Author: चंद्र प्रकाश झा
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श्रद्धांजलि: अपनी किताबों के साथ हमेशा जिंदा रहेंगे लाल बहादुर वर्मा
पापा नहीं रहे…( डॉ. लाल बहादुर वर्मा ) 17 मई, 2021 की भोर जगने के कुछ देर बाद कॉमरेड सत्यम वर्मा के एक लाइन के इस फेसबुक पोस्ट के पहले तीन शब्द पढ़ते ही सभी की तरह समझ गया कौन नहीं रहे। तत्काल समझ नहीं सका उन्होंने अपने पिता का नाम कोष्ठक में क्यों डाल…
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नहीं रहा इतिहासकारों का इतिहासकार
दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉक्टर द्विजेंद्र नारायण झा यानी डीएन झा हमारे बीच नहीं रहे मगर इतिहास की लिखी उनकी पुस्तकें हमेशा रहेंगी। वर्ष 1940 में बिहार के मध्य वर्ग के एक परिवार में पैदा हुए प्रो. डी एन झा का गुरुवार 4 फरवरी, 2021 को निधन हो गया। वे 81…
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किसानों और मोदी सरकार के बीच तकरार के मायने
किसान संकट अचानक नहीं पैदा हुआ। यह दशकों से कृषि के प्रति सरकारों की उपेक्षा का नतीजा है। हम इस विशेष लेख माला में किसान मुद्दे पर 25 सितम्बर को आयोजित किये जा रहे भारत बंद के सिलसिले में विभिन्न आयाम की गहन चर्चा करेंगे। अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था का एक कड़वा सच यह है कि…
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साप्ताहिकी: बुलेट के बजाय जब बुलेटिन को दी भगत सिंह ने तरजीह
(हासिल करने के सत्तर साल बाद आज जब आज़ादी ख़तरे में है और देश की सत्ता में बैठी एक हुकूमत उसके सभी मूल्यों को ही ख़त्म करने पर आमादा है। ऐसे में आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाली शख़्सियतें एक बार फिर बेहद प्रासंगिक हो जाती हैं। इस कड़ी में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का…
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साप्ताहिकी: ऐतिहासिक संदर्भों में लिंचिंग
४५८.क्व नूनं कद्वो अर्थं गन्ता दिवो न पृथिव्याः । क्व वो गावो न रण्यन्ति ॥२॥ ऋग्वेद संहिता, प्रथम मंडल सूक्त ३८ हे मरुतो आप कहां हैं? किस उद्देश्य से आप द्युलोक मे गमन करते हैं ? पृथ्वी में क्यों नही घूमते? आपकी गौएं, आपके लिए नहीं रंभाती क्या ? कुछेक वर्ष पूर्व जब भारत में,…
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साप्ताहिकी: निराशा के अंधकार में जल रहे हैं संभावनाओं के हजारों दिये
नागरिकता संशोधन अधिनियम (2019), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी ) और नेशनल रजिस्टर ऑफ पॉपुलेशन (एनआरपी ) का देशव्यापी विरोध शुरू होने के बाद कुछेक आह्लादकारी बातें उभरी हैं। एक तो यह कि भारतीय संविधान की किताबों की रिकॉर्ड खरीद हो रही है। संविधान की किताब ‘ बेस्ट सेलर ‘ मान ली गई है। भारत के…
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साप्ताहिकी: उत्तर आधुनिक महाभारत के मायने, संदर्भ दिल्ली हिंसा
भारत के लोकतांत्रिक रूप से सर्वप्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री, ईएमएस नम्बूदरिपाद की लिखी एक किताब याद आती है। किताब का शीर्षक है: क्राइसिस इन टू केओस। यह शीर्षक भारत के मौजूदा उन हालात में बिल्कुल सटीक लगता है जिनमें भारतीय संघ गणराज्य और उसकी राजसत्ता के संकटों के अर्थनीतिक,सामाजिक और राजनीतिक ही नहीं, न्यायिक-संवैधानिक रूप…