गुजरात में एससी-एसटी-ओबीसी बच्चियों की बाल-वधू  के रूप हो रही है बड़ी संख्या में तस्करी

जिस क्षण 13 वर्षीय हेमा सलात (पहचान छिपाने के लिए मुख्य नाम बदल दिया गया है) कार में बैठायी गयी, तभी उसे पता चल गया था कि उसका जीवन अब हमेशा के लिए बदल गया है। अगले 48 घंटों में अशोक पटेल, जिसे वह अब भी भाई कहती है, द्वारा उसके साथ बलात्कार किया गया और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उसकी पत्नी, रेणुका, उसके साथ खड़ी रही, अपने पति को उसे प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित करती रही। हेमा को अपने से कई गुना बड़ी उम्र के एक आदमी के हाथों बेचा जाने वाला था जहां उसे गुलामी और बलात्कार की दलदल में फंस कर रह जाना था।

इस बार अपने परंपरागत तौर-तरीक़ों से हटकर गुजरात पुलिस ने तुरंत उसके माता-पिता द्वारा दायर की गई गुमशुदगी की शिकायत की जांच शुरू कर दी और उसे बचा लिया गया। अधिकारी आमतौर पर यह मानते हुए कार्रवाई नहीं करते हैं कि किशोर लड़कियां अपनी मर्जी से भागी होंगी। हेमा के मामले में वे इसलिए सक्रिय हुए कि इसमें एक महिला के शामिल होने का जिक्र था। पुलिस की इस कार्रवाई से एक अन्य बाल-वधू, 14 साल की प्रिया पाटनी, भी मुक्त करा ली गयी, जिसका 11 महीने पहले अपहरण कर लिया गया था। उसे 3 लाख रुपये में बेचा गया था, जबकि बिचौलिये को 5,000 रुपये मिले थे।

पुलिस ने बताये गये अपराधियों में से छह का पता लगा लिया है। लेकिन हेमा और प्रिया जैसी ही गरीब, निम्न-जाति की और हाशिए पर रहने वाले परिवारों की और भी ढेर सारी किशोरियां ऐसी हैं जो बाल-वधू की तस्करी के क्रूर व्यापार में झोंक कर शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ी जा चुकी हैं।

शिकारी एक लक्ष्य चुनते हैं

हेमा का कच्चा घर, मिट्टी का एक बिना दरवाजे वाला ढांचा है। एस्बेस्टस की छत से ढकी हुई दीवारों वाला यह घर गांव के बाहरी इलाके में एक श्मशान के बगल में है। यह गांव अहमदाबाद जिले में है। उसके मां-बाप इस समय बेरोजगार हैं और जीवन की दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज संघर्ष करते हैं।

11 मई की सुबह अशोक और रेणुका पटेल उनके घर पहुंचे। वे हेमा के परिवार को जानते थे। हेमा ने फटी दीवारों के बीच से उनकी बातें सुनी। वे बोले, “आइए हम आपकी बेटी के लिए कुछ कपड़े और एक पायल ख़रीदें; वह बिल्कुल हमारी बेटी की तरह है।” हेमा नई छोटी-छोटी बातों के प्रति उत्साह और अजनबियों के साथ बाहर जाने की आशंका के बीच फंसी सब कुछ सुन रही थी। उसके माता-पिता ने शुरुआती हिचक के बाद पटेल दंपति के कई ठोस आश्वासनों के बाद हामी भर दिया।

हेमा की मां देविका सलात (मुख्य नाम बदला हुआ) को इस बात का पछतावा है कि वह कैसे उनकी चाल में फंस गयी। वह बताती हैं कि “उन्होंने कहा कि वे हमारे गांव से ही किसी से गाड़ी किराये पर लेकर इसे ले जाएंगे। उन्होंने हमें अपना करीबी पारिवारिक मित्र कहा और हमें विश्वास दिलाया कि हम उन पर और उनकी पत्नी पर भरोसा कर सकते हैं। मैं उसे कभी किसी अजनबी के साथ नहीं जाने देती, लेकिन उन्होंने हमें बताया कि उनकी बहन हमारे पड़ोस के गांव में ही रहती है। और वे हमारे भांजे के करीबी दोस्त लग रहे थे।”

