रोजी-रोटी और पलायन के जटिल परतदार प्रश्न को मधुर समानुभूति के साथ दो मुल्कों की ज़मीन पर उकेरता एक अद्भुत गीत
रोजी-रोटी और पलायन के जटिल परतदार प्रश्न को मधुर समानुभूति के साथ दो मुल्कों की ज़मीन पर उकेरता एक अद्भुत गीत: इन दिनों एक कविता [more…]
रोजी-रोटी और पलायन के जटिल परतदार प्रश्न को मधुर समानुभूति के साथ दो मुल्कों की ज़मीन पर उकेरता एक अद्भुत गीत: इन दिनों एक कविता [more…]
“प्रगतिशील कविता मिथक के साथ न तो बह सकती है ना ही उसमें डूब सकती है, उसे मिथक पर तैरने की छूट ज़रूर है और अगर [more…]
‘मुझसे पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न मांग’ फैज़ अहमद फैज़ की बेहद मशहूर नज़्म, इतनी मशहूर कि कुछ लोग इसे ‘कालजयी’ रचना कहते हैं, [more…]
1841 में भारत के वर्तमान महाराष्ट्र प्रांत में एक महार दलित परिवार में पैदा हुई मुक्ता साल्वे, जो जोतिबा फुले और सावित्री बाई फुले द्वारा [more…]
इस समस्त कवायद का उद्देश्य यही है यह बात अच्छी तरह साफ़ हो कि जिसे हम भारतीय सन्दर्भ में पितृसत्ता कहते है वो केवल पितृसत्ता [more…]
भारतीय समाज एक स्तरीकृत असमानता पर आधारित समाज है और जाति नाम की संरचना इस समाज की बुनियादी और कई अर्थों में अनोखी विशेषता यानि [more…]
डॉ. भीम राव आंबेडकर के व्यक्तित्व और उनके अवदान को लेकर भारत के बौद्धिक वर्ग में आम तौर पर दो तरह का नजरिया देखने को [more…]
कई बार कह चुका हूँ कि उत्तराखंड दलितों के लिये सबसे खतरनाक जगह बन गयी है, क्योंकि यहाँ दलित उत्पीड़न एक सामाजिक सांस्कृतिक ताने बाने [more…]