अमेरिका के नागरिक संगठनों ने सिनेमा मालिकों से ‘द केरला स्टोरी’ का प्रदर्शन रोकने की मांग की

ब्रिटेन के बाद अमेरिका में भी ‘द केरला स्टोरी’ फ़िल्म का प्रदर्शन विवादों में घिर गया है। अमेरिका के तमाम नागरिक संगठनों ने इसे समुदायों के बीच नफ़रत फ़ैलाने वाली फ़िल्म बताते हुए सिनेमा संगठनों से इसका प्रदर्शन रोकने की अपील की है। उनका कहना है कि यह फ़िल्म नफ़रत फैलाने के मक़सद से ग़लत तथ्यों के आधार पर बनायी गयी है जिसने मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंसा को प्रेरित किया है। बीजेपी और भारत के प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिमों के ख़िलाफ़ घृणा फैलाने के लिए इस फ़िल्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने माँग की है कि इस फ़िल्म को उन्हीं मानदंडों पर कसा जाना चाहिए जिन पर अश्वेतों के प्रति रुख को लेकर अमेरिका में फ़िल्में कसी जाती हैं। इससे पहले ब्रिटेन में भी इस फ़िल्म को लेकर विवाद हुआ। सिनेमाघरों को इसके शो रद्द करने पड़े क्योंकि सेंसर बोर्ड ने इसके लिए प्रमाणपत्र जारी नहीं किया। 

काउंसिल ऑफ़ अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस, द इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स, अंबेडकर किंग स्टडी सर्किल और इंटरनेशनल कमीशन फॉर दलित राइट्स की ओर से इस सिलसिले में एक संयुक्त पत्र जारी किया गया है। ‘नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ थिएटर ओनर्स ऑफ़ अमेरिका’ को संबोधित इस पत्र में कहा गय है कि अमेरिका के कई सिनेमाघरों में दिखायी जा रही ‘द केरला स्टोरी’ भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत और हिंसा फैलाने के मक़सद से बनायी गयी है। यह फ़िल्म तथ्यों पर नहीं बल्कि झूठ पर आधारित है और हिंसा से भरी एक ख़तरनाक विचारधारा का प्रचार करती है।

पत्र में कहा गया है कि यह फ़िल्म 32000 हिंदू और ईसाई महिलाओं को मुस्लिमों द्वारा फुसलाकर आईएसआईएस में शामिल करने की बात करती है। जबकि भारत और अमेरिका की सरकारें भी ऐसे किसी आंकड़े को स्वीकार नहीं करतीं। 2020 तक भारतीय मूल के केवल 66 लोगों की जानकारी मिली थी जो आईएसआईएस में शामिल हुए थे जबकि भारत की आबादी एक अरब 40 करोड़ है।

पत्र में कहा गया है कि यह फ़िल्म कट्टर हिंदुत्ववादियों द्वारा प्रचारित ‘लव जिहाद कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ को सही साबित करने के लिए बनायी गयी है जबकि टाइम मैगज़ीन ने भी इसे महज़ झूठा प्रचार बताया है कि मुस्लिम नौजवान हिंदू लड़कियों को बहला-फुसलाकर इस्लाम में परिवर्तित कर लेते हैं। ऐसे दुष्प्रचार से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ भारत भर में हमले बढ़े हैं। हालत ये है कि हिंदू लड़की के अपने मुस्लिम सहकर्मी से बात करने पर भी पिटाई कर दी जाती है। 

पत्र में केरल से राज्य सभा सांसद बिनय विश्वम के हवाले से कहा गया है कि ‘केरल के लोगों ने सामान्य तौर पर एक स्वर से राज्य को बदनाम करने के मक़सद से बनायी गयी इस फिल्म का विरोध किया है। लव जिहाद के षड्यंत्र की कहानी इस्लाम विरोधी प्रचार का हिस्सा है जिसका कोई आधार नहीं है। भारत सरकार का गृह मंत्रालय भी कह चुका है कि लव जिहाद से जुड़े एक भी केस की रिपोर्ट नहीं हुई है।’

संगठनों की ओर से कहा गया है कि इस बात के तमाम प्रमाण हैं कि द केरला स्टोरी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने और मुस्लिमों के दानवीकरण के मक़सद से बनायी गयी है ताकि हिंदू वोट पाये जा सकें। हिंदू ध्रुवीकरण और मुस्लिम विरोधी हिंसा के लिए चर्चित उत्तर प्रदेश के हिंदुत्ववादी नेताओं ने इस फ़िल्म का प्रचार किया और हिंदू और मुस्लिम के बीच रिश्तों को रोकने के लिए सख़्त कानून बनाने की माँग की । हालिया कर्नाटक इलेक्शन में प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि इस फिल्म ने आतंकी और भारत विरोधी षड्यंत्र को उजागर किया है। इससे पहले वे ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी मुस्लिम विरोधी फ़िल्म को भी प्रचारित कर रहे थे जिसने देश में मुस्लिम विरोधी उग्र भावनाओं को बल दिया था।

पत्र में कहा गया है कि अमेरिका में भी ऐसे संगठन सक्रिय हैं जो कट्टर हिंदुत्ववादी संगठनों से सीधे जुड़े हुए हैं। इस फ़िल्म के ज़रिए उनके मुस्लिम विरोधी प्रचार को ईंधन मिलेगा जिससे विविधतापूर्ण अमेरिकी समाज की शांति भंग हो सकती है।

इन संगठनों ने कहा है कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक हैं लेकिन इसके नाम पर दुनिया भर में मुस्लिम विरोधी दुष्प्रचार की इजाज़त नहीं दी जा सकती। अमेरिका में जिस तरह अश्वेतों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाली फ़िल्मों की सख्ती से निगरानी की जाती है, वही मापदंड इस फ़िल्म के लिए भी अपनाये जाने चाहिए।

(चेतन कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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