उर्दू कथाकार अनवर मिर्ज़ा के लघुकथा संग्रह ’शाम ए गरीबाँ’ के हिन्दी संस्करण का लोकार्पण एवं चर्चा गोष्ठी का आयोजन जनवादी लेखक संघ और ‘स्वर संगम फ़ाउंडेशन द्वारा’ 18 जनवरी 2025 को विरुन्गला केंद्र, मीरा रोड (महाराष्ट्र) में संपन्न हुआ। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि, शायर हृदयेश मयंक ने की। वहीं प्रसिद्ध कथाकर धीरेन्द्र अस्थाना बतौर मुख्य अतिथि इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत में सामाजिक चेतना और समानांतर सिनेमा के पुरोधा श्याम बेनेगल को दो मिनट मौन रहकर श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद वरिष्ठ कथाकार धीरेन्द्र अस्थाना के हाथों ’शाम ए गरीबाँ’ पुस्तक के हिन्दी संस्करण का विमोचन हुआ।
मुंबई में हिंदी और उर्दू कथाकारों के बीच आदान-प्रदान की एक सशक्त परंपरा रही है। उर्दू के लगभग सभी प्रमुख कथाकारों का हिंदी साहित्य में स्वागत होता रहा है। मंटो, इस्मत चुगताई, कृश्न चंदर, राजिंदर सिंह बेदी, सुरेंद्र प्रकाश जैसे बड़े कथाकारों का समूचा साहित्य आज हिंदी में उपलब्ध है।

मुंबई से जुड़े उर्दू कथाकारों की दूसरी पीढ़ी में महमूद अयुबी, सलाम बिन रज़्ज़ाक, और साजिद रशीद जैसे अफ्साना निगारों की कहानियाँ उर्दू में प्रकाशित हुईं और उन्हें खूब सराहना भी मिली। इसके बाद, एक लंबे अंतराल तक मुंबई के उर्दू साहित्यिक हलकों से हिंदी में कोई कथा संकलन सामने नहीं आया। हालांकि, देर से ही सही, अनवर मिर्ज़ा ने अपनी पुस्तक ‘शाम-ए-गरीबां’ के माध्यम से इस ठहराव को तोड़ा है।
कार्यक्रम की शुरुआत में वक़ार कादरी ने प्रभावी अन्दाज़ में संग्रह की चुनिंदा कहानियों का पाठ किया। इसके बाद संग्रह पर चर्चा का सिलसिला आरंभ हुआ। प्रमुख अतिथि धीरेन्द्र अस्थाना ने अनवर मिर्ज़ा की लघुकथाओं पर अपनी बेबाक राय देते हुए कहा, ‘‘इस में कोई शक नहीं कि अनवर मिर्ज़ा लघुकथा और कहानी की विधा से बख़ूबी वाक़िफ़ हैं लेकिन उनकी अपनी कहानियों के संदर्भ में वे कहीं-कहीं छिटकते नज़र आते हैं। संग्रह की कहानी ’सोनपरी’ लघुकथा के मापदंड पर खरी उतरती है और मेरे नज़दीक़ यही कहानी, संग्रह की सब से अच्छी कहानी है।’’
उर्दू के उपन्यासकार रहमान अब्बास ने अनवर मिर्ज़ा के साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि ‘‘उनकी ये लघु कथाएँ बहुत पहले ही किताबी शक्ल में आ जानी चाहिये थीं, अनवर के यहाँ आला दर्जे की ज़बान के साथ एक लंबा अनुभव है इसलिये अब उन्हें उपन्यास लेखन की तरफ आना चाहिये।’’
परिदृश्य प्रकाशन के रमन मिश्र ने ’शाम ए गरीबाँ’ किताब की एक ख़ूबी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ‘‘इन लघुकथाओं में ग़ज़ब की पठनीयता है, साहित्यिक लोगों के साथ-साथ गैर-साहित्यिक लोग भी इसे उतने ही चाव से पढ़ेंगे।’’
असलम परवेज़ ने मंटो के मुख़्तसर अफ़साने ‘सियाह हाशिये’ और ‘शाम-ए-गरीबाँ’ की लघुकथाओं की तुलना करते हुए कहा कि ‘‘दोनों के यहाँ ‘इश्तेराक’ यानी एकरूपता के कई पहलुओं को तलाश किया जा सकता है।’’
वक़ार क़ादरी ने कहा कि ‘‘अनवर मिर्ज़ा के यहाँ समाजी समस्याओं की गहरी समझ है, इसीलिये उनकी कहानियाँ सीधे पाठक से जुड़ती हैं।’’गज़ल के शायर राकेश शर्मा ने कहा की ‘‘अनवर मिर्ज़ा ने इन कथाओं को शायरी की तर्ज़ पर ढाला है।’’
वहीं शायर मुस्तहसन अज़्म ने कहा कि ‘‘ये लघु कथाएँ पाठक को पढ़ने पर मजबूर करती हैं।’’‘पहली खबर’ और ‘तिरछी आंख’ के सम्पादक मुशर्रफ शम्सी ने बताया कि ‘‘अनवर मिर्ज़ा ने इन कहानियों के माध्यम से ज़िंदगी के हर पहलू को छुआ है।’’
प्रतिमा राज ने कहा कि ‘‘अनवर मिर्ज़ा की कहानियाँ इंसानियत का सबक़ देती हैं।’’कवि अनिल गौड़ ने कहा कि ‘‘जो भी साहित्य सामज को बेहतर बनाये, मैं उसे सार्थक साहित्य समझता हूँ, ये कथाएँ इस कसौटी पर खरी उतरती हैं।’’
कार्यक्रम का संचालन मुख़्तार खान और शादाब रशीद ने किया। अंत में ‘स्वर संगम फाउंडेशन’ के सचिव हरिप्रसाद राय ने अनवर मिर्ज़ा को लगातार लघुकथाएँ लिखते रहने की सलह देते हुए सभी साहित्य प्रेमियों का शुक्रिया अदा किया। इस अवसर पर वरिष्ठ नाट्य निर्देशक आर एस विकल, सिनेमा कलाकार अजय रोहिल्ला, फिरोज खान, कथाकार मिथिलेश, विनीता वर्मा जैसी साहित्य व कला जगत की बहुत सी नामवर हस्तियाँ मौजूद थीं।
(मुख्तार खान, जनवादी लेखक संघ, मुंबई)
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