Thursday, April 25, 2024

हिंदू कोरोना शहीदों को मोदी का नायाब तोहफा!

अस्पताल के बेड पर जवान बेटे की सांसें जैसे बूढ़ी हो चली हैं। ख़ूब कोशिश करती हैं चलने की पर लड़खड़ा कर मूर्छित हो जाती हैं। अब ऑक्सीजन की बैसाखी का ही सहारा है।

मां के गहने रेमडेसिविर ने हड़प लिए। कौड़ी-कौड़ी जोड़कर बनाया घर अस्पताल का बिस्तर खा गया। जो कुछ बचा है उसे सीने पर लगी जेब में हाथ से कसकर दबाए पिता ऑक्सीजन सिलेंडर की लाइन में लगा है। सुबह के 4 से शाम के 4 बज गए हैं खाली सिलेंडर थामे और नंबर है कि अभी कोस दूर नज़र आता है। पिता बार-बार चश्मा पोंछ कर देखता है, लाइन इतनी लंबी ही है या उसे वहम सा होता है। क्या पता, पूरा दिन भूखा-प्यासा खड़े रहने से जो चक्कर आ रहे हैं उससे दो का चार दीखता हो?

उधर अस्पताल में मां बेहोशी में जाते बेटे को झकझोरकर, यू टयूब पर मोदी के मनमोहक दृश्य एक के बाद एक दिखाकर बदहवासी में बोले जा रही है – “बेटा…बेटा… देख, साहब को देखकर मोर कैसे नाच रहा है! देख तो, तोते की हिम्मत! प्रधानमंत्री को कैसे छका रहा है। 

बेटे की लाचार आंखें मां को ताकती हैं। मां लाड़ से डांटते हुए बोली – “मैंने कितनी बार कहा था तुझे, अपने प्रधानमंत्री की तरह पत्थर पर गोल-मोल लेट जाया कर। अब बेटे की ठहरी आंखों में एक सवाल सा उभरा। मां कुछ पल के लिए सकपकाई फिर बोली –  “हां, पता है उनका पत्थर वीआईपी है। हमारी औक़ात से बाहर। पर तू कोई पहाड़-चट्टान खोज लेता। कहा था तुझे, कोई पेड़ ढूँढ और उसके इर्द-गिर्द मोदी जी की तरह पंच तत्व जुटा। जैसे प्रधानमंत्री ने दिखाया था वैसे छड़ी लेकर उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगा। पर कहाँ सुनी तूने। पड़ गया न बीमार।

अब रामदेव बाबा की ही सुन ले। देख चारों तरफ़ ऑक्सीजन ही ऑक्सीजन है। उठ और बाबा की तरह गपागप गटक जा मेरे बेटे, उठ।” बेटे की धौंकनी धुएँ वाले रेल के इंजन की छुक छुक सी दौड़ पड़ी अब। “अरे ऐसे नहीं, बाबा की तरह ऑक्सीजन ले। तू तो बस कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ रहा है।” मां ने थोड़ा नाराज़ होकर हिदायत दी। लाख कोशिशों के बाद भी बेटा नाकाम।

“ओहो! मैं क्या करूँ… नाश हो इस कमीने चीनी कोरोना का। लाख मना किया पाकिस्तान की तरफ़ मुँह करके मत सो। अपने यहाँ की महामारी जादू टोने अला-बला सब इधर उड़ाते रहते हैं। अब प्रधानमंत्री क्या करें? भव्य राम मंदिर की नींव रखवा तो दी है। मरे कोरोना ने सारा खेल बिगाड़ दिया। ज़रा वक़्त न दिया। बेचारे राम जी इंतज़ार में खड़े के खड़े रह गए कि कब मंदिर बने और कब उसमें विराजमान होकर हनुमान जी को आदेश दें – कि जाओ हनुमान, इन चीनी-पाकिस्तानी शैतानों के होश ठिकाने लगा कर आओ। क्या न कर गुज़रते राम जी, जो मंदिर बन गया होता। माँ ने अस्पताल की छत की तरफ हाथ जोड़कर कहा।

