प्रयागराज। न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों के घरों पर हुई छापेमारी के खिलाफ पूरे देश में आवाजें उठ रही हैं। इस मामले में जगह-जगह से विरोध-प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। और यह विरोध किसी एक हिस्से तक सीमित नहीं है। यह बात अलग है कि पत्रकार बिरादरी सबसे ज्यादा रोष में है। और मीडिया संगठनों से लेकर तमाम प्लेटफार्म इसका अपने-अपने तरीके से विरोध कर रहे हैं। लेकिन समाज के दूसरे तबके भी उद्वेलित हैं। उनको लग रहा है कि अगर मीडिया की स्वतंत्रता छीन ली जाएगी तो समाज में कुछ बचेगा ही नहीं। देश और समाज के संकट के वक्त अगुआ की भूमिका निभाने वाले वकील समुदाय ने एक बार फिर इस दिशा में पहल की है। प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट समेत दूसरे न्यायालयों से जुड़े वकीलों ने सरकार की इस नाइंसाफी के खिलाफ सड़कों पर उतर कर आवाज बुलंद की है।
पिछले पांच अक्तूबर को अधिवक्ता मंच, इलाहाबाद के सदस्यों की आकस्मिक बैठक हाई कोर्ट स्थित कैंप कार्यालय में वरिष्ठ अधिवक्ता केके राय की अध्यक्षता में हुई, जिसमें सभी अधिवक्ताओं ने दिल्ली में देश के बड़े पत्रकारों उर्मिलेश, अभिसार शर्मा, अनिंद्यो चक्रवर्ती तथा भाषा सिंह, परंजयगुहा ठाकुरता और मुकुल सरल समेत तमाम पत्रकारों के घरों पर छापेमारी की कड़े शब्दों में निंदा की। वक्ताओं ने न्यूज़ क्लिक इस कार्रवाई और पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोष व्यक्त की।

साथ ही इस तानाशाही पूर्ण कार्यवाही को गैर जरूरी, अन्यायपरक और मनमानापूर्ण करार दिया। वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा ऐसे लोगों पर जो सरकार की गलत नीतियों का खुलकर विरोध करते हैं और ऐसे पत्रकार जो अपना काम जिम्मेदारी से करते हैं और सरकार से जनता के जरूरी मुद्दों पर सवाल करते हैं, उनके विरुद्ध झूठे मामले गढ़कर उन पर फर्जी मुकदमे लाद कर जेल भेजने का चलन बन गया है।
सरकार का मकसद साफ है कि वह ऐसे तमाम बुद्धिजीवियों, पत्रकारों को जो मुखर होकर लोकतंत्र की आवाज को बुलंद करने का साहस करते हैं उन्हें प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी व पुलिस के जरिए लगातार प्रताड़ित कर रही है। 2 दिन से दिल्ली व अन्य जगहों पर छापेमारी व गिरफ्तारी अघोषित आपातकाल की खुली घोषणा के समान है और ऐसी कार्यवाहियों के माध्यम से सरकार लोगों में डर पैदा कर करके संविधान में दी गयी अभिव्यक्ति की आज़ादी को खत्म कर देना चाहती है।

देश के बड़े पत्रकारों पर चीन से फंडिंग का इल्जाम लगाकर उनको गिरफ्तार किया जा रहा है मुकदमे लादे जा रहे हैं और ऐसे संस्थानों और पत्रकारों को बदनाम किया जा रहा है जबकि सरकार द्वारा चीन से सभी तरह के व्यापार स्वयं किया जा रहे हैं और सरकार सभी मोर्चों पर बुरी तरह असफल होने के बाद तानाशाही रवैया अपनाकर लोकतंत्र में विश्वास करने वाले जनमानस की आवाज को कुचलने लिए सरकारी एजेंसियों का हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।
देश के जागरूक लोगों पर अत्यंत गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज कर देश में भय का वातावरण व्याप्त कर लोकतंत्र को समाप्त करने के लिए प्रयासरत है जिसे किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अधिवक्ता मंच के सभी लोगों ने अपनी बातें रखते हुए सरकार द्वारा किए जा रहे ऐसे कृत्य को देश व लोकतंत्र विरोधी बताया तथा देश के नागरिकों से सरकार को उत्पीड़नात्मक कार्रवाई के विरोध में मुखर होकर आवाज उठाने की अपील की। बैठक में सह संयोजक मो. सईद सिद्दीक़ी, नीतेश कुमार, राकेश कुमार यादव, पी के गुप्त, रज्जन सिंह, संयोजक राजवेन्द्र सिंह, बुद्ध प्रकाश, विकास मौर्य आदि अनेक अधिवक्ता उपस्थित रहे।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
जांच एजेंसियां जब अभिलेख कोर्ट में रखें तब जो फैसला आए उसमे यदि दोष साबित न हो तब ये प्रदर्शन उचित पहले ही फ़ैसला करने वाले वकील गलत कर रहे या फिर ये भी हो सकता है कि चाइना कमीशन का बटवारा होना चाहिए तो प्रदर्शन जारी रहे