अगले दिन पटेल दंपति हेमा को साथ लेकर कार से पड़ोस के गांव गए। वहां उनकी मुलाकात पारुल से हुई, उन्होंने बताया कि वह अशोक पटेल की बहन हैं। उन्होंने हेमा के लिए कपड़े खरीदे और गाड़ी को वापस कर दिया। चिंतित ड्राइवर ने उसके पिता को फोन किया, तो पटेल दंपति ने उन्हें आश्वस्त किया कि सब ठीक है। हेमा के पिता रमेश सलात (मुख्य नाम बदला हुआ) कहते हैं, “अशोक भाई ने कहा कि वे गाड़ी इसलिए वापस कर रहे हैं कि वहां कुछ और समय बिताना चाहते हैं, और वे जल्द ही लौट आएंगे। उन्होंने कहा कि मेरी अनुपस्थिति में वह उसके पिता समान हैं।” रमेश सलात के पांच सदस्यों के बीच एक ही मोबाइल फोन है। उन्होंने दोबारा फोन किया, लेकिन फोन नहीं लगा।

बाद में हेमा को पटेल और पारुल द्वारा लगभग 100 किमी दूर एक गांव मेहसाणा में दूर-दूर तक खेतों से घिरी एक अलग झोपड़ी में ले जाया गया था। अशोक ने हेमा को एक कमरे में बंद कर दिया, उसे पीटा और अगले 30 घंटों में उसके साथ बार-बार बलात्कार किया। वह मदद के लिए चिल्लाती रही।

उसके चिंतित माता-पिता ने 13 मई को कानभा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करायी और सुबह-सुबह प्राथमिकी दर्ज की गई। उसी दिन कार चालक और पारुल का पता लगा लिया गया। पुलिस को घटना के बारे में बताने के बाद पारुल उस पुलिस टीम के साथ गयी जो हेमा का पता लगाने के लिए निकली थी। मामले के मुख्य जांचकर्ता सब-इंस्पेक्टर जयेश कलोत्रा ​​कहते हैं “जब हम उस क्षेत्र में पहुंचे जहां पारुल ने हेमा को छोड़ दिया था, तो उस झोपड़ी को पहचानने में उसे बहुत दिक्कत हो रही थी, क्योंकि गहरा अंधेरा था, और हम उन्हें सतर्क नहीं करना चाहते थे। खेतों में सावधानी से चलते हुए, हम झोपड़ियों तक पहुंचे और उस जगह को घेर लिया।” चार झोपड़ियों का एक समूह था। सबसे पहले उन्होंने जिस झोपड़ी में प्रवेश किया, उसमें रेणुका और मोती सेनमा थे, जो उन घरों के मालिक थे। दूसरी झोपड़ी में अशोक और हेमा थे।

श्री कलोत्रा बताते हैं, “अशोक सो रहा था, लेकिन हेमा हमें देखते ही बिस्तर से उछल कर हम से आकर चिपक गयी और तब तक हमारा साथ नहीं छोड़ा जब तक कि हमने उस रात उसे उसके माता-पिता को नहीं सौंप दिया।

सामाजिक-आर्थिक कमजोरी के कारण आसान शिकार 

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की ढेरों लड़कियां हैं जो अपनी सामाजिक-आर्थिक कमजोरी के कारण तस्करों के लिए आसान शिकार हैं। भीषण गरीबी, सामाजिक हाशियाकरण, शिक्षा का अभाव, अधिकारों के बारे में कम जागरूकता और न्याय तक कम पहुंच, ये सभी कारण हैं। ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ मुंबई में अपराध-विज्ञान और न्याय विषय के प्रोफेसर विजय राघवन कहते हैं, “उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जागरूकता और शिक्षा की कमी के कारण, गुजरात जैसे राज्यों में आदिवासी, दलित और ओबीसी तस्करी के आसान लक्ष्य बन जाते हैं।”  वह 2023 में प्रकाशित राज्य की रिपोर्ट ‘गुजरात के कमजोर जिलों में मानव तस्करी’ के प्रमुख शोधकर्ता हैं।

प्रो. राघवन कहते हैं कि लक्ष्य के रूप में कमजोर परिवारों की पहचान करते समय, ऊंची जाति के अपराधियों ने वंचित सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के ऐसे लोगों को तस्करी के लिए एजेंट बना लिया है, जो गरीबी से बाहर निकलने के रास्ते तलाश रहे थे।

मिसाल के तौर पर, पारुल को कमीशन पर भर्ती किया गया था, जो पति से अलग एक बच्ची के साथ रहती है और अकेली कमाने वाली है। उसे लड़कियों को लाने-ले जाने में मदद करने के लिए पैसे मिलते थे, इसके साथ ही उसका इस्तेमाल पटेल समुदाय के पुरुषों से कई बार शादियां कराने में भी किया जाता था। हर शादी के बाद वह जेवरात और रुपये लूट कर फरार हो जाती थी।

गुजरात के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं “जांच के दौरान हमने उसके खिलाफ ‘लुटेरी दुल्हन’ होने के कई मामलों का खुलासा किया। लेकिन आगे की पूछताछ में हमने पाया कि अशोक मास्टरमाइंड था और इस तरह के कामों के लिए एक गरीब घर की एकल मां होने की उसकी मजबूर स्थिति का इस्तेमाल करता था।” कई दौर की पूछताछ के बाद, गुजरात पुलिस को पता चला कि एक लड़की को जन्म देने पर, पारुल का मूल पूर्व पति उसे और बच्चे को प्रताड़ित करता था। उसने पुलिस के सामने कबूल किया कि अपनी इकलौती बेटी को पालने के लिए पारुल अशोक की सहयोगी बनी।

ग्रामीण महिलाओं के साथ काम करने वाली ग़ैर-लाभकारी संस्था ‘आनंदी’ की सह-संस्थापक, सेजल डांड कहती हैं, “हालांकि इस मामले में केवल अपहरण से जुड़े बाल-वधू तस्करी के मामले प्रकाश में आए हैं, लेकिन हाशिये पर रहने वाली महिलाओं को शादी के लिए पटेल पुरुषों को बेचे जाने की कई घटनाएं सालों से हो रही हैं।” 

गुजरात पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि इन लोगों के पास राजनीतिक शक्ति की कमी तस्करों को आश्वस्त करती है कि लापता महिलाओं के परिवारों को न्याय पाने में मुश्किल होगी। 2020 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में 41,621 महिलाएं लापता हैं। गुजरात सरकार ने एक ट्वीट में स्पष्ट किया कि उसने उनमें से 94.90% का पता लगा लिया है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इन लापता महिलाओं में से कितनों की तस्करी की गई थी। दरअसल, गुजरात पुलिस के हैंडल से 8 मई को ट्वीट किया गया : 

“जांच में पता चला है कि पारिवारिक विवाद, किसी के साथ भाग जाने, परीक्षा में फेल होने आदि के कारण महिलाएं लापता हो जाती हैं। बहरहाल, लापता लोगों की जांच में महिलाओं की तस्करी, यौन शोषण और अंगों की तस्करी आदि के मामले प्रकाश में नहीं आए।

– गुजरात पुलिस (@GujaratPolice) 8 मई, 2023

गहरी बेरुखी

पटेलों से संबंधित सभी मोबाइल इत्यादि को जब्त करने के बाद, पुलिस अधीक्षक अमित वसावा के नेतृत्व में कानभा पुलिस टीम ने उनके कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) मंगाये, जिससे उन्हें चेहर सिंह, 34 साल और अमृत्ज ठाकोर, 70 साल का पता चला। श्री कलोत्रा ​​कहते हैं,  “उनके फोन से प्राप्त आंकड़ों से हमने पाया कि अशोक और रेणुका के हेमा के घर पहुंचने से पहले ही, उन्हें चेहर सिंह नाम के एक बिचौलिए को बेचने की योजना बना ली गई थी।” गुजरात पुलिस ने ‘द हिंदूֺ’ को एक कॉल रिकॉर्डिंग सुनाया, जहां पटेल सिंह को बता रहा था कि “वस्तु” मेहसाणा में है और जल्द ही उन तक पहुंच जाएगी, जिसके बाद वे अपनी पसंद के ग्राहक को “वस्तु” बेच सकते हैं।

पटेल दंपति संभावित पटेल पुरुषों द्वारा लड़की को आसानी से स्वीकार करने के लिए पीड़ितों के नाम बदल देते थे और उन्हें ‘पटेल’ उपनाम दे देते थे। सिंह और ठाकोर कई बार लड़कियों के उपनाम बदलकर ‘दरबार’ कर देते थे और उन्हें राजस्थान के दरबार समुदाय के पुरुषों को बेच देते थे, जो वहां के ‘रईस’ हैं। श्री कलोत्रा ​​कहते हैं,  “इन दोनों समुदायों में बेहद खराब लिंगानुपात के कारण महिलाओं की भारी मांग है। उच्च जाति के पुरुष दुल्हन की कीमत चुकाने को तैयार हैं।”

