सवालों में चुनाव आयोग: एक महीना पहले दिल्ली में चुनाव की तारीख 8 फरवरी बता चुके थे मनोज तिवारी

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 8 फरवरी को होंगे। चुनाव आयोग ने इसकी घोषणा भले ही 6 जनवरी को की हो लेकिन बीजेपी के प्रांतीय अध्यक्ष मनोज तिवारी ने चुनाव की तारीख का एलान बहुत पहले ही कर दिया था। करीब एक महीना पहले। दिसंबर के पहले हफ्ते में एक न्यूज़ चैनल पर एंकर से बात करते हुए दर्शकों की मौजूदगी में मनोज तिवारी ने कहा था, “अब तो दबंग हैं कि नहीं हैं ये तो दिल्ली में 8 फरवरी को पता ही चल जाएगा।“

वास्तव में एंकर अमीष देवगन ने मनोज तिवारी से पूछा था कि महाराष्ट्र में 30 साल पुराना साथी साथ छोड़कर चला गया तो दिल्ली के अंदर तो केजरीवाल तो दबंग हैं। इस पर मनोज तिवारी ने कहा था कि लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी तीसरे नम्बर पर चली गयी। यह उनके लिए शर्म की बात है। उसके आगे अरविन्द केजरीवाल दबंग हैं या नहीं पर बोलते हुए मनोज तिवारी ने चुनाव की तारीख ही कह डाली थी।

जब मनोज तिवारी एक महीना पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख 8 फरवरी बता रहे थे तो इस पर विश्वास से सवाल उठाना नहीं बनता था क्योंकि चुनाव आयोग इस विषय पर मौन था। अब जबकि चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है तो वही सवाल वास्तव में जिन्दा हो जाता है। क्योंकि, अब वही 8 फरवरी की तारीख सही निकली है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि दिल्ली में चुनाव की तारीख चुनाव आयोग ने क्या बीजेपी से पूछकर घोषित की है?

  2015 2019
अधिसूचना की तारीख 14 जनवरी, बुधवार 14 जनवरी, मंगलवार
नामांकन की अंतिम तिथि 21 जनवरी, बुधवार 21 जनवरी, मंगलवार
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख 24 जनवरी, बुधवार 24 जनवरी, शुक्रवार
मतदान की तारीख 7 फरवरी, शनिवार 8 फरवरी, शनिवार
वोटों की गिनती 10 फरवरी, मंगलवार 11 फरवरी, मंगलवार
     

2015 में चुनाव आयोग ने जब तारीख का एलान किया था तो वह तारीख थी 12 जनवरी। 2020 में यह तारीख है 6 जनवरी। हालांकि नोटिफिकेशन जारी होने की तिथि दोनों ही चुनावों में 14 जनवरी ही है। नामांकन की आखिरी तारीख इस पांच साल बाद भी वही यानी 21 जनवरी है। नाम वापस लेने की तारीख में भी कोई फर्क नहीं है। यह तिथि इस बार भी 24 जनवरी है। मतदान की तारीख में एक दिन का फर्क है। 2015 में 7 फरवरी को चुनाव हुए थे। 2020 में 8 फरवरी को चुनाव की तारीख रखी गयी है। वोटों की गिनती में एक दिन का फर्क है। 2015 में 10 फरवरी को वोटों की गिनती हुई थी। 2020 में 11 फरवरी को नतीजे घोषित होंगे।

2019 के चुनाव कार्यक्रम में खास बात यह भी है कि अधिसूचना की तारीख, नामांकन की अंतिम तिथि और वोटों की गिनती मंगलवार को रखी गयी है। मंगलवार की तिथि को शुभ माना जाता है। हालांकि मतदान की तारीख शनिवार है। यह तिथि भी भगवान हनुमान और शनि महाराज से जोड़कर देखी जाती है। मगर शुभ होने की दृष्टि से मंगलवार को महत्वपूर्ण माना जाता है। जाहिर मतदान की तारीख से ज्यादा नतीजे आने की तारीख को अहमियत दी गयी है। सवाल ये है कि क्या चुनाव आयोग ने खुद इन तिथियों के शुभ-अशुभ होने का ख्याल किया? या फिर यह महज संयोग है? या कि बीजेपी की इच्छानुसार व सुविधानुसार ये तिथियां चुनी गयी हैं?

चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। चुनाव आचार संहिता लागू करने में भी पक्षपात के आरोप लोकसभा चुनाव के दौरान खुलेआम लगे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आचार संहिता के आरोपों को सुनने में देरी की गयी। सुनवाई के दौरान नरेंद्र मोदी पर कार्रवाई की बात कहने वाले चुनाव आयुक्त की बात को दर्ज नहीं किया गया। उन्होंने असंतोष भी जताया था। बाद में जब मोदी सरकार दोबारा चुनकर आयी तो उन चुनाव आयुक्त के रिश्तेदार के घरों पर छापेमारी भी की गयी। इतना ही नहीं योगी आदित्यानाथ और नीति आयोग के उपाध्यक्ष को चुनाव आचारसंहिता के उल्लंघन का दोषी पाए जाने के बावजूद आयोग ने उन्हें कोई सजा नहीं दी। जबकि, विपक्ष के कई नेताओं को बाद में आचारसंहिता के उल्लंघन के मामले में सज़ाएं सुनायी गयीं।

2020 में चुनाव आयोग पर चुनाव की तारीख लीक कर देने का गम्भीर मामला बनता है। मनोज तिवारी ने 8 फरवरी चुनाव की तिथि पहले ही घोषित कर दी थी। इसे अब भी यू ट्य़ूब पर सुना जा सकता है। ऐसे में चुनाव आयोग की निष्पक्षता चुनाव शुरू होने से पहले ही संदेह के घेरे में आ जाती है। सवाल यह भी उठता है कि अगर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह हो तो पूरे चुनाव प्रक्रिया पर संदेह क्यों न उठे?

(यह उस ट्वीट का एम्बेडेड कोट है जिसे वेबसाइट पर इस्तेमाल किया जा सकता है)

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