Tuesday, April 30, 2024

हारती बाजी को जीत में बदलने के लिए महाराष्ट्र को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की कोशिश 

कर्नाटक में मिली करारी मात के बाद अब संघ-भाजपा महराष्ट्र के किले को बचाने की तैयारी कर रही है। हालांकि इसकी शुरुआत तो पिछले साल से ही शुरू हो गई थी, लेकिन इसमें अचानक से पिछले कुछ महीनों में तेजी आई है। पिछले वर्ष इसकी शुरुआत अप्रैल, 2022 में तब हुई जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे ने मस्जिदों में बजने वाले लाउडस्पीकर को हटाने के लिए बयानबाजी शुरू की थी। उन्होंने तत्कालीन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को चेतावनी जारी करते हुए घोषणा की थी कि यदि 3 मई तक मस्जिदों से लाउडस्पीकर नहीं हटाये गये तो वे स्वंय अपने कार्यकर्ताओं के साथ जाकर मस्जिदों के आगे हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।

महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने जगह-जगह सभाएं शुरू कर दी थी। इसी बीच निर्दलीय सांसद नवनीत कौर और उनके पति रवि राणा, जो खुद भी निर्दलीय विधायक हैं, के उस भड़काऊ बयान से राज्य की सियासत गरमा गई थी, जब उन्होंने ऐलान किया कि वे तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने आकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। यह हंगामा महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देशभर में गोदी मीडिया द्वारा लगातार प्राइम टाइम में जगह पाता रहा।

शरद पवार ने राज ठाकरे के अल्टीमेटम पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “अभी राज ठाकरे आये हैं, फिर असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री होगी। यह सब जान-बूझकर राज्य में तनाव बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। राज्य में किसी अनहोनी और सांप्रदायिक उन्माद का माहौल बनाने के लिए ये हरकतें की जा रही हैं। सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है, और हनुमान जयंती सहित आगामी धार्मिक आयोजनों के लिए पुलिस प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त कर दिया गया है। हम राज्य में किसी को भी सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की इजाजत नहीं दे सकते।” 

इस सबका नतीजा यह हुआ कि मुंबई में ही कई मस्जिदों के भीतर लाउडस्पीकर के वॉल्यूम को लिमिट के भीतर रखने की पहल खुद मुस्लिम समुदाय ने की, क्योंकि उनके सामने दंगों का इतिहास और हाल में दिल्ली दंगों की ताज़ी यादें थीं। तीन राज्यों में 60,000 मस्जिदों में इसे अंजाम दिया गया। इससे पहले अप्रैल में मुंबई पुलिस ने दावा किया था कि हिंसा और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाली 13,964 सोशल मीडिया पोस्ट को पिछले 4 महीनों में हटा दिया गया है। महाराष्ट्र प्रशासन की ओर से उठाये जाने वाले इन कदमों से सांप्रदायिक उन्माद भला कैसे फलता-फूलता? 

जब यह सब घटनाक्रम हो रहा था तो भाजपा नेपथ्य में बैठकर सधे कदमों से इसे अंजाम दे रही थी। दो महीने तक चले इस विवाद ने शिवसेना के भीतर कहीं न कहीं विघटन को मजबूत आधार देने का काम किया। इसी बीच राज्य सभा और विधान परिषद चुनावों में शिवसेना के विधायकों में से कुछ वोट विरोधी पक्ष में गये, नतीजा भाजपा को इसका फायदा हुआ।

एकनाथ शिंदे दर्जन भर विधायकों को लेकर गुजरात चले गये और बाद में भाजपा शासित राज्य असम से सरकार गिराने की कोशिश और अंततः राज्यपाल द्वारा सदन में विधायकों की संख्याबल साबित करने के लिए उद्धव ठाकरे को दी गई चुनौती के चलते जून माह के अंत तक उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर इस पहले हिस्से के हिंदुत्व परियोजना का अंत किया। इसके साथ ही राज ठाकरे की भी जरूरत खत्म हो गई, आज वे शांत बैठे हैं।

भाजपा को लगा कि सत्ता के बिना उद्धव ठाकरे के साथ कार्यकर्ता ज्यादा दिन नहीं चलेंगे, लेकिन मामला शायद इतना सरल नहीं था। ऐसा जान पड़ता है कि उद्धव ठाकरे ने इसे निजी प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है, और अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है। उनके लिए शिवसेना का असली वारिस और प्रतिष्ठा को वापिस हासिल करना लक्ष्य बन गया है। 

विपक्ष के कमजोर होने के बजाय आक्रामक रूख ने एक बार फिर से हिंदुत्व के उन्माद को उभारने की चुनौती खड़ी कर दी। पिछले वर्ष के अंत तक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और भाजपा ने मिलकर अंतर-धार्मिक और अंतरजातीय विवाहों के मसले पर एक पैनल बनाकर जांच करने के फैसले ने इस कवायद की शुरू कर दी थी। कुछ लोगों की राय थी कि इसके जरिये धार्मिक परिवर्तन विरोधी कानून का बिल सरकार ला सकती है।

इसी दौरान देश में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा लगातार सुर्खियां बटोर रही थी, और देश का ध्यान एक बार फिर से आपसी सद्भाव और भाईचारे की ओर लौट रहा था। इसका जवाब महाराष्ट्र में हिंदू जन आक्रोश रैली के द्वारा दिया जाने लगा। दादर में प्रस्तावित ‘हिन्दू जन आक्रोश रैली’ के लिए लाख से अधिक हिंदुओं की उपस्थिति के दावे किये गये, जिसमें प्रदेश भर के हिंदुओं के साथ साथ विश्व हिन्दू परिषद, आरएसएस, भाजपा के नेताओं की उपस्थिति के दावे किये गये।

इन सभाओं का मुख्य आकर्षण तेलंगाना विधायक टी. राजा सिंह और उनके भड़काऊ भाषण थे। इसमें लव जिहाद और धर्मांतरण विरोधी कानून को महाराष्ट्र सहित देशभर में लागू कराने की बात कही गई थी। ऐसा अनुमान है कि नवंबर से लेकर मार्च 2023 तक ऐसे 50 से अधिक आयोजन राज्य के सभी 36 जिलों में आयोजित किये गये।

इन रैलियों को लगभग एक ही पैटर्न पर निकाला गया। शहर के बीचो बीच से ये रैलियां निकाली जाती थीं, जिसमें शामिल भीड़ भगवा झंडा, टोपी और तिलक धारण किये होती थी और भाषण में वक्ता द्वारा “लव जिहाद”, “लैंड जिहाद” और “जबरन धर्मांतरण” के मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय को निशाने पर लिया जाता था। हर सभा में मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्करण पर जोर दिया जाता।

भाजपा ने प्रत्यक्ष रूप से इससे दूरी बनाते हुए इसे “सकल हिंदू समाज” की ओर से ली गई पहल बताई है। इसमें आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और दर्जनों ऐसे हिंदुत्व के संगठनों की भूमिका रही है। लेकिन भाजपा नेताओं और विधायकों ने इनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। 

दैनिक भाष्कर समाचार पत्र ने 5 मार्च 2023 की अपनी एक रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से बताया है कि अब तक कुल 29 ऐसी रैलियां राज्य के विभिन्न जिलों में की जा चुकी हैं, जिसके आयोजक के रूप में ‘सकल हिन्दू समाज’ को बताया जा रहा है। पहली रैली 18 दिसंबर को पुणे के चिंचवड में हुई थी। इससे पहले 12 नवंबर को श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड, जिसे लव जिहाद का नाम दिया गया, के करण लोगों में भारी रोष था। उसी को उछालकर लव जिहाद के मुद्दे को महराष्ट्र में गरमाया गया।

