संगम नोज के अलावा झूसी इलाके में भी हुई थी भगदड़, प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा-24 से ज्यादा लोग मारे गए

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नई दिल्ली। 29 जनवरी की सुबह महाकुंभ में एक नहीं दो जगह पर भगदड़ में श्रद्धालुओं की मौत हुई है। कल की यह खबर आज देश को पता चल पा रही है। इसकी वजह तो सिर्फ उत्तर प्रदेश की सरकार और महाकुंभ मेला प्रशासन ही बता सकता है।

कल तक पूरे देश को सिर्फ यही बताया गया था कि प्रयागराज शहर से संगम नोज की ओर जाने वाले रूट पर भीड़ में अफवाह की खबर के चलते हादसा हो गया, जिसके बारे में प्रशासन ने 30 लोगों के हताहत होने की बात कुबूल की थी। 

लेकिन संगम में स्नान के लिए गंगा नदी के दूसरे छोर पर भी तो लाखों-लाख लोग जमा हो रहे थे। पहली दुर्घटना के 4 घंटे बाद सुबह 5 बजे झूसी की तरफ से आने वाला 15 लाख लोगों का हुजूम भी भयानक हादसे का शिकार हुआ, लेकिन उसके बारे में अभी भी उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कोई आधिकारिक सूचना क्यों नहीं है?

क्या कल के मौनी अमावस्या स्नान को सफल बनाने के लिए इतनी बड़ी दुर्घटना को देश के सामने नहीं आने दिया गया? संगम नोज के हादसे के बारे में भी कल शाम तक जाकर ही मेला प्रशासन आधिकारिक तौर पर 30 लोगों की मौत को स्वीकार कर पाने की स्थिति में आ सका, जबकि हताहतों की संख्या के बारे में उसे सुबह ही जानकारी थी।

ये वे कुछ सवाल हैं, जो योगी सरकार की मंशा के बारे में गहरा संदेह पैदा करते हैं। बता दें कि झूसी की तरफ से आ रही भीड़ के बारे में सबसे पहले खबर करने वालों में इंडिया टुडे ग्रुप के वेब पोर्टल लल्लनटॉप को इसका श्रेय जाता है।

इसके संवाददाता अभिनव पांडे ने आधे घंटे के अपने वीडियो कवरेज में बताया है कि उन्हें भी कल शाम तक झूसी में हुए हादसे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन  स्थानीय होने के नाते उन्हें इस बारे में लोगों से जानकारी मिली तो वे अपने कैमरा मैन के साथ झूसी चले गये।

यहां पर उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के साथ जो बातचीत की है, उसके मुताबिक झूसी में भगदड़ से करीब 24 लोगों के हताहत होने की खबर है। दुर्घटनास्थल पर रात 11 बजकर 42 मिनट पर लल्लनटॉप की मीडिया टीम ने जो वीडियो कवरेज पेश किया है, वो दिल दहला देने वाला है।

बड़ी संख्या में सफाई कर्मियों के द्वारा हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पांव की चप्पलें, जूते, शाल बटोरकर ट्रैक्टर में लादे जा रहे थे। कुछ देर बाद जब लगा कि सफाई कर्मियों से इतना सारा सामान समेटने में काफी वक्त लग रहा है, तो जेसीबी लगाकर प्रयागराज नगर निगम रातों-रात सारे मलबे को ठिकाने लगाने में जुट गया था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यहां की स्थिति संगम से भी ज्यादा भयावह थी। 

लल्लन टॉप संवाददाता अभिनव पांडे ने जब पूरे घटनाक्रम का वीडियो के साथ ब्यौरा देना शुरू किया, तो संभवतः उन्हें भी इस बात का अहसास नहीं था कि उन्होंने कितनी भयावह तस्वीर को उजागर करने का काम किया है। जैसे-जैसे यह वीडियो आगे बढ़ता है प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, घटना स्थल पर बिखरे पड़े चप्पल, जूतों और कपड़ों का ढेर खुद बयां करता चला जाता है कि उस सुबह झूसी का क्या मंजर रहा होगा। 

जब लल्लनटॉप की टीम ने घटनास्थल पर सफाई में जुटे एक कर्मचारी से जानना चाहा कि अभी तक कितना मलबा हटाया जा चुका है, तो सफाईकर्मी का कहना था, “शाम के 6 बजे से मलबा हटा रहे हैं। अभी तक कुल 7-8 ट्रैक्टर लोड किया जा चुका है।”

7-8 ट्रैक्टर जूते, चप्पल और कपड़े का मतलब होता है कम से कम 15-16 टन (15,000 किलो)। और कल रात 12 बजे भी जब यह वीडियो शूट किया जा रहा था, उस समय भी हजारों लोगों के जूते, चप्पल यहां तक कि छोटे बच्चे के चप्पल भी देखने को मिले।

जिस रास्ते से श्रद्धालुओं को संगम में स्नान के लिए जाना था, उसके साथ ही प्रशासन के द्वारा हल्दीराम किओस्क के लिए एक दुकान भी आवंटित की गई थी। हल्दीराम किओस्क के भीतर जब संवाददाता ने अंदर का हाल देखा तो सारी स्थिति पूरी तरह से साफ़ हो गई। अंदर खाने-पीने का सारा सामान बिखरा पड़ा था, और काउंटर पर कई लोगों के आईकार्ड और आधार बिखरे पड़े थे।  

हल्दीराम किओस्क का काउंटर संभाल रहीं नेहा ओझा से जैसे ही लल्लनटॉप ने कुछ सवाल करना चाहा तो गुस्से से बिफर कर नेहा का जवाब था, “आप लोग बहुत जल्दी नहीं आ गये? हम पुलिस को क्या बोलें, आप लोग भी तो इतनी देर से आये हैं। यहां पर जब जरूरत थी तब कोई नहीं था।

4 घंटे तक हम यहां पर लोगों की मदद कर रहे थे। यहां पर मेरे दुकान में 6 लोग मरे हैं। उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? और पुलिस वाले बोल रहे थे अरे इतने लोग मर गये? और जो हमारे दुकान का नुकसान हुआ है, उसका क्या?”

नेहा आगे कहती हैं, “सुबह 4 बजे से लेकर 8 बजे तक यह सब चलता रहा। कोई मदद के लिए नहीं था। पुलिस के सिर्फ दो लोग यहां पर थे, जबकि यहां पर 15 से 20 लाख लोगों की भीड़ उमड़ी पड़ी थी। यह सब क्या उनके वश का था। यहां पर फ़ोर्स की जरूरत थी।” 

हल्दीराम में नेहा के साथ एक पुरुष कर्मी भी मौजूद थे, जिनका साफ़ कहना था, “पुलिस वालों ने हमें कहा कि जो लोग घायल हैं, उन्हें अंदर ले लें। हम लोगों ने घायलों को कियोस्क के भीतर रखने की अनुमति दी। लेकिन हमारा कैश काउंटर लुट गया।” नेहा बीच में कहती हैं, “पूरे 1.80 लाख रूपये हमारे चोरी हो गये। हमारा काउंटर तोड़ दिया गया। पुलिस हमारी नहीं सुन रही है। केवल लाशें गिनी जा रही हैं।”

पुरुष सहकर्मी ने बताया, “4 मृतकों की बॉडी तो सिर्फ हमारे दुकान के भीतर से निकाली गई है। लोग बता रहे हैं कि 24 लोग मरे हैं। इतने सारे आधार कार्ड और आईडी कार्ड यहां बिखरे पड़े हैं। आखिर ये लोग कहां चले गये? बहुत कुछ छिपाया जा रहा है। जनता को सारी चीज पता होनी चाहिए।”

नेहा ओझा कहती हैं, “यहां से हम बच्चों को अंदर ले रहे थे, क्योंकि बाहर लोग मर रहे थे। हर तरफ से लोग ही लोग उमड़े पड़े थे। बीच में हमारी दुकान थी। मेरी सुरक्षा का क्या? मैं यहां पर अकेली थी।” 

सवाल-जवाब के दौरान नेहा ने बताया कि वो बनारस से यहां नौकरी के लिए आई हुई थी। उनके जिम्मे दुकान की बिक्री और कैश संभालने का काम था। नेहा कहती हैं, “जो काम हम कल कर रहे थे, वो मेरा जॉब नहीं था। मेरी जिम्मेदारी दुकान संभालने की थी। अब मैं इस नुकसान की भरपाई कैसे करूं? मैं सिर्फ एक छात्रा हूं। काशी विद्यापीठ में पढ़ती हूं। मैं ये पैसा कहां से भरूं? मेरे साथ मेरी 3 दोस्त थी, उन्होंने मेरी मदद की।” 

लल्लन टॉप के अभिनव पांडे खुद सवाल करते हैं कि इस हादसे की जिम्मेदारी किसके जिम्मे होनी चाहिए? प्रयागराज के डीएम विजय किरण आनंद, मेला के एसएसपी राजेश द्विवेदी, डीआईजी वैभव कृष्णन या मुख्यमंत्री इनके दुकान में हुए नुकसान की भरपाई तय करेंगे?

एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, “जितना भयानक मंजर अभी दिख रहा है वह तो प्रशासन ने काफी हद तक साफ़ कर दिया है, लेकिन तब यहां से लेकर शास्त्री बृज से पहले तक चप्पलों का अंबार लगा हुआ था। लोग अपने सामान को फेंक किसी तरह अपने प्राण बचाने की जुगत में लगे हुए थे।”

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने आज अपनी टिप्पणी में कहा है, “हमारा मुख्यमंत्री झूठा है। इसने पाप किया है। इतनी बड़ी घटना घट गई और हमसे झूठ बोला कि कुछ हुआ ही नहीं!! हमें उन मृतकों के लिए प्रार्थना का मौक़ा भी नहीं दिया। ये मौतें छिपा रहा है। ये इसी महाकुंभ में इस्तीफ़ा दें!!”

उनकी बातों में आक्रोश के साथ-साथ भारी पीड़ा झलकती है। लेकिन झूसी की घटना तो आज शाम से मीडिया कवरेज में आनी शुरू हुई। अखाड़ों को भी यही बताकर शाही स्नान के लिए तैयार किया गया कि भगदड़ तो मची, लेकिन कोई बड़ा जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यहां पर यह उठता है कि पहली दुर्घटना के बाद झूसी के हादसे को कल देश से क्यों छुपाया गया? 

चलिए, ये भी मान लेते हैं कि पवित्र स्नान के दिन यह खबर फैलती तो श्रद्धालुओं को गहरा धक्का पहुंचता। लेकिन आज तो सरकार को सामने आकर इस दुखद घटना के बारे में बताना चाहिए था। लेकिन प्रयागराज प्रशासन तो झूसी के हादसे को छुपाने में जुटा हुआ था। 

उससे भी ज्यादा हैरानी यह देखकर होती है कि आज दिन में झूसी के ही छतनाग घाट और नागेश्वर घाट पर बड़ी संख्या में तंबुओं में आग लग जाने से कई तंबू और कनात जलकर ख़ाक हो गये हैं। कुछ दिन पहले भी ऐसे ही आगजनी की खबर थी। एक दिन पहले इतना बड़ा हादसा हो जाने के बावजूद प्रशासन को कोई परवाह ही नहीं है। शायद उसे भी अहसास है कि खबर यदि दबा दी गई तो समझ लेंगे कि हादसा हुआ ही नहीं। 

आखिर में, प्रयागराज से वापस जाने वाले श्रद्धालुओं का क्या हाल है, इसके बारे में सोशल मीडिया पर इसका हाल बता रहे एक सज्जन की प्रशासन से अपील कुछ इस प्रकार से थी, “प्रयागराज ट्रैफिक पुलिस, मुझे और मेरे परिवार को झूसी रोड पर अपनी कार में 10 किमी का सफर तय करने में 12 घंटे बीत चुके हैं। कृपया उन लोगों की मदद करें जो प्रयागराज से बाहर निकल रहे हैं।”

(रविंद्र सिंह पटवाल की रिपोर्ट।)

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