शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट: विरोध का इबादत हो जाना

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जिससे पूछिए, जिससे सुनिए वही कह रहा है शाहीन बाग़ गए क्या? एनआरसी, सीएए, एनपीआर के ख़िलाफ़ तो विरोध प्रदर्शन पूरे देश में हो रहा है फिर शाहीन बाग़ में ऐसा क्या खास है। शाहीन बाग़ में विरोध इबादत हो चुका है। कुम्भ के कल्पवासियों की ही तरह शाहीन बाग़ के लोग-बाग भी अपनी घर-गृहस्थी त्यागकर विरोध स्थल पर दिन-रात ठंड का सितम सहकर संविधान बचाने मुल्क़ बचाने की इबादत में लगे हुए हैं।

उनके मुँह से सिर्फ़ हिंदोस्ताँ, संविधान और अल्लाह यही तीन शब्द गुंजायमान है। शाहीन बाग़ की तमाम स्त्रियां अपने दुधमुँहे बच्चों को लेकर दिन-रात डटी रहती हैं। 80 वर्षीय बुजुर्ग से लेकर 29 दिन के बच्ची तक सब यहां धरने पर हैं। तो शाहीन बाग़ के पुरुष भी उनके साथ साथ हैं। बेहद शांत और सौहार्द्रपूर्ण माहौल। पुलिस और आरएएफ के लोग धरनास्थल के दोनों तरफ सड़क पर तीन स्तर का बैरिकेड्स लगाए दिन रात ड्यूटी कर रहे हैं। पूछने पर वो बताते हैं कि यहां का माहौल बेहद शांत है और सौहार्द्रपूर्ण है।

गांधी साध्य के लिए ‘साधन की शुचिता’ पर बल देते हैं, साधन की वो शुचिता, प्रतिरोध का वो नैतिक बल आत्मबल यहां के आंदोलनरत स्त्रियों में बखूबी महसूस किया जा सकता है। विरोध के लिए जिस तरह अपने ईश्वर (सत्य) पर अपना ईमान लाने की बात गांधी कहते हैं वो आपको यहाँ मिलेगा। शाहीन बाग़ की गृहणियां गांधी की तरह बेहद सीधी, ईमानदार, आस्थावान, और सत्य पर अडिग रहने वाली महिलाएं हैं। वो अपने निजी सुख-दुख से ऊपर उठकर ही मुल्क़ और संविधान को बचाने के लिए धरने पर बैठी हैं। वो सत्य की आंच पर अपने ईमान को तपाकर विरोध पर बैठी हैं।

राष्ट्रगान से होती है दिन की शुरुआत

शाहीन बाग़ धरनास्थल के दिन की शुरुआत राष्ट्रगान से होती है। सिर्फ़ धरना स्थल के लोग ही नहीं बल्कि माइक के जरिए आस पास के दुकानदारों औऱ दुकानों पर मौजूद ग्राहकों और सड़क से गुजर रहे राहगीरों से भी राष्ट्रगान के सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़े होने की अपील की जाती है। राष्ट्रगान के बाद शाहीन बाग़ के लोग संविधान की रक्षा की प्रतीज्ञा लेते हैं और फिर मंच से अपनी बात रखने की शुरुआत होती है। यहां आसपास जहाँ भी आपकी नज़र जाएगी तिरंगा ही तिरंगा नज़र आएगा। दुकानों से लेकर ओवर ब्रिज तक संविधान बचाने के संकल्प और संविधान के साथ खड़े बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बड़े बड़े बैनर नज़र आएंगे। सिर्फ़ ग्राफिक डिजायर बैनर ही नहीं साड़ियों और सूती कपड़ों पर हाथ लिखे नारे, संकल्प, और लोकतंत्रिक विचार आपसे गुफ़्तगू करते मिलेंगे।                                                          

धरना स्थल पर ही अदा होती है पांचों वक़्त की नमाज़

पांचों वक़्त की नमाज़ धरना स्थल पर ही अदा होती है। लोग धरना स्थल से ही अज़ान देते हैं। अपने खुदा से अर्ज़ करते हैं कि वो उन्हें शांतिपूर्ण प्रतिरोध का हौंसला दे। अल्लाह इस संविधान और देश बचाने के उनके संघर्ष को इनायत बख्शे।    

