अमेरिका का ‘ट्रंप फैक्टर’

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अमेरिकी मीडिया की खबरों के मुताबिक जोसेफ रोबिनेट बाइडेन राष्ट्रपति चुनाव से हटने के लिए बढ़ते गए दबाव के आगे अब झुक गए हैं। दबाव बहुतरफा है। 27 जून को टीवी चैनल सीएनएन के मंच पर रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के साथ बाइडेन की हुई बहस के बाद से जनमत सर्वेक्षणों में राष्ट्रपति का दांव गिरता चला गया है। नतीजतन, फंडर (चंदा-दाता घराने) उन पर से दांव खींचने लगे, कॉरपोरेट लॉबिस्ट्स की उनमें दिलचस्पी घटने लगी, पार्टी के अंदर नया उम्मीदवार चुनने की मांग तेज होने लगी और एक के बाद एक उनके समर्थक साथ छोड़ने लगे। 

बाइडेन को सबसे तगड़ा झटका संभवतः पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के हाथ खींचने से लगा। खबरों के मुताबिक ओबामा ने भी ह्वाइट हाउस संदेश भेज दिया है कि अब बाइडेन का जीतना मुश्किल है। ओबामा आज भी सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी में संभवतः सबसे प्रभावशाली “मैनुपुलेटर” हैं।

तो अब डेमोक्रेटिक पार्टी बाइडेन की जगह संभवतः कमला हैरिस या किसी अन्य को अगले पांच नवंबर होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना नया उम्मीदवार चुनेगी। वैसे उम्मीदवार चाहे जो बने, उसकी संभावना फिलहाल उज्ज्वल नहीं दिखती। हकीकत यही है कि ट्रंप के साथ बहस के दौरान बाइडेन के डिमेंशिया-ग्रस्त होने की बात अगर जग-जाहिर नहीं होती, तब भी उनके सामने हिमालय पर चढ़ने जैसी चुनौती मौजूद थी। 

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव मोटे तौर पर उन राज्यों के नतीजों से तय होता है, जिन्हें बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स कहा जाता है। (फिलहाल, छह राज्य- एरिजोना, नेवाडा, विस्कोंसिन, मिशिगन, पेनसिल्वेनिया, और जॉर्जिया- स्विंग स्टेट माने जाते हैं। पहले आयोवा और ओहायो भी स्विंग स्टेट थे, लेकिन अब वे रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में झुक चुके हैं।) जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक छह में से पांच राज्यों में ट्रंप पहले भी आगे थे। बहस और उसके बाद ट्रंप पर हुए जानलेवा हमले का नतीजा यह हुआ है कि अब वे सातों राज्यों में आगे हैं और उनकी लीड का फासला बहुत बढ़ गया है।     

पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पिछले दिनों कई कानूनी मुश्किलों से गुजरे। एक पोर्न आर्टिस्ट से यौन संबंध के मामले को दबाने के लिए रकम देने के मामले में उन्हें दोषी भी ठहराया गया है। अभी कई मुकदमे चल रहे हैं। आम तौर पर ऐसे लांछनों का राजनेताओं की लोकप्रियता पर बुरा असर पड़ता है और उनकी चुनावी संभावनाएं धूमिल हो जाती हैं। लेकिन ट्रंप ऐसे सामान्य नियमों से परे हैं!

इसीलिए 27 जून की बहस और जानलेवा हमले के पहले भी ट्रंप के जीतने की संभावनाएं काफी मजबूत मानी जा रही थीं। अमेरिकी राजनीति के विशेषज्ञ इसका कारण “ट्रंप फैक्टर” को बताते हैं। यह फैक्टर कई पहलुओं से बना है। उसका केंद्रीय पहलू यह है कि ट्रंप ने 2007-08 की मंदी के बाद देश में बढ़ते गए जन-असंतोष को अपने पक्ष में गोलबंद कर रखा है। इसे आधार बना कर लिबरल सोच और उससे जुड़ी राजनीतिक शक्तियों की साख खत्म करने की मुहिम में वे काफी हद तक सफल रहे हैं। देश में एक बहुत बड़ा तबका है, जो मानता है कि उसकी तमाम मुसीबतों की जड़ में लिबरल्स ही हैं। 

