अडानी समूह पर PIL दायर करने पर वकील के खिलाफ दर्ज किया सीबीआई ने मुकदमा

नई दिल्ली/अहमदाबाद। गौतम अडानी के आर्थिक हित अब राष्ट्र के आर्थिक हित हैं। अडानी समूह के काले-कारनामों या धोखाधड़ी या फिर पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए स्थापित संयंत्रों का कोई विरोध करता है, या अडानी समूह के खिलाफ कोई याचिका दाखिल करता है तो वह राष्ट्र के आर्थिक हितों को प्रभावित कर रहा है। सरकार का कमोबेश यही मानना है और इसी नजरिये से उसने अब कार्यवाही भी शुरू कर दी है। लिहाजा ऐसा करने वाला शख्स सरकार और उसकी एजेंसियों से बच नहीं सकता है। गुजरात के एक वकील एवं पर्यावरण पर काम करने ऋत्विक दत्ता से जुड़ा एक इसी तरह का मामला सामने आया है। जिसमें सीबीआई ने उनके खिलाफ इसलिए एफआईआर दर्ज कर दिया क्योंकि उन्होंने अडानी समूह एक संयंत्र से संबंधित कुछ जानकारी मांगी थी। दत्ता पर दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि “ऋत्विक दत्ता ऑस्ट्रेलिया में अडानी की गतिविधियों को लक्षित कर रहे थे… भारत की भौगोलिक सीमाओं के बाहर राष्ट्र के आर्थिक हितों को प्रभावित कर रहे थे।”

दत्ता पर आरोप है कि वह विदेशी मुद्रा मंगाने के जरिये न केवल एफसीआरए नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि देश के विकास के लिए स्थापित उद्योगों और सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए स्थानीय किसानों को आंदोलन के लिए उकसा भी रहे हैं। इसके साथ ही अदालतों में सरकारी नीतियों और राष्ट्र के विकास में लगे उद्योगपतियों के खिलाफ याचिका डाल रहे हैं।

पिछले सप्ताह सीबीआई ने कोर्ट में एक एफआईआर दस्तावेज दाखिल किया। जिसमें पर्यावरण मामलों के प्रसिद्ध वकील ऋत्विक दत्ता पर विदेशी मुद्रा (विनियमन) अधिनियम (FCRA) का उल्लंघन करने का आरोप है। उन पर कोयला परियोजनाओं को कानूनी तरीके से रोकने के लिए विदेशों से आर्थिक मदद लेने में एफसीआरए नियमों को दरकिनार करने का आरोप है। सीबीआई द्वारा दायर प्राथमिकी दस्तावेज में उन पर “स्थानीय किसानों को उकसाने” का भी आरोप लगाया गया है। उन्होंने अडानी समूह के एक कॉपर रिफाइनरी संयंत्र के संबंध में गुजरात सरकार के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की थी।

प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि दत्ता “ऑस्ट्रेलिया में अडानी की गतिविधियों को लक्षित कर रहे थे… भारत की भौगोलिक सीमाओं के बाहर राष्ट्र के आर्थिक हितों को प्रभावित कर रहे थे।” उन पर एफसीआरए के तहत प्राप्त अनुदान को एफसीआरए फंड के लिए अपात्र स्थानीय भागीदार एनजीओ- जैसे कि संघ से संबद्ध अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और समता को देने का भी आरोप है।

एफआईआर दस्तावेज़ में दत्ता से अनुदान पाने वालों को सूचीबद्ध किया गया है। जिसमें अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन को “बिना किसी संदर्भ के विरोध में लगे हुए” के रूप में उल्लेख किया गया है।

सीबीआई के एफआईआर पेपर्स में राइट लाइवलीहुड अवार्डी दत्ता के खिलाफ “मुख्य आरोप” यह है कि उनकी प्रोपराइटरशिप फर्म लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (लाइफ) ने “वित्त वर्ष 2016-2021” के दौरान सैन फ्रांसिस्को स्थित गैर-लाभकारी पृथ्वी न्याय (ईजे) से कुल 22 करोड़ रुपये का अनुदान लिया। दूसरा, यह मदद भारत में “कोयला परियोजनाओं को रोकने की प्रक्रिया के लिए था।”

प्राथमिकी दस्तावेज में कहा गया है “लाइफ (Legal Initiative for Forest and Environment) वित्तीय मदद के लिए ईजे (Earth Justice) को कानूनी सलाह नहीं दे रहा था, लेकिन विकास परियोजनाओं को रोकने के लिए विदेशी धन मिल रहा था। किसी भी मामले में EJ एक वादी नहीं था जबकि सभी में LIFE वादी था।”

