 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

कम पानी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके पौधे मजबूत होते हैं। जिससे पौधों के टूटने की समस्या नहीं होती है। पौधों की लम्बाई करीब 6 फीट तक होती है।

ब्लैक राइस की खेती के फायदे-

धान की अन्य किस्मों की तुलना में ब्लैक राइस में रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। इसकी खेती में लागत कम आती है। अधिक मूल्य पर बिक्री होने के कारण अधिक मुनाफा होता है। केवल जैविक खाद एवं कम्पोस्ट खाद का प्रयोग कर के भी हम बेहतर फसल प्राप्त कर सकते हैं। पौधों में दानों से भरी हुई लम्बी बालियां आती हैं। कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत अधिक होती है। इसलिए काले चावल की खेती करने वाले किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

( चंदौली से पीके मौर्य की रिपोर्ट।)

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