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खूनी खेल के जंगली तमाशबीन!

सऊदी अरब में आज की दुनिया की सबसे बर्बर राजशाही चल रही है। इसकी एक पहचान है रियाद शहर का डीरा स्क्वायर। इसे कटाई स्क्वायर (chop chop square) भी कहा जाता है। यहां हर हफ़्ते नियत दिन अपराधियों के अंगों और सर की भी कटाई होती है। कुछ ख़ास अपराधियों के सर काट कर नुमाइश के तौर पर लटका दिए जाते हैं।

बाक़ायदा क्रुसीफिकेशन। व्याभिचार के नाम पर औरतों की पत्थर मार कर हत्या की जाती है। तथ्यों के अनुसार, इस साल यानी 2019 में वहां अब तक एक सौ से ज़्यादा लोगों के सर काटे जा चुके हैं।

अहम बात यह है कि उस स्क्वायर में आदमी की कटाई का तमाशा देखने के लिए हर हफ़्ते बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं और तालियाँ बजा कर वीभत्स ढंग से नाचा करते हैं।

भारत में आज जो लोग पुलिस एनकाउंटर में रेप के आरोपियों की हत्या पर उछल-कूद कर रहे हैं, जिनमें अभी बंदूक़ की नाल के प्रति अतिरिक्त प्यार उमड़ रहा है, जो चमकदार लोग लिंचिंग करने वालों में अपना नाम लिखाने के लिए उतावले हैं, वे रियाद के डीरा स्क्वायर में जमा होने वाली और आदमी की कटाई पर नाचने-झूमने वाली बर्बर लोगों की भीड़ से क्या अलग लोग हैं?

हिटलर की अगवानी में लगे सजे-धजे लोग। इनसे यह सही सवाल पूछा गया है कि क्या इन्होंने किसी रसूखदार, धनवान बलात्कारी को बिना बाक़ायदा जुर्म प्रमाणित हुए गोली से उड़ा देने की बात की है? यह सवाल ज़ुबान पर ताला लगा कर बैठे राजनीतिक दलों से भी किया जा सकता है।

दुनिया में राजशाही का इतिहास बर्बर नादिरशाही संस्कृति का भी इतिहास रहा है, जब जनता में खून के खेल का उन्माद भरा जाता था। इसका सबसे जंगली रूप देखना हो तो नेटफ्लिक्स के ‘स्पार्टकस’ सीरियल को देख लीजिए। कैसे साधारण लोग और राजघरानों के संभ्रांतजन साथ-साथ आदमी के शरीर से निकलने वाले खून के फ़व्वारों का आनंद लिया करते थे। कैसे मार्कोपोलो सीरियल में कुबलाई खान लोगों की कतारबद्ध कटाई करके उनके अंगों को कढ़ाई में उनके ही खून में उबाला करता था।

आधुनिक तकनीक के युग में राजशाही का नया रूप नाजीवाद और फासीवाद भी राष्ट्रवाद के नाम पर ऐसे ही खूनी समाज का निर्माण करता है। हिटलर जर्मनी के लोगों से अन्य राष्ट्रीयताओं के लोगों को कीड़े-मकोड़े, कुचल कर मार दिए जाने लायक़ समझने के भाषण दिया करता था और शासक की ताक़त के नशे में झूमते लोग तालियां बजा-बजा कर हिटलर का अभिवादन किया करते थे। सभी प्रकार के बर्बर शासन तलवारों और बम के गोलों से मनुष्यों के विषयों के निपटारे पर यक़ीन करते रहे हैं।

जनतंत्र इसी बर्बरता का सभ्य प्रत्युत्तर है। तलवार के बजाय क़ानून के शासन की व्यवस्था है। राजा की परम गुलामी की तुलना में नागरिक की स्वतंत्रता और उसे अधिकार की व्यवस्था है।

हमारा सवाल है कि क्या क़ानून के जनतांत्रिक शासन को छोड़ भारत भी क्या अब उसी प्राचीन तलवार पर टिकी बर्बरता को अपना कर नाजीवाद की दिशा में कदम बढ़ा चुका है?

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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