इसी प्रकार ठाणे के नेवली क्रिकेट ग्राउंड में 5,000 लोगों की भीड़ जमा हुई। 10 मार्च को अहमदनगर के श्रीरामपुर में छत्रपति शिवाजी जयंती समारोह में हजारों की भीड़ भगवा झंडे के साथ आई। इसमें बताया गया है कि बजरंग दल, श्री राम सेना, विहिप जैसे संगठनों के लोग इसमें बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। असंसदीय भाषा का इस्तेमाल एक धर्म विशेष के लिए किया जाता है और पुलिस खड़े होकर चुपचाप देखती रहती है। इन रैलियों का कोई आयोजक नहीं है। शहर-शहर में होने वाले इन आयोजनों का खर्च कौन उठा रहा है, के बारे में कोई नहीं जानता।

बजरंग दल के कुणाल साठे ने भाष्कर न्यूज़ को बताया है कि हर शहर के रसूखदार लोगों से चंदा लिया जाता है। भाजपा के नेता ही नहीं बल्कि एनसीपी भी मदद कर रही है। सपा नेता अबू आजमी के अनुसार, “भाजपा नफरत फैलाकर चुनाव जीतना चाहती है। लैंड जिहाद, लव जिहाद के बहाने मुस्लिमों को निशाना बनाना इनका मकसद है। ये अपनी सभाओं में नारा लगाते हैं कि हिन्दू राष्ट्र बनायेंगे, बुर्के वाली लायेंगे। रैलियों में ये खुलेआम कहते हैं कि जो लड़का मुस्लिम लड़की लेकर आएगा उसे 2 लाख रुपये का ईनाम दिया जायेगा। सरकार ही जब यह सब करा रही है फिर रोकेगा कौन?”

इस संबंध में 22 फरवरी को महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने नवी मुंबई के पुलिस कमिश्नर के नाम एक पत्र लिखकर इन रैलियों और आपत्तिजनक भाषणों पर संज्ञान लेने का अनुरोध किया था। उनका कहना था “इन रैलियों में खुलेआम हेट स्पीच दी जाती हैं। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर इस पर मुझे आपत्ति है।”  

इसके बाद मार्च माह में रामनवमी के अवसर पर देश की तरह महाराष्ट्र में भी तनाव का माहौल कई जिलों में देखने को मिला। जलगांव में हुई हिंसा में चार लोग घायल हुए। इसके अगले दिन औरंगाबाद में किरादपुर क्षेत्र में दो गुटों के बीच हुई मारपीट, लूटपाट और पत्थरबाजी में एक व्यक्ति गोली लगने से जख्मी हुआ और 14 पुलिसकर्मी घायल हो गये थे, जिसमें 5 पुलिस अधिकारी शामिल थे। इसी प्रकार मुंबई के मलवानी इलाके में एक जुलूस के दौरान दो गुटों में झड़प और पत्थरबाजी की घटना दर्ज की गई थी।

इस माह 13 मई को अकोला जिले में एक युवक द्वारा इन्स्टाग्राम पोस्ट में आपत्तिजनक सामग्री साझा करने पर तनाव फ़ैल गया, नतीजतन दो समुदायों के बीच झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि आठ लोग घायल बताये जा रहे हैं। इसी दिन नाशिक में टिंबकेश्वर मंदिर में एक नए किस्म का विवाद खड़ा हो गया, जो इससे पहले देखने को नहीं मिला था। ऐसा बताया जा रहा है कि दूसरे समुदाय के लोगों ने जबरन मंदिर में घुसने की कोशिश की और मंदिर में चादर चढाने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय लोगों ने नाकाम कर दिया।

उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी बिठाने की घोषणा कर दी, जिसे राज्य सरकार ने गठित भी कर दिया है। लेकिन वहां का मुस्लिम समुदाय इसे बिल्कुल अलग नजरिये से पेश कर रहा है। उनका कहना है कि हमारे यहां यह पीढ़ियों पुरानी परंपरा चली आ रही है। हम मंदिर के प्रवेश द्वार की सीढ़ियों पर लोबान जलाते हैं, मंदिर के भीतर नहीं घुसते। यह प्रक्रिया पूरे गांव में चक्कर लगाकर की जाती रही है। कभी भी किसी समुदाय ने आपत्ति नहीं दर्ज की। यह जान-बूझकर कुत्सित अभियान चलाया जा रहा है। यदि स्थानीय हिन्दू समाज इस पर आपत्ति करता है तो आगे से हम ऐसा नहीं करेंगे।  