अपनी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पाज़िटिव आने पर राम जी को धन्यवाद दिया था मां ने। जो हो, मरीज बन कर बेटे के पास तो रहेगी।  मां-बेटे एक ही बेड से काम चला रहे हैं। दूसरे बेड के लिए न तो उनके पास पैसे बचे हैं अब और न ही अस्पताल के पास उन्हें देने के लिए बेड। बेटा तो सुनने की हालत में है नहीं पर मां को चैन कहां। वो कभी किसी बिस्तर को देख कर कुछ कहती है, कभी किसी बिस्तर को। हां, बिस्तरों ही से बात हो रही है मां की। ज्यादातर मरीज़ों में तो मिमियाने का भी हौसला बाक़ी नहीं। मरीज के हिलने पर बिस्तर जो चूं-चूं की आवाज़ करता है मां उसे ही हुंकार समझ कर अपनी व्यथा कम मोदी की कथा सुनाए जाती है।


करने को तो बहुत करा बेचारे मोदी ने, मां ने सामने वाले बिस्तर से कहा। अब किस्मत ही साथ न दे तो कोई क्या करे? जैसे मोदी की क़िस्मत ने दुनिया में आसमान छूते पैट्रोल के दामों को धूल चटा दी थी वैसे ही कोरोना की ऐसी-तैसी करना उन्हीं के भाग्य में लिखवाया था बनारस की गंगा मैया ने। फिर पता नहीं, पासा कैसे पलट गया! 

कुछ सोच कर धीरे से ख़ुद ही से कहती है – “सैकड़ों सालों से शिव की काशी में हर-हर महादेव की जगह हर-हर मोदी की गूँज ने महादेव का क्रोध तो जगा न दिया कहीं! अरे नहीं-नहीं…” 

फिर जोर से अपने पड़ोसी बिस्तर से बोली – “क्या पता, इस इटली वाली ने पाकिस्तान से मिलकर कोई फूका हुआ जल-भस्म छिड़कवाया हो! पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाने के लिए तो मोदी ने 500 का राफेल 1500 में खरीद ही लिया न भई। देश के लोगों को नंगा-भूखा मारने में इज़्ज़त है, पर पाकिस्तान की गोली से मरने-मरवाने में कतई नहीं। भारत माता की जय…” कहते-कहते खांसने लगी मां। 

कुछ देर दम लेकर फिर बोली – “पर इस मरे कोरोना का क्या करें जो नज़र ही नहीं आता। भारत माता के कमेरे ग़रीब-गुरबे सपूतों को मरजाना कोरोना दुश्मन की तलवार की तरह एक झटके में टपका दे रहा है। जो बचे हैं उनको समझ ही नहीं आ रहा कि मरे हुओं का क्या करें?  अधमरे जो घर-अस्पतालों में पड़े हैं उनके लिए दौड़ लगाएं या मरे हुओं के लिए दो पल ठहर कर कुछ आंसू बहा लें, चिता-अर्थी का जुगाड़ करें। 

“उधर शिवजी के श्मशान में बेमौत मरो की सेना ओवर फ्लो है। गंगा-जमुना भी शवों के बोझ से ऐसी दबी पड़ी हैं कि बचाओ-बचाओ भी नहीं निकल रहा बेचारियों के कंठ से।”

“माता जी, मोदी को महीनों पहले रिपोर्ट मिल गई थी दूसरी लहर के ख़तरे की। पर उन्होंने बंगाल का चुनाव ज़रूरी समझा। और ख़तरे की घंटी बजाने वाली रिपोर्ट, सब जानकारी पर प्रधानमंत्री निवास में मोर नचाते रहे। लाखों लोगों की जान अपनी कुर्सी के पाए तले कुचल दी। रही सही कसर कुंभ ने पूरी कर दी,” मां के अगले पलंग से किसी की मरी सी आवाज़ आई। 

मां ने घूरकर बेड की तरफ देखा और बोली – ‘‘चुप बे लौंडे, कुंभ तो मेरा पती भी गया था। उसे तो कुछ न हुआ। गैस सिलेंडर लेने गया है। हट्टा-कट्टा है।’’ 

बोलने वाले को अब नज़र आया कि मां के माथे पर बड़ा सा हनुमानी सिंदूर चमक रहा है। अनायास ही उसके मुंह से निकला – ‘‘अरे! आप तो वो… सीएए के समर्थन वाली हैं…’’ 

“…और अपनी गुस्ताख जुबान से तू कौम नष्ट करने वाला कम्युनिस्ट, अर्बन नक्सल, और वो क्या कहते हैं हमारे मोदी-अमितशाह जी, टुकड़े-टुकड़े गैंग वाला लगता है। दाढ़ी बीमारी में बढ़ गई है या मुल्ला है तू?” मां ने रौब से पूछा। 

“आपको जो समझना है समझ लो माता जी, मैं तो बस इंसान समझता हूं ख़ुद को।” 

