असम के नारी आंदोलन की अग्रणी नेता, क्रांतिकारी-जनवादी आंदोलन की दृढ़ कर्मी सोदो असम नारी संस्था की संस्थापक और प्रथम अध्यक्षा आरदेर जोनकी बार की प्रकाशक, सदस्य, असम महिला आयोग, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवी और लेखिका अंजू बरकटी का निधन परसों रात 12 बजे के बाद डिब्रूगढ़ के एक निजी अस्पताल में हो गया। अंजू काफी समय से मस्तिष्क के कैंसर से लड़ रही थीं पर बीमारी के दौर में भी लगातार सक्रिय रहीं।
नब्बे के दशक में असम प्रांत में प्रगतिशील नारी आंदोलन को खड़ा करने का काम कॉ. अंजू के नेतृत्व में हुआ था। उस समय उग्रवाद के मुकाबले के नाम पर जनांदोलनों पर जबर्दस्त सरकारी दमन चल रहा था। पर उस विकट परिस्थिति में भी कॉ. अंजू ने नारी आंदोलन को लगातार दिशा दी। आईपीएफ नेता कॉ. अनिल बरुआ पर उल्फा के हमले के समय कॉ. अंजू ने प्रतिवाद करते हुए बंदूक के कुंदों की मार पेट पर सही। फिर भी वह पीछे नहीं हटीं। कॉ. अनिल के निधन के बाद वह लगातार उल्फा उग्रवादियों और पुलिस की धमकियों और हमलों का मुकाबला करती रहीं।
अपने छोटे बच्चों को मां के घर छोड़कर अंजू लगातार क्रांतिकारी-जनवादी आंदोलन का नेतृत्व करती रहीं। कॉ. अंजू ने कार्बी, बोडो, मिसिंग, तिवा, राभा और दिमासा जनजातीय महिलाओं को एक संयुक्त एक्शन कमेटी के रूप में संगठित किया था। जिसका नाम ज्वाइंट एक्शन कमेटी अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन था। कॉ. अंजू 1994 में ऐपवा स्थापना सम्मेलन में इन महिलाओं को शरीक करवाकर असमिया व जनजातीय महिलाओं के बीच लंबे समय से चल रहे अंतरविरोध औऱ दूरी को काफी हद तक खत्म कर सकीं।

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन में उत्तर पूर्वी महिलाओं की व्यापक भागीदारी करवाकर वह उन्हें मुख्यधारा में लाने में सफल रहीं।वह असमिया समाज में व्याप्त पुरातन प्रतिगामी सोच के विरुद्ध वैज्ञानिक सोच को स्थापित करने में भी अग्रणी भूमिका निभाती रहीं। जिसके चलते उन्होंने अंधविश्वास और पोंगापंथ के खिलाफ लगातार संघर्ष ही नहीं चलाया बल्कि लिखती भी रहीं और सांस्कृतिक माध्यमों का प्रयोग भी करती रहीं।
कॉ. अंजू ने अलग से कार्बी स्वायत्त राज्य आंदोलन की मांग पर कार्बी महिलाओं की राजनीतिक समझदारी बढ़ाने में सहयोग दिया। वह पूरे उत्तर-पूर्व और दिल्ली में समस्त जनांदोलनों में हिस्सेदारी करती रहीं।
जिस दौर में कॉ. अंजू आंदोलन में आईं उस दौर में असम के चाय बागानों में महिला श्रमिकों का भारी शोषण जारी था। कॉ. अंजू ने चाय बागान की महिलाओं की तमाम मांगों को सूत्रबद्ध कर के असम राज्य महिला आयोग में बतौर सदस्य उठाया। वह उसमें असम और खासकर आदिवासी इलाकों में असम राइफल्स द्वारा चलाए जा रहे दमन और हिंसा का पुरजोर विरोध किया।
वह आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के विरुद्ध चल रहे हर संघर्ष में न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर शरीक रहीं। महिला आयोग की सक्रिय सदस्य के रूप में उन्होंने मांग की कि आयोग को और अधिक अधिकार दिए जाएं और उसके सदस्यों के चयन की प्रक्रिया जनतांत्रिक हो। अपने तईं वह बतौर आयोग सदस्य कई सुदूर इलाकों में गईं और उन्होंने प्रस्ताव रखा कि आम महिलाओं की पहुंच उस तक आसानी से बन सके।

सत्तर के दशक में भाकपा (माले) से जुड़ी अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन की असम इकाई सोदो असम प्रगतिशील नारी संस्था की संस्थापक अध्यक्ष रहते हुए कॉ. अंजू ने राष्ट्रीय स्तर की सचिव और कार्यकारिणी सदस्य की भूमिका में अपने आप को इतना बेहतर ढाल लिया कि वह शुद्ध हिंदी में बातचीत करतीं और सभी हिंदी भाषी क्षेत्र की महिलाओं के साथ संपर्क रखतीं। आधी जमीन और वीमेंस वायस पत्रिकाओं का वितरण असम में रह रही हिंदी-भाषी महिलाओं के बीच भी करतीं।
कॉ. अंजू एक बुद्धिजीवी महिला थीं जो डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर थीं। और असम की तमाम बुद्धिजीवी महिलाओं को अपने कार्यों और लेखने से प्रभावित कर जोनाकी बाट व नारी संस्था से जोड़ती रहीं। उन्होंने दो पुस्तकें ‘उद्भाषित अर्थाकाश’ और ‘उच्छ मानुष’ लिखीं। और कॉ. पुनु बोरा के साथ मिलकर ‘अनिमा गुहा-जीवन और कर्म’ का संपादन किया। वह तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लिखती रहीं। उन्होंने कई शोध पत्र भी लिखे। उनके कई लेख विभिन्न महिला पत्रिकाओं में भी छपे।
कॉ. अंजू का जन्म नगालैंड के कोहिमा में 10 सितंबर 1957 को हुआ था और निधन 11 दिसंबर, 2022 की रात्रि में हुआ।
(लेखिका कुमुदिनी पति ने अंजू बरकटी के साथ महिला आंदोलन में काम किया है।)