बाढ़ पीड़ितों के राहत में जुटीं सर्वोच्च सिख संस्थाएं 

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पंजाब और पास लगते अन्य राज्यों में बारिश फिलहाल रुकी हुई है लेकिन अपने पीछे छोड़ गई बाढ़ की अलामत कहर ढा रही है। नेहरें और पुल टूट रहे हैं। गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीस से ज्यादा लोग बाढ़ के पानी में बह गए हैं। आधिकारिक सूचना है कि 250 गांव खाली करवाए गए हैं और इतने ही और खाली करवाए जाएंगे। 13 जुलाई तक सरकारी और गैर सरकारी स्कूल-कॉलेज तथा अन्य शैक्षणिक संस्थान बंद रहेंगे। 33 से ज्यादा यात्री ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। आफत की इस घड़ी में सर्वोच्च सिख संस्थाएं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और श्री अकाल तख्त साहिब सहित अन्य कई सिख-पंथक संस्थाएं सहयोग के लिए आगे आईं हैं।

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और अन्य तमाम सिख संस्थाओं से पंजाब में बाढ़ की स्थिति के मद्देनजर राहत कार्य और लंगर सेवा तत्काल शुरू करने की हिदायत दी है। ज्ञानी रघबीर सिंह ने श्री अकाल तख्त साहिब के सचिवालय से कहा कि ‘गुरु साहिबान ने सिख कौम को मानवता की निष्काम सेवा करने का उपदेश दिया है। इसीलिए वह अपील करते हैं कि समस्त सिख संस्थाएं लंगर, बिस्तरे, दवाइयां, कपड़े, पशुओं के लिए चारा तथा अन्य आवश्यक सामग्री पीड़ितों को पहुंचाने के लिए तत्काल प्रभावित इलाकों की तरफ कूच कर पीड़ितों की मदद करें। यह काम समुदाय, धर्म और जात-पात को एकदम दरकिनार करके किया जाना चाहिए। हम एक थे, हैं और रहेंगे।’

ज्ञानी रघबीर सिंह की हिदायत के बाद एसजीपीसी और अन्य सिख संस्थाओं ने तमाम गुरुद्वारा परिसरों के दरवाजे एकाएक लावारिस हुए बाढ़ पीड़ितों के लिए खोल दिए हैं। वहां बिस्तरों तथा 24 घंटे चलने वाले अटूट लंगर का बंदोबस्त किया गया है। घायलों अथवा बाढ़ के चलते बीमार हुए लोगों के लिए डॉक्टर मुहैया कराए गए हैं और दवाइयों का खर्चा एसजीपीसी देगी। पीड़ित लोग हालात एकदम सामान्य होने तक वहां रह सकते हैं और उन्हें किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं होगी।

गुरुद्वारा परिसरों के बाहर सुरक्षित पशुशालाएं बनाईं गईं हैं। प्रभावित पशुओं के लिए भी पशु चिकित्सकों और दवाइयों के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सूबे के हर गुरुद्वारे में ऐसे राहत कैंप लगाए गए हैं जिनके द्वार दिन-रात खुले मिलेंगे। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कर्मचारियों के अतिरिक्त आम संगत भी वहां सेवारत है। पुरुष, स्त्रियां और बुजुर्गों से लेकर किशोरों तक। हेल्पलाइन नंबर भी जारी कर दिए गए हैं।

एसजीपीसी चीफ एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि ऐतिहासिक गुरुद्वारों की धर्मशालाओं के कमरे बाढ़ पीड़ितों को मुफ्त आवंटित किए जा रहे हैं। फोन वार्ता में धामी कहते हैं, “मुश्किल वक्त में पीड़ितों के साथ खड़ा होना शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की परंपरा रही है और इसी वजह से प्राकृतिक आपदा के इस दौर में हम हर मजहब और जात-पात के लोगों का पूरा सहयोग कर रहे हैं और उन्हें हर संभव राहत पहुंचा रहे हैं।”

हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि “प्रदेश के अलग-अलग जिलों में 25 से ज्यादा गुरुद्वारों में विशेष केंद्र स्थापित किए गए हैं। श्री आनंदपुर साहिब से संबंधित तमाम गुरुद्वारों ने राहत शिविर शनिवार को ही शुरू कर दिए गए थे। कुछ रविवार को शुरू किए गए और कई जगह सोमवार को। बाकी जगह मंगलवार को राहत कैंप काम करना शुरू कर देंगे। मैं खुद प्रबंधों का जायजा ले रहा हूं।”

बाढ़ पीड़ितों को गुरू का लंगर।

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह कहते हैं कि, “पंजाब इस वक्त बहुत ज्यादा मुश्किल दौर से गुजर रहा है। बाढ़ के चलते फसलों का नुकसान तो हुआ ही है लोगों के बसेरे भी टूट गए। कई घर बाढ़ के चलते जमींदोज हो गए। हमारा फर्ज बनता है कि पीड़ितों को समुचित राहत मुहैया कराई जाए। इसीलिए एसीपीसी और अन्य तमाम सिख संगठनों को इस बाबत मैंने अपील की है। अपील अमल में आनी शुरू हो गई है। कोई भी पीड़ित किसी भी गुरुद्वारे में शरण ले सकता है और हालात पूरी तरह सामान्य होने तक वहां रह सकता है। किसी को किसी भी किस्म की दिक्कत नहीं आने दी जाएगी।”

उल्लेखनीय है कि बाढ़ पीड़ितों को प्रभावित इलाकों से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए भी मोबाइल वैन चलाई गईं हैं। अन्य वाहनों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी और ज्ञानी रघबीर सिंह कहते हैं कि ‘सेवा सर्वोच्च सिख सस्थाओं का प्रथम कर्तव्य है और इससे पीछे हटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। हम दो कदम आगे जाकर पीड़ितों का सहयोग करेंगे।’

इस बीच कुछ विदेशी संस्थाएं भी पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आईं हैं। ‘खालसा ऐड’ उनमें से प्रमुख है। सरकार और प्रशासन जो कर रहा है सो कर रहा है लेकिन बाढ़ पीड़ितों को इन संस्थाओं का भी बहुत बड़ा सहारा है। लोगों का ज्यादा यकीन इन्हीं पर टिका हुआ है। आम लोगों के मुंह से यह दुआ अक्सर सुनने में आती है कि अब बरसात न हो; नहीं तो समूचा पंजाब तबाह हो जाएगा।

वैसे, अतीत में पंजाब बाढ़ के कई भयावह मंजर देख चुका है। 1988 की बाढ़ को लोग भूले नहीं हैं- जब सूबे में गांव के गांव बह गए थे और मरने वालों का सही आंकड़ा अभी भी किसी सरकारी फाइल में नहीं मिलता। बीमा कंपनियों ने न जाने कितने मजबूरों के मुआवजे हड़प लिए। इसलिए कि वारिसों/परिजनों के पास मरने वालों की मौत के सबूत नहीं थे। जिनकी लाशें बहकर उस पार पाकिस्तान चली गईं, उनके सुबूत कहां किसे मिलते? देखना होगा कि मौजूदा भगवंत सिंह मान सरकार इस बाबत कितनी गंभीरता और संवेदनशीलता से काम लेती है।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)

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