वादियों के गोशे-गोशे से संवाद करती कश्मीर कोकिला हब्बा खातून और उनके गीत 

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हब्बा खातून का जीवनकाल 1554 से 1609 तक का था। लगभग यही कार्यकाल मुग़ल बादशाह अकबर का भी था। जिस तरह अकबर की बादशाहत मशहूर है, उसी तरह हब्बा ख़ातून के गीत और कवितायें हर कश्मीरी के होठों पर अमर हैं। कश्मीर की सबसे प्रसिद्ध कवयित्रियों में से एक हब्बा ख़ातून महिलाओं की अभिव्यक्ति, सहनशक्ति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक मानी जाती हैं। वह “कश्मीर की बुलबुल” या ‘’नाइटएंगिल ऑफ़ कश्मीर” के नाम से प्रसिद्ध हैं। हब्बा ख़ातून ने अपने भावुक और गहरे काव्य के माध्यम से प्रेम, वियोग, विरह, और स्त्री संघर्ष जैसे विषयों को ज़बरदस्त रूप से अभिव्यक्त किया।

उनके समय की कविता पर पुरुषों का वर्चस्व था। लेकिन, हब्बा ख़ातून ने महिलाओं के लिए एक विशिष्ट स्थान बनाया। उन्होंने अपनी भावनाओं को शब्दों में ढाला और अपने काव्य के माध्यम से महिलाओं के दर्द और भावनाओं को उजागर किया। उनकी जीवन यात्रा आज भी प्रेम, बिछड़न और कविता की अटूट शक्ति की मिसाल बनी हुई है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

हब्बा ख़ातून का समय 16वीं शताब्दी का कश्मीर है। यह काल राजनीतिक उथल-पुथल, मुग़लों के आक्रमण और सांस्कृतिक बदलावों के दौर का था। उस समय समाज में महिलाओं को शिक्षा और स्वयं को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नाम मात्र की थी।

लेकिन, इन कठिनाइयों के बीच हब्बा ख़ातून ने अपनी कविताओं के माध्यम से महिलाओं की भावनाओं को आवाज़ दी। उनके गीतों में दर्द, प्रेम और तड़प की झलक है। हालांकि उन कविताओं में उनकी व्यक्तिगत पीड़ा है, लेकिन यह पीड़ा इतनी घनीभूत है कि वह कश्मीरी महिलाओं की सामूहिक वेदना को अभिव्यक्त करती पीड़ा बन गयी है। हब्बा ख़ातून कश्मीर के अंतिम स्वतंत्र शासक यूसुफ़ शाह चक से अपने प्रेम और विवाह के लिए भी जानी जाती हैं। लेकिन, जब मुग़लों ने यूसुफ़ शाह चक को निर्वासित कर दिया, तो यह घटना उनके जीवन और कविता दोनों के लिए एक बड़ा मोड़ बन गयी।

उनकी कवितायें वनवुन में महिलाओं की भावनाओं, दिल टूटने और सहनशक्ति को दर्शाती हैं, जिससे वे कश्मीरी महिलाओं की प्रेरणा बन गईं।

वनवुन या वानवुन

यह कश्मीर में पारंपरिक लोकगीत की गायन शैली है, जो कश्मीरी संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई है। इसके विषय सामान्यतया विवाह गीत, प्रार्थनायें, सूफ़ी और रहस्यवादी कविता, मौसमी उत्सव, और ऐतिहासिक घटनायें होते हैं। ज़ाहिर है, इन गीतों में काव्यात्मकता और भावनात्मकता गहरी होती है। इसे प्रश्नोत्तर शैली में गाया जाता है। सबसे पहले मुख्य गायक एक पंक्ति गाता है, और बाद में पूरा समूह उसे समवेत स्वर में दोहराता है। इस गायन में भाग लेने वालों में मुख्य रूप से महिलायें होती हैं। आमतौर पर इसमें किसी वाद्य यंत्र का इस्तेमाल नहीं होता है।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

हब्बा ख़ातून का असली नाम ज़ून था। इसका अर्थ “चांद” होता है। उनका जन्म कश्मीर के पंपोर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उस समय के विपरीत उन्हें शिक्षा हासिल करने का अवसर मिला था और उन्हें बचपन से ही कविता और संगीत में रुचि थी।

विवाह और शुरुआती मुश्किलें 

उस समय के चलन के हिसाब से किशोरावस्था में ही उनका विवाह कर दिया गया। लेकिन, उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था। उनके ससुराल वालों को कविता और संगीत में उनकी रुचि बिल्कुल ही पसंद नहीं थी और उन्हें अपने विचारों को इस तरह से व्यक्त करने से रोक दिया गया।

हब्बा ख़ातून ने अपने ससुराल वालों की एक नहीं मानी और अंत में उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया। लेकिन, उस परिस्थिति में भी वह नहीं टूटीं। उन्होंने इसका उपयोग स्वयं की तलाश में किया। उन्होंने अपनी कवितायें कहना जारी रखा और प्रकृति व संगीत के बीच वह अह्लादित थीं। उनके दर्द और संघर्ष उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होने लगे और वह अभिव्यक्ति उस समय की महिलाओं की आवाज़ बन गयी। लिहाज़ा वह एक जन कवयित्री बन गयीं।

राजा से भेंट

हब्बा ख़ातून की नियति ने उस समय एक ग़ज़ब की करवट ली, जब कश्मीर के शासक यूसुफ़ शाह चक ने हब्बा ख़ातून को देखा। जो बुद्धिमत्ता, सौंदर्य और काव्य प्रतिभा उनके दुर्दिन के कारण बने थे, उन्हीं से प्रभावित होकर चक ने उनसे विवाह कर लिया। इस तरह, हब्बा ख़ातून कश्मीर की रानी बनी गयीं और उनका जीवन प्रेम और सम्मान से भरपूर हो गया।

राज व्यवस्था का साथ मिलते ही उनकी कहानी भी प्रसिद्धि पाती गयी और कश्मीरी कला और संस्कृति की वह संरक्षक बना दी गयीं। उनके गीतों में प्रेम, प्रकृति और व्यक्तिगत दुःख का सुंदर समावेश था, जो लोगों को अपनी ओर खींचता था।

वियोग और निर्वासन

लेकिन, उनका वह सौभाग्य ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाया। मुग़ल सम्राट अकबर ने कूटनीति के तहत यूसुफ़ शाह चक को दिल्ली बुलाया। उन्हें बंदी बनाकर बिहार में निर्वासित कर दिया गया।

पति के इस निर्वासन से वह टूट गईं। उनका वियोग ही उनकी कविताओं का केंद्रीय विषय बन गया। वह कश्मीर की घाटियों में भटकती रहीं और विरह के गीत गाती रहीं।

“म्ये ह क्याह करख छोनी वथवानय,बा गथवानय यार म्योन वालो”

(“मैं तुम्हारे वादों का क्या करूं, मेरा प्रियतम मुझे अकेला छोड़ गया”)

इस तरह पंक्तियां उनके गहरे दुःख और सार्वभौमिक प्रेम-वियोग की भावना को व्यक्त करती हैं।

नारीवाद का प्रतीक

हालांकि, 16वीं शताब्दी में नारीवाद का कोई औपचारिक रूप तो नहीं बन पाया था। लेकिन, हब्बा ख़ातून की कविता और जीवन महिलाओं के सशक्तिकरण और आत्म-अभिव्यक्ति के मूल विचारों को दर्शाते हैं। चूंकि, उस समय साहित्य में पुरुषों का वर्चस्व था और महिलाओं की आवाज़ कम सुनी जाती थी। लेकिन, हब्बा ख़ातून ने अपने गीतों में अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया और समाज की परंपराओं को चुनौती दी। जब समाज महिलाओं से चुप रहने और सहने की उम्मीद करता था, हब्बा खातून ने कविता को अपने दिल की आवाज़ बनाने का माध्यम बना लिया था।

हब्बा ख़ातून ने प्रेम को केवल किसी एक पुरुष के प्रति समर्पण नहीं दिखाया, बल्कि इसे एक गहरी और जटिल भावना के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें खुशी भी थी और पीड़ा भी और यह व्यक्तिगत भावना इतनी सघन थी कि वह सार्वभौमिक बन गयी। 

अपने पति के निर्वासन के बाद उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि अपनी पीड़ा को कला की करवट दे दी और उनकी यह हिम्मत कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गयी।

हब्बा खातून की कविताओं के प्रमुख विषय

उनकी अधिकतर कवितायें प्रेम और उसके अलगाव से जुड़े दर्द पर आधारित थीं। उन्होंने नदियों, फूलों और पहाड़ों का उपयोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया। उनकी कवितायें विवाह, सामाजिक अपेक्षायें और स्त्री जीवन की चुनौतियों को दर्शाती हैं। उनकी कविताओं में भावनात्मक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गहरी तड़प दिखायी देती है।

हब्बा ख़ातून की कश्मीरी साहित्य और संस्कृति में भूमिका

उन्होंने सहा मायने में कश्मीरी गीत-काव्य की नींव रखी और कई कवियों को निजी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। आज भी उनके गीत कश्मीर में गाये जाते हैं और उनकी कहानी पर नाटक, किताबें और गीत लिखे गए हैं। उनकी कवितायें कश्मीरियों के रोज़-ब-रोज़ के संघर्ष के लिहाज़ से आज भी प्रासंगिक हैं।

अंतत:

हब्बा ख़ातून की विरासत कश्मीरी साहित्य और संस्कृति में अमर है। प्रेम, विरह और दर्द से भरी हुई उनकी कवितायें पीढ़ियों से लोगों के दिलों को छूती आ रही हैं। उन्होंने कश्मीरी कविता में एक नया आयाम जोड़ा, जिसमें गहरी व्यक्तिगत भावनायें और संगीतात्मक शैली शामिल थी, जिससे उनकी रचनायें आम लोगों के लिए अधिक प्रभावशाली और भावनात्मक बन गयीं। उनके समय की पारंपरिक दरबारी कविता के विपरीत, उनकी कवितायें वास्तविक भावनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती थीं, जिससे वह उन कश्मीरी कवयित्रियों में से एक बन गयीं, जिन्होंने अपने मन के भावों को खुलकर व्यक्त किया।

उनका प्रभाव सिर्फ साहित्य तक सीमित नहीं है; वह संघर्ष, प्रेम और मानवीय भावना की ताक़त का प्रतीक हैं। आज भी उनके गीत कश्मीरी लोक गायकों द्वारा गाए जाते हैं, और उनकी कवितायें पढ़ी और सराही जाती हैं। उनकी दुखभरी प्रेम कहानी और मार्मिक रचनायें कई कलाकारों, लेखकों और संगीतकारों को प्रेरित करती रही हैं। हब्बा खातून सिर्फ़ एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व ही नहीं हैं,बल्कि वह कश्मीरी पहचान की अमर आवाज़ हैं, जिनकी कवितायें आज भी उनकी मातृभूमि की वादियों में गूंजा करती हैं।

(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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