आलम भाई कहते हैं कि हम इमाम हुसैन को मानने वाले लोग हैं। हम जुल्म के खिलाफ़त में कर्बला तक जाएंगे। जुल्मी यजीद के खिलाफ़ 72 लोगों के साथ भिड़ गए थे। हम अपने मुल्क़ और संविधान को बचाने के लिए हर क़ुर्बानी देने को तैयार हैं।

लुकैया कहती हैं एनआरसी मुसलमानों को टारगेट कर रहा है। हम सीएए-एनआरसी-एनपीआर उसे नहीं मानते। आज तक हम सब इस मुल्क़ में एक साथ रहते आए हैं और आगे भी रहेंगे। परेशानी तो सिर्फ़ इन्हें है। 1951 में बर्थ सर्टिफिकेट बनता था क्या। कहां से ले लाएं हम कागज। सारी बेटियाँ अपने घरों से निकलकर सड़कों पर धरने दे रही हैं और उन पर इनकी पुलिस लाठियाँ गोलियाँ चला रही हैं, कहाँ गया इनका बेटी बचाने का नारा?

मुबीन कहती हैं – “जितना ज़ुल्म इस सरकार ने किया है उतना किसी सरकार ने नहीं किया। हमने जैसे इन्हें सत्ता दी है वैसे ही हम इन्हें ज़मीन पर लाकर पटक देंगे। जब तक हमारा इंसाफ़ नहीं मिलेगा हम यहाँ से नहीं उठेंगे। क्यों दिखाएं हम उन्हें अपना कागज़, वो हमारे खुदा नहीं हैं। नहीं चलने देंगे हम उनकी दादागीरी।”

80 वर्षीय विल्किस कहती हैं- “ क्या सितम है कि हमें इस उम्र में अपने मुल्क़ को बचाने के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ़ धरना देना पड़ रहा है। और ये लोग अपने ही मुल्क़ के लोगों पर गोलियाँ चलवा रहे हैं। ये मुल्क़ हमने हमारे पुरखों ने बनाया है, हमें नागरिकता की धौंस देने वाले मोदी-शाह कौन होते हैं। बताएं ये कि इनके पुरखों ने देश की आजादी की लड़ाई में कितना और क्या योगदान दिया है? ये बताएं कि इनका योगदान इस मुल्क के बनने में क्या है? वक्त बहुत बलवान होता है। उसके जुल्मी अंग्रेज नहीं टिके जो ये कहते थे कि हमारे राज में सूरज नहीं डूबता तो इनकी बिसात ही क्या है। ये हमारा मुल्क़ है हमने अपने ख़ून पसीने से सींच कर इसे बनाया है। इसको बचाने के लिए कितनी कुर्बानियां दी ये वो नहीं समझ सकते जो इस मुल्क़ को बर्बाद करने में लगे हैं।”

अनीसा मीडिया से नाराज़गी जाहिर करते हुए कहती हैं- “ आप लोग हमारी बात प्रधानमंत्री मोदी तक नहीं ले जाते। हम इतना चीख-चीख कर कह रहे हैं, आखिर सरकार तक हमारी बात क्यों नहीं पहुँच रही। क्या सरकार बहरी हो गई है क्या। आप कह दीजिए मोदी से, हमें गोली मार दीजिए, हम मर जाएंगे तभी हमारा जनाज़ा उठेगा यहाँ से बकिया हम तो नहीं उठेंगे।”      

19 दिनों से आमरण अनशन पर हैं जैनुलअबिदीन

जैनुलअबिदीन शाहीन बाग़ में 19 दिनों से आमरण अनशन पर हैं। उनसे प्रशासन या मीडिया की ओर से कोई भी मिलने नहीं आया। वो कहते हैं मैं अनशन सीएए-एनआरसी-एनपीआर का विरोध करता हूँ। जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर हुई पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ़ मैंने आमरण अनशन शुरु किया है। जब तक ये काला कानून वापस नहीं होता और जब तक छात्रों को न्याय नहीं मिलता। उत्तर प्रदेश में पुलिस की वर्दी में आरएसएस के गुंडे घरों में घुसकर लूटपाट कर रहे हैं। वो लोगों के गहने जेवर रुपए पैसे लूट रहे हैं और विरोध करने पर मार पीट कर रहे हैं घर के कीमती सामान तोड़ रहे हैं। सरकार उन्हें तुरंत रोके। फूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगा कर रखा गया है, फौरन हटाया जाय। और संविधान बचाने की इस लड़ाई में शामिल होने वाले भाई चंद्रशेखर आजाद, अखिल गोगोई समेत न्यायिक हिरासत में रखे गए सभी साथियों को फौरन रिहा किया जाय। और जो लोग दोषी हैं जिन्होंने शांति पूर्ण प्रदर्शनों में घुसकर हिंसा फैलाई और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ कार्रवाई की जाए। यूपी पुलिस छोटे छोटे बच्चों को बर्बरतापूर्वक मार रही है।दरअसल इनके हौसले पस्त हैं इसीलिए ये अपना गुस्सा आवाम पर उतार रहे हैं। ये मनुवादी लोग हैं। इनका लाया एनआरसी सिर्फ़ मुस्लिमों के ही नहीं दलितों, सिखों और स्त्रियों के भी खिलाफ़ है। ये दलितों मुसलमानों मजदूरों की नागरिकता छीनकर उन्हें घुसपैठिया घोषित करना चाहते हैं जबकि असली घुसपैठिए तो ख़ुद ये लोग हैं।

ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि तड़ीपार गृहमंत्री, गुजरात दंगों का अपराधी प्रधानमंत्री और बेअक्ल आदमी यूपी का मुख्यमंत्री है। ये नारा देते हैं बेटी बचाओ और बलात्कारी इनके ही सांसद विधायक निकलते हैं। ऐसे लोग सत्ता में रहेंगे तो देश ऐसे ही अशांत रहेगा। ‘सबका साथ, सबका विकास, देश बर्बाद’ ये इनका पूरा नारा है। ये क्रांति की चिंगारी है अभी ये पूरे देश में फैलेगी और वो इसे डंडे से, गोली से, गिरफ़्तारी से नहीं रोक पाएंगे।

हमसे हमारा हिंदुस्तानी होने का हक़ कोई नहीं छीन सकता

मेहरुनिशां भी तीन दिन से अनशन पर हैं। वो कहती हैं- मोदी जी ने जो लागू किया है वो हमें मंजूर नहीं है। सरकार वापस ले। हिंदुस्तानी होने का हमारा हक़ हमसे कोई नहीं छीन सकता। पुलिस वालों ने हमारे बच्चों को मारा है हमें उसका इंसाफ़ चाहिए। हम तो शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे। आप जामिया में घुसकर बच्चों पर रात में हमला करते हो। हम यहां पैदा हुए थे और हम यहीं मरकर इसी मिट्टी में दफ़न होंगे। ये हमारी मिट्टी है हमारा मुल्क़ है हमारे बाप-दादाओं ने इस मुल्क़ को बनाया है इसे हम यूँ बर्बाद नहीं होने देंगे।   

शकीना- “हम 19 दिन से यहां पर दिन-रात बैठे हुए हैं। घंटे आध घंटे के लिए घर जाते हैँ औऱ वापस आकर यहीं बैठ जाते हैं। हम लोगों ने ही वोट देकर मोदी को जिताया है और आज हमें ही इस देश से निकालने की बात वो कर रहे हैं।”   

नूर बेग़म कहती हैं- “एनआरसी वापस लें। नहीं तो हमारी सारी हिंदू मुस्लिम मां बहनें यहीं धरने पर बैठी रहेंगी। जैसा चाहते हैं हम वैसा नहीं होने देंगे। वो मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर से लोगों को घरों से निकाल निकालकर गोली मार रहे हैं इसे फौरन बंद होना चाहिए। बच्चों की पढ़ाई लिखाई सब बंद है। सरकार ये फालतू के काम छोड़कर शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दे और देश को बाँटने वाला ये कानून वापस ले।

दूसरे शहरों के लोग विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने आ रहे शाहीन बाग़

शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने के लिए बाहर के राज्यों और शहरों के लोग भी आ रहे हैं। कई लोग खाने-पीने की चीजें लेकर आते हैं तो कई लोग खाली हाथ आते हैं दिन भर या घंटे दो घंटे जितना समय निकल पड़ता बैठते हैं और शाम को चले जाते हैं।

शाहीन बाग़ की स्त्रियों के विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने के लिए आई गुड़गाँव निवासी छात्रा काइरा कहती हैं – “ ये बेहद समस्यापूर्ण है कि पंथनिरपेक्ष और सामाजिक लोकतंत्र में ये सब कुछ घटित हो रहा है। सीएए-एनआरसी गैर पंथनिरपेक्ष है और हर नागरिक का कर्तव्य है कि वो इसके खिलाफ़ खड़ा हो। काइरा बताती हैं कि जंतर-मंतर, गुड़गाँव और देश के दूसरे हिस्सों के प्रदर्शनों से शाहीन बाग़ इस मायने में अद्भुत और अदम्य है कि इसमें समाज के हर आयु वर्ग के लोग इन अतुल्य स्त्रियों के विरोध प्रदर्शन के समर्थन में आ खड़े हो रहे हैं। जबकि अन्य जगहों के विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई छात्र कर रहे हैं।”

अरमाँ कहती हैं- “एक भारतीय मुस्लिम होने के नाते मेरे लिए ये विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि मैं 24*7 धरने पर बैठी इन स्त्रियों की समर्थन में शाहीन बाग़ आऊँ। शाहीन बाग़ की ये स्त्रियाँ ही इस रिवोल्यूशन का नेतृत्व करेंगी इंशाअल्लाह।”

शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए खुले मेडिकल कैम्प में दवाइयाँ दान दे जाते हैं लोग

मेडिकल कैम्प में बैठे वेबब बताते हैं कि- “शाहीन बाग़ धरने पर बैठी कुछ स्त्रियों को खाँसी, नजले और बुखार की शिकायत थी। तो मैंने अपने एक मित्र नाज़िर अली ख़ान जो कि मेडिकल के इसे पेशे से जुड़े हैं उन्हें इलाज के लिए बुलाया तो उन्हेंने दवाईयां देने के बाद यहीं बगल में मेडिकल कैम्प लगाने का सुझाव दिया। हमने कैम्प खोला तो आस पास के मेडिकल स्टोर वाले आकर दवाइयां दे गए। नागरिक समाज के लोग भी कुछ दवाइयां खरीद कर यहां दे गए। नाजिर भाई की जान-पहचान के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के नर्स आदि ने सुना तो भी अपनी सेवा देने के लिए स्वेच्छा से ही आने लगे। कुछ नर्स भी आईं महिलाओं से बात करके उनके स्वास्थ्य का जायजा लेने के लिए। उनके अलावा कई गर्ल्स वलंटियर भी हैं। वेबब बताते हैं कि गुड़गाँव, फरीदाबाद और दूसरी जगहों से जो सुनता ही वही दौड़ा आता है कुछ न कुछ लिए हुए। हिंदू-मुस्लिम सब आ रहे हैं यहाँ अपने समर्थन और सामान लेकर।  यहां कोई कमेटी नहीं है। सब कुछ अपने आप होता जा रहा है लोग जिसके जो समझ में आ रहा है उस तरह से वो सहयोग कर रहा है।”

गोदी मीडिया कर रही खेल

असलम कहते हैं – “टीवी मीडिया खेल कर रही है। वो लोग प्रदर्शन में शामिल किसी बच्चे को पकड़कर उससे पूछते हैं बताओ एनआरसी सीएए एपीआर क्या है? और फिर जब वो जवाब नहीं दे पाता तो टीवी में चीख चीखकर कहते हैं देखो इन्हें पता ही नहीं कि एनआरसी, सीएए क्या है और ये बेवजह ही विरोध कर रहे हैं। अरे भाई मां-बाप विरोध में बैठेंगे तो बच्चों को घर छोड़कर थोड़े ही आएंगे। हमने वीडियो देखा है खुद गृहमंत्री अमित शाह एनआरसी का पूरा नाम सही से नहीं ले पाते और उनकी ज़बान लड़खड़ा जाती है। मीडिया लगातार हमारे आंदोलनों की इमेज खराब करने में लगी हुई है। हमें नहीं पता ये टीवी मीडिया हमसे इतनी नफ़रत क्यों करती है, हमारे बारे में इतना गलत-शलत क्यों दिखाती है।”

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इस बीच, सत्तारूढ़ भाजपा और आरएसएस के लोग सरिता बिहार पुलिस थाने पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं और पुलिस पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि शाहीन बाग़ के विरोध प्रदर्शन को वह बलपूर्वक हटाए। आज शाहीन बाग़ में दो गाड़ी अतिरिक्त पुलिस बल को भेजा गया था। ऐसा कहा जा रहा है कि प्रशासन पर दबाव है कि वो शाहीन बाग़ के प्रदर्शन कार्यों को किसी भी तरह हटाए। 

(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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