बता दें कि विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर के शुद्धिकरण के लिए दूध और पानी से मंदिर की सीढ़ियों को धोया था। इस पर मौलाना आजाद विचार मंच के अध्यक्ष हुसैन दलवई ने इंडियन एक्सप्रेस के संवावदाता से बातचीत में कहा है, “क्या हम प्रगतिशील महराष्ट्र में रह रहे हैं? यह वह राज्य है जिसने अतीत में एक से बढ़कर एक सामाजिक सुधार लाये हैं। यह वह राज्य है जिसे सांप्रदायिक सौहार्द पर गर्व रहा है। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आज भी हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की जो परंपरा चली आ रही थी, उसे अपने क्षुद्र एवं विभाजनकारी राजनीतिक स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। आज भी राज्यभर में ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां पर हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद और मंदिर दोनों को पवित्र भाव से देखते हैं और एक दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं।”

उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है, “लोगों को धर्म और हिंदुत्व के नाम पर विभाजित करने की यह भाजपा की रणनीति है। उनके हाथ से जमीन लगातार खिसकती जा रही है, जिसके चलते उन्हें इस प्रकार की विभाजनकारी नीति को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।”

इसके जवाब में भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने कहा है, “हम राम जन्मभूमि से लेकर टिंबकेश्वर मंदिर के मुद्दे तक कहीं गलत नहीं हैं। हमें हिंदुओं के पूज्य स्थलों पर पूजा के अपने अधिकारों के लिए भला क्यों नहीं लड़ना चाहिए?

राज्य में लगभग एक वर्ष से भाजपा-शिंदे गठबंधन की सरकार स्थापित होने के बावजूद उद्धव ठाकरे की शिवसेना गुट का आधार कमजोर नहीं हो सका है। महाराष्ट्र में विदेशी निवेश सहित कई महत्वपूर्ण निवेश की घोषणा सिर्फ घोषणा बन कर रह गई हैं, और शिंदे-फडनवीस सरकार के सामने इन्हें गुजरात राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया है। इससे महाराष्ट्र में नाराजगी है, और इसे मोदी के गुजरात के लिए शिंदे द्वारा महाराष्ट्र के हितों की बलि चढ़ाने के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे लगातार राज्य में दौरे कर रहे हैं, जिससे उनका जनाधार विस्तारित हो रहा है।

हाल ही में रत्नागिरी में घोषित मेगा आयल रिफाइनरी प्रोजेक्ट, जिसमें 3.0 लाख करोड़ निवेश की बात कही जा रही है, को पूर्व निर्धारित स्थल से 20 किमी दूर एक अन्य स्थान पर स्थानांतरित किये जाने का भारी विरोध चल रहा है। बताया जाता है कि स्थानीय लोगों को अंधेरे में रखकर बड़ी संख्या में सत्तारूढ़ दल के नेताओं और बड़े अधिकारियों ने वहां पर भूमि की खरीद की है। बाद में परियोजना की घोषणा कर अब ऊंचे दामों पर भूमि को बेचकर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। अलफांसों आम के लिए विख्यात रत्नागिरी जिले के बारसू गांव के लोग खुद को ऐसे में ठगा महसूस कर रहे हैं। 

उद्धव ठाकरे को यहां पर सभा करने से राज्य सरकार ने रोक दिया है। भाजपा के लिए एक बार फिर से हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण ही महाराष्ट्र में वोटों की फसल लहलहा सकता है, और नरेंद्र मोदी के लिए लगातार तीसरी बार जीत की गारंटी हिंदुत्व के प्रोजेक्ट को नई ऊंचाइयां प्रदान कर सकता है। इस बार महाराष्ट्र में उसके सामने चुनौती में सिर्फ कांग्रेस और एनसीपी ही नहीं हैं, बल्कि एनडीए गठबंधन की सबसे पुरानी और वैचारिक रूप से नजदीकी दल शिवसेना की चुनौती से भी निपटने की चुनौती है।  

( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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