Author: रामशरण जोशी
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सफलता के साथ आत्मनिरीक्षण भी जरूरी
सबसे पहले : केरल में वामपंथी सरकार का दूसरी दफे ‘लाल परचम’ फहराने के लिए वाम नेतृत्व, विशेष रूप से मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, को मुबारकबाद और लाल सलाम। विजयन मंत्रिमंडल बन चुका है और ईश्वर की भूमि (केरल) के आकाश की धुंध समाप्त हो चुकी है। वाम क्षितिज पर युवा नेतृत्व उभर रहा है। पूंजीवादी…
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रामशरण जोशी: स्वामी अग्निवेश को जैसा मैंने देखा!
(स्वामी जी का कर्म रण भूमि से हठात जाना किसे नहीं अखरेगा? मौजूदा दौर में तो उनकी हस्तक्षेपकारी भूमिका की पहले से अधिक ज़रूरत थी। यकीनन उनके जाने से फासीवादी शक्तियों को राहत की सांस लेने का अवसर ज़रूर मिल गया है। इन्हीं फासीवