अगर उनके निजी जीवन को देखें तो कहना गलत नहीं होगा कि शीला संधु सही अर्थों में चुनौती का दूसरा नाम थीं। हिंदी प्रकाशन व्यवसाय को राजकमल प्रकाशन के माध्यम से चरम पर पहुंचानेवाली शीला संधु (24 मई 1924...
यह देखना, इस दौर में, आशाजनक और आश्वस्तकर है कि अंतत: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (भारतीय चिकित्सा संगठन) ने आधुनिक चिकित्साशास्त्र बल्कि कहना चाहिए तार्किकता और वैज्ञानिक चेतना एवं स्वयं विज्ञान के खिलाफ विगत सात वर्षों से चल रहे दुष्प्रचार...
इस अर्थ में कि वहां उसके सभी स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और चौथा खंभा प्रेस भी उतना ही मुस्तैद है। पर पिछले चुनावों के दौरान वहां जो हुआ, वह एक अर्थ में पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सीमा का आईना...