जिस दौर में लिबरल राजनीति और अर्थव्यवस्था आम जन के जीवन स्तर में सुधार का जरिया बनी हुई थी, उस दौर में लिबरल सोच वाले लोग अपने सांस्कृतिक उसूलों को भी लोकप्रिय बना पाए थे। उस दौर में जब ‘ग्रेट अमेरिकन मिडल क्लास’ का प्रसार हुआ और ‘अमेरिकन ड्रीम’ की कहानियां दुनिया भर में फैलीं; स्त्री-पुरुष संबंध, लैंगिक स्वतंत्रता, दूसरी संस्कृतियों के प्रति उदारता, तथा सामाजिक एवं धार्मिक जीवन के बीच फर्क करने की सोच का भी प्रसार हुआ। यानी यह एक पूरा पैकेज था। उस पैकेज से कार्य-स्थल अधिकारों और समृद्धि के सपने को जब शासक वर्ग ने अलग कर दिया, तब उस पैकेज के सांस्कृतिक पहलू भी अपना आकर्षण खोने लगे। उलटे अमेरिका में पारंपरिक रूप से वर्चस्वशील रहे श्वेत, ईसाई धर्मावलंबी और अन्य समुदायों में उन सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ उग्र प्रतिक्रिया उभरने लगी।

जब तक ट्रंप राजनीतिक परिदृश्य पर उभरे, तब तक ये परिघटनाएं एक ठोस मुकाम पर पहुंच चुकी थीं। दरअसल, इनकी वजह से ही “ट्रंप फैक्टर” की पृष्ठभूमि बनी। इसी पृष्ठभूमि के कारण 2016 में ट्रंप अप्रत्याशित ढंग से राष्ट्रपति चुनाव जीत गए। और संभवतः इसी वजह से 2024 में वे फिर जीत जाएंगे- हालांकि इस बार उनकी जीत अपेक्षा के अनुरूप मानी जाएगी। 

विश्लेषकों के मुताबिक आज कई खास पहलू “ट्रंप फैक्टर” को परिभाषित कर रहे हैं। ट्रंप अपने “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के अस्पष्ट नारे में इन पहलुओं को समाहित करने में कामयाब रहे हैं। “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” की शुरुआत एक नारे से हुई, लेकिन यह एक आंदोलन में तब्दील हो गया, जिसे मागा (Make America Great Again- MAGA) मूवमेंट नाम से आज जाना जाता है। मागा अमेरिका के “पुराने गौरव, बल और सुख-समृद्धि” को वापस लाने की आस जगाते हुए आगे बढ़ा है।

यह माहौल बना कर ट्रंप ने मर्दानगी को जगाने वाली अपनी छवि बनाई है। संभवतः इसीलिए स्त्री संबंधी मर्यादाओं को तोड़ने के उनके रिकॉर्ड का उनकी राजनीति पर कोई खराब असल नहीं हुआ है। हमले के तुरंत बाद जिस तरह वे उठ खड़े हुए, उससे यह छवि और मजबूत हुई है। उधर इनवैंजिकल क्रिश्चियन्स में यह अंधविश्वास तेजी फैलाया गया है कि ट्रंप को ईश्वर ने बचाया- इसलिए कि ईश्वर ने उन्हें अमेरिका को फिर से महान बनाने के लिए धरती पर भेजा है।

ट्रंप की मर्दानगी (इलीट और लिबरल्स के खिलाफ उनकी मुहिम), भव्यता (जो ट्रंप के धनी बैकग्राउंड के कारण मिलती है), गुजरे ‘अच्छे दिनों’ के स्मृति मोह, आम श्रमिकों की दशकों से ठहरी हुई वास्तविक आय और इसी बीच अरबतियों की संपत्ति बढ़ने से उत्पन्न आक्रोश, अमेरिकी साम्राज्य के निरंतर क्षय से उत्पन्न व्यग्रता, आदि से मिल कर आज का “ट्रंप फैक्टर” बना। कोरोना काल के बाद से लगातार जारी महंगाई ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। 

अतः जो बाइडेन का रास्ता पहले भी आसान नहीं था। अब जबकि उनकी कहानी का पटाक्षेप हो रहा है, उनकी जगह डेमोक्रेटिक पार्टी चाहे जिसे चेहरा बनाए, उसकी राह और भी अधिक मुश्किल होनी है। इसलिए कि इस बीच घटनाएं लगातार ट्रंप के पक्ष में हुई हैं। उनसे “ट्रंप फैक्टर” अपराजेय-जैसा बन गया है। 

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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