ऋत्विक दत्ता ने कहा “नीति के मामले में LIFE कभी भी किसी भी मामले में वादी नहीं रहा है। हम प्राथमिकी में अन्य अशुद्धियों को भी स्पष्ट कर रहे हैं और एजेंसी को पूरा सहयोग कर रहे हैं।”

सीबीआई ने 9 नवंबर, 2022 को दायर सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) की एक रिपोर्ट और गृह मंत्रालय की एक सिफारिश के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की। नई दिल्ली में LIFE के परिसरों पर CBDT द्वारा 7 सितंबर को छापा मारा गया था- उसी दिन इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन, ऑक्सफैम इंडिया और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के कार्यालयों पर क्रमशः बंगलुरू और दिल्ली में छापे मारे गए।

2016 में LIFE द्वारा ताप संयंत्रों और कोयला खदानों पर तैयार की गई एक कानूनी स्थिति रिपोर्ट में केवल दो बार अडानी समूह का नाम लिया गया है।

प्राथमिकी में दत्ता पर, “सार्वजनिक मीडिया के माध्यम से भारत सरकार और सरकारी नीति की आलोचना करने और आरोप लगाने में शामिल” और “उद्योगपति और सरकार की औद्योगिक नीति के खिलाफ स्थानीय किसानों को आंदोलन के लिए उकसाने में शामिल होना बताया गया है।”

एफआईआर के मुताबिक “खेती विकास सेवा ट्रस्ट गुजरात सरकार और अडानी एंटरप्राइजेज के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने में शामिल है… खेती विकास सेवा ट्रस्ट बनाम अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड मामले में ऋत्विक दत्ता खेती विकास सेवा ट्रस्ट (गुजरात में स्थित और स्थानीय किसानों द्वारा गठित) की ओर से पेश हुए थे)। (एसआईसी) सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध जानकारी के विश्लेषण पर, यह प्रतीत होता है कि ऋत्विक दत्ता गुजरात में सरकार की नीति के खिलाफ स्थानीय किसानों के आंदोलन में शामिल हैं।

विचाराधीन मामले का कोयले से कोई लेना-देना नहीं है और इसमें गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा में एक ग्रीनफील्ड कॉपर रिफाइनरी प्लांट शामिल है। यह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी बेंच के पास लंबित है।

इसके बाद, प्राथमिकी में ईजे निदेशक मार्टिन वैगनर द्वारा दत्ता को भेजे गए एक ईमेल का हवाला दिया गया है और निष्कर्ष निकाला गया है: “उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अडानी की गतिविधियों का उदाहरण दिया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारत के बाहर परियोजनाओं का उपक्रम करने वाली भारतीय संस्थाओं को लक्षित करने की योजना बना रहे थे। इस तरह के मुकदमों से राष्ट्र के नागरिकों को ऊर्जा सुरक्षा से वंचित करके जनहित को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं में देरी होती है। इसके अलावा, यह भारत की भौगोलिक सीमाओं के बाहर देश के आर्थिक हितों को भी प्रभावित कर रहा है।”

यह देखते हुए कि “कानूनी सेवा उस मामले का प्रतिनिधित्व होगी जहां ग्राहक एक पक्ष है” और यह कि LIFE ने कभी भी मुकदमेबाजी में EJ का प्रतिनिधित्व नहीं किया, प्राथमिकी में कहा गया कि EJ से धन दान के रूप में था न कि पेशेवर शुल्क के रूप में। “EJ और LIFE ने कोयला परियोजनाओं को लक्षित करने और रोकने के लिए विदेशी मुद्रा को भारत लाने में मिलीभगत की थी, जो FCRA का उल्लंघन है और यह भारत की आर्थिक सुरक्षा को प्रभावित करता है।”

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H k Sharma
H k Sharma
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1 year ago

आज गूगल मैप्स पर अर्थ मोड में कोई भी देख सकता है कि सरदार सरोवर बांध से पूरे साउथ एशिया में सबसे कम भूविस्थापित हुए हैं पर उसी नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर से 15 साल बाद इन्दिरा सागर बांध बनना शुरू हुआ और 10 साल पहले पूरा हो गया। कुछ भूविस्थापितों को विदेशी चंदे से पैसे देकर खरीद लिया गया और आंदोलन चलता रहा। सुप्रीम कोर्ट, मीडिया सब बीके, सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं पूछा कि इन्दिरा सागर के हजारों भूविस्थापितो को ऐसा क्या दे दिया सरकार ने जो सरदार सरोवर के कुछ सौ को नहीं दे पा रहे। मेधा पाटकर जैसे बिकाऊ लोगों की कमी नहीं है पर इनको उजागर करना चाहिए। गुजरात और राजस्थान के लगभग 5 करोड़ लाभार्थियों की दो पीढ़ियों का नुकसान किया मेधा पाटकर ने पैसे लेकर।