आगे की जांच में गुजरात पुलिस ने पाया कि शाहीबाग पुलिस थाने में भी एक गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई थी और 11 महीने पहले एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। सिंह के फोन से  भी साक्ष्य मिले और तस्करी की बात खुद उसने स्वीकार भी किया।

गुजरात पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जब हमने प्रिया पाटनी का पता लगाया, तो हमने पाया कि उसकी दूसरी शादी एक पटेल व्यक्ति से हुई थी जहां ससुराल में उसके साथ बंधुआ गुलाम की तरह व्यवहार किया जा रहा था।”

प्रिया याद करती है कि वह अपने घर के पास एक मछली बाजार में गयी थी, जहां एक पड़ोसी ने उसे बताया कि चलो तुम्हें मुफ्त कपड़े और पायल दिलवाएं। जब वह वहां पहुंची तो रेणुका ने उसका मुंह ढक लिया और रिक्शे में बिठाकर ले गयी। अगले 11 महीनों तक  दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पति-पत्नी की इस बेटी की अशोक और उसका बड़ा बेटा, जो फरार है, दोनों पिटाई करते और यौन उत्पीड़न करते रहे, और उन्होंने अन्य पुरुषों से पैसे लेकर भी उसका यौन उत्पीड़न कराया। बाद में उसे पटेल समुदाय के एक 40 वर्षीय व्यक्ति को 3 लाख रुपये में बेच दिया गया। प्रिया हर दिन चमत्कार के लिए प्रार्थना करती थी।

प्रिया की एक पति से शादी कराने के तीन दिन बाद, पटेल दंपति उसके माता-पिता होने का नाटक करके उसे अपने मायके ले जाने के लिए आ गए। वहां से वे उसे दूसरे घर ले गए और उसे एक अन्य पटेल व्यक्ति को 5 लाख रुपये में बेच दिया।

अशोक पटेल के खिलाफ पहली प्राथमिकी 2017 में, वेजलपुर पुलिस स्टेशन, अहमदाबाद में आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 366 (किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अवैध संबंध बनाने के लिए मजबूर करने के इरादे से अपहरण या अगवा करना), 376 (यौन हमला), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज की गई थी। बहरहाल, पुलिस को लगता है कि वह बाल-वधू की तस्करी से लगभग एक दशक या उससे अधिक समय से जुड़ा हुआ है। श्री कलोत्रा ​​कहते हैं,  “हमने यह भी महसूस किया है कि कई ‘लुटेरी दुल्हनें’ शायद इस तरह के रैकेट की शिकार होती हैं।”

11 महीने तक कोई जांच नहीं होने के बाद जब पाटनी परिवार लगभग हार मान चुका था, तब पुलिस ने प्रिया को छुड़ाया और उसे उसके परिवार से मिलवाया। प्रिया के पिता 45 वर्षीय विराट पाटनी कहते हैं, “मैंने पुलिस अधिकारियों और स्थानीय भाजपा नेताओं को कई पत्र सौंपे थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कोई जांच-पड़ताल नहीं हुई और वे मुझे यह कहकर टाल देते थे कि तुम्हारी बेटी किसी के साथ भाग गई है।”

हालांकि हेमा की गुमशुदगी का मामला 48 घंटों के भीतर सुलझा लिया गया था, लेकिन गुजरात के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि कम उम्र की महिलाओं की गुमशुदगी के मामलों पर बमुश्किल ही समुचित ध्यान दिया जाता है, क्योंकि इस तरह के मामलों को किसी के साथ भाग जाने की घटना मान लिया जाता है। श्री कलोत्रा ​​का भी कहना है कि गुमशुदा बच्चियों के मामलों की पर्याप्त जांच नहीं की जाती है।

अगर उनकी जांच की जाती तो हेमा और प्रिया और कई अन्य लड़कियों को जीवन को बर्बाद कर देने वाले ऐसे आघात का सामना नहीं करना पड़ता। अब, कोई मानसिक स्वास्थ्य सहायता दिये बिना, और राज्य द्वारा दिए गए 2 लाख रुपये के मुआवजे के साथ, हेमा की शादी होने वाली है। यह शादी उस घटना के पहले से ही तय थी। उसके मंगेतर को तो उसकी वेदना का पता तक नहीं है।

(‘द हिंदू’ में अलिशा दत्ता की रिपोर्ट साभार। अनुवाद : शैलेश)

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