अरवल कांड के ‘टाडा’ बंदियों की रिहाई के सवाल पर सरकार चुप क्यों है? भाकपा (माले)

पटना। भाकपा माले ने बिहार सरकार से कहा है कि 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई के मामले में सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण है। ‘टाडा’ के तहत गलत तरीके से फंसाए गए ‘भदासी’ अरवल कांड के शेष बचे बंदियों को अविलंब रिहा किया जाए।

पिछले दिनों 10 अप्रैल को बिहार सरकार की कैबिनेट बैठक में जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 में संशोधन किया गया। जिसके तहत एक निश्चित समय तक सजा काट चुके और कैद में अच्छे चाल-चलन वाले कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया गया है। और इस आशय का निर्देश बिहार के सभी जेलों को भेज दिया गया है।

इस दायरे के अंदर आनेवाले कैदियों में हत्या,बलात्कार और कई तरह की गंभीर वारदातों में उम्रकैद की सजा पाए कैदियों की रिहाई का भी रास्ता खुल गया है। जिनमें प्रमुखता से बिहार के बाहुबली माफिया आनंद मोहन सिंह का नाम लिया जा रहा है। पूरे बिहार की जेलों से लगभग 27 कैदियों के रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है।

बिहार भाजपा के नेता नीतीश सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि आनंद मोहन को छोड़ने के लिए ही यह कवायद की गई है।

वहीं बिहार सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाकपा माले ने रिहा हो रहे कैदियों की लिस्ट पर एतराज जताते हुए कहा है कि सरकार का रवैया पक्षपात पूर्ण है क्योंकि बहुत से गरीब और दलित कैदियों को जो टाडा में बंद हैं,बूढ़े और बीमार हैं, उन्हें इस रिहाई की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है।

भाकपा माले ने कहा है कि शेष बचे 6 ‘टाडा’ बंदी दलित-अति पिछड़े और पिछड़े समुदाय के हैं और सभी गंभीर रूप से हैं बीमार हैं। इन मांगों के संबंध में 28 अप्रैल को पटना में मुख्यमंत्री के समक्ष माले एक दिन का सांकेतिक धरना देगा।

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने सरकार द्वारा 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई में बहुचर्चित भदासी (अरवल) कांड के शेष बचे 6 ‘टाडा’ बंदियों को रिहा नहीं किए जाने पर गहरा क्षोभ प्रकट किया है।

उन्होंने कहा कि सरकार आखिर ‘टाडा’ बंदियों की रिहाई पर चुप क्यों हैं। जबकि शेष बचे सभी 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े व पिछड़े समुदाय के हैं और जिन्होंने कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट ली है। यदि ‘परिहार’ के साल भी जोड़ लिए जाएं तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है। सब के सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं।

उन्होंने कहा कि भाकपा-माले विधायक दल ने विधानसभा सत्र के दौरान और कुछ दिन पहले ही ‘टाडा’ बंदियों की रिहाई की मांग पर मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और इससे संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा था। उम्मीद की जा रही थी कि सरकार उन्हें रिहा करेगी। लेकिन उसने उपेक्षा का रूख अपनाया। सरकार के इस भेदभावपूर्ण फैसले से न्याय की उम्मीद में बैठे उनके परिजनों और हम सबको गहरी निराशा हुई है।

1988 में घटित दुर्भाग्यपूर्ण ‘भदासी’ अरवल कांड में अधिकांशतः दलित और अति पिछड़े समुदाय से आने वाले 14 निर्दोष लोगों को फंसा दिया गया था। उनके ऊपर जनविरोधी टाडा कानून उस वक्त लाद दिया गया था जब पूरे देश में वह निरस्त हो चुका था।

4 अगस्त 2003 को सबको आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी। 14 में अब महज 6 लोग ही बचे हुए हैं बाकि लोगों की उचित इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है। इसमें अरवल के लोकप्रिय नेता शाह चांद, मदन सिंह, सोहराई चौधरी, बालेश्वर चौधरी, महंगू चौधरी और माधव चौधरी के नाम शामिल हैं। माधव चौधरी की मौत अभी हाल ही में विगत 8 अप्रैल 2023 को इलाज के दौरान ‘पीएमसीएच’ में हो गई। उनकी उम्र करीब 62 साल थी।

उन्होंने आगे कहा कि इसी मामले में एक टाडा बंदी त्रिभुवन शर्मा की रिहाई पटना उच्च न्यायालय के आदेश से 2020 में हुई। इसका मतलब है कि सरकार के पास कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है। हमने मुख्यमंत्री से साफ कहा था कि जिस आधार पर त्रिभुवन शर्मा की रिहाई हुई है उसी आधार पर शेष ‘टाडा’ बंदियों को भी रिहा किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

शेष बचे 6 लोगों में डॉ. जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम चौधरी और लक्ष्मण साव के नाम शामिल हैं। इस बात की पूरी आशंका है कि कुछ और लोगों की मौत जेल में ही हो जाए। फिलहाल डा. जगदीश यादव, चुरामन भगत व लक्ष्मण साव गंभीर रूप से बीमार हैं और लगातार हॉस्पीटल में भर्ती हैं।

सरकार की इस भेदभावपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ आगामी 28 अप्रैल को भाकपा-माले के सभी विधायक पटना में एक दिन का सांकेतिक धरना देंगे और धरना के माध्यम से शेष बचे 6 टाडा बंदियों की रिहाई की मांग उठायेंगे।

साथ ही भाकपा-माले 14 साल की सजा काट चुके सभी दलित-गरीबों और शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद तमाम ऐसे ही कैदियों की रिहाई की मांग भी सरकार से करती है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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