विधानसभा चुनाव: इस बार ‘जातियुद्ध’ व ‘धर्मयुद्ध’ से बचेगा उप्र?

उत्तर प्रदेश में जब भी चुनाव आते हैं, वे लोकसभा के हों, विधानसभा के या फिर नगर निकायों और पंचायतों…

तो क्या वे मौतें ‘नजरों का धोखा’ थीं?

मरो भूख से, फौरन आ धमकेगा थानेदार/लिखवा लेगा घरवालों से-’वह तो था बीमार’/अगर भूख की बातों से तुम कर न…

क्या कहती है मंत्री की यह तिलमिलाहट?

मंत्री केन्द्र के हों या राज्यों के, पत्रकारों के सारे सवालों के जवाब नहीं देते। अप्रिय, असुविधाजनक अथवा गैरजरूरी लगने…

नगालैंड कांड: सरकार को समझना होगा कि इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं

हिन्दी के तीसरे सप्तक के महत्वपूर्ण कवियों में से एक सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, जिनकी कविताओं को उनकी असाधारण साधारणता के लिए…

मूर्खों के स्वर्ग से बाहर निकलिये हुजूर और थोड़े शरमाइये!

निस्संदेह, यह ऐसा समय है जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को शर्म महसूस करनी चाहिए कि प्रदेश में…

फिर वही सपनों की सौदागरी!

अकारण नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भीतर का सपनों का सौदागर एक बार फिर जाग उठा है। 2014 में…

नागरिक इतने ‘अवांछनीय’ क्यों हो गये हैं?

दिल्ली-एनसीआर में दमघोंटू प्रदूषण के मामले पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गत दिनों जिस तरह नौकरशाहों को फटकारा…

इतना तो समझ लेते भाई कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ा करती!

प्रायः हर चुनाव के वक्त हिंदू बनाम मुसलमान, श्मशान बनाम कब्रिस्तान या होली बनाम ईद करने वाली भारतीय जनता पार्टी…

जयंती पर विशेष : व्यवस्था के खिलाफ मुक्तिबोध में दबा बम धूमिल में फट पड़ा!

‘क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई मतलब होता…

अब तो चेतिये हुजूर! जम्मू-कश्मीर आपके साम्प्रदायिक एजेंडे की कीमत चुकाने लगा

शुक्र है कि देर से ही सही, जम्मू कश्मीर में नागरिकों की लक्षित हत्याओं को लेकर केन्द्र सरकार की नींद…