“तुम्हारे जैसे इंसानों के पिछवाड़े पे लात मारकर नरक की राह दिखानी ज़रूरी है। तभी हमारा हिंदू राष्ट्र बचेगा,” मां ने आंख नचा कर लताड़ा। वो भूल चुकी थी कि बगल में उसका बेटा ज़िन्दगी के लिए जूझ रहा है। 

तभी एक नर्स आकर गुस्से में बोली – “पहले अपने बेटे को तो बचा लो।” मां ने देखा बेटा सांस नहीं ले रहा। नर्स ने ज़ोर-ज़ोर से लड़के का सीना दबाया। भागकर डाक्टर भी आया। पर सब बेकार। लड़का मां के हिंदू राष्ट्र से दूर जा चुका था। 

बेटे की बेजान फटी आंखें मां के चेहरे पर अटक गईं। तभी बाहर से एक आवाज़ आती है – श्री राम तिवारी के घर से यहां कौन है? “मेरे पति हैं। आ गए वो?” मां ने हड़बड़ाकर पूछा। 

आक्सीजन सिलेंडर की लाइन में लगे-लगे अचानक वो गिर गए और उनकी वहीं मौके़ पर ही मौत हो गई। ये आधार कार्ड उन्हीं का है ना, पहचानती हो? आदमी ने आधार कार्ड मां की तरफ बढ़ाते हुए पूछा। मां ने आधार कार्ड पर नज़र डाली और धड़ाम से ज़मीन पर गिर गई।

ख़बर है कि मोदी मौनव्रत रखकर और अमितशाह अंडरग्राउड होकर कोरोना को हराने की कोशिशों में पिले पड़े हैं । ऐसे में बहुत सी बातें और कर्तव्य ज़हन में नहीं आते। सो मैं विनम्रता से उनका ध्यान इस ओर लाना चाहती हूं कि हिंदू गौरव के लिए पहले अक्ल और फिर परिवार समेत जान गंवाने वालों समेत और बहुत से कोरोना के कहर के मारे परिवार हैं जो मुसलमान नहीं है। और जिन्होंने आपको वोट भी दिए हैं। अंतिम संस्कार के लिए उनकी देह फुटपाथ, नदी-नालों में मारी-मारी फिर रही है। सुना है हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार बड़ा महत्व रखते हैं। अंतिम संस्कार ही किसी हिंदू के अगले जनम की गति तय करता है। इससे पहले कि गिद्ध-कुत्ते उन पर मेहरबान हों आप उनकी सुध ले लें। 

श्मशान की किल्लत को हिंदू राष्ट्र की सेवा में किया गया आपका कारनामा चुटकियों में दूर कर सकता है। कश्मीर से जो धारा 370 हटाई है आपकी जोड़ी ने, उसका लाभ अब नहीं तो फिर कब मिलेगा? यक़ीन मानिये, बंगाल हारने की थू-थू पर भी परदा पड़ जाएगा। कश्मीर में घर बनाने की किसी की हैसियत हो न हो पर इस महामारी में श्मशान तो धरती के स्वर्ग पर नसीब हो ही सकता है। महामारी में बिना इलाज मरने की एवज में छोटा सा रिटर्न् गिफ़्ट! 

कश्मीर में सेना के जवान, जहाजों की भरमार है ही। शवों को एयर लिफ़्ट करवाइये और धरती के स्वर्ग “मुसलमानों के इलाके” कश्मीर में हिंदुओं के अंतिम संस्कार करवाइये। कितनों के घर वाले तो इसी में खुश हो लेंगे कि चलो, जीते जी हवाई जहाज में बैठना मिलता न मिलता देखो, मरकर सेना की देखरेख में पाँव पसार कर आसमान की सैर कर रहे हैं हमारे प्यारे। 

जो ज़िदा हैं वो भी एकबार ज़रूर सोचेंगे कि काश! कोरोना ने मुझे मार गिराया होता। हां, तिरंगा झंडा भी इन कोरोना शहीदों को ज़रूर मुहैया करवाईयेगा। हवाई जहाज़ों पर तो आप अपनी मुस्कराती तस्वीर के साथ लिखवा ही देंगे – कोरोना हिंदू शहीदों को प्रधानमंत्री मोदी के सौजन्य से सीधे स्वर्ग की अंतिम यात्रा का नायाब तोहफा!

(वीना व्यंग्यकार, फिल्मकार और पत्रकार हैं। और जनचौक की दिल्ली स्टेट हेड हैं।) 

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।

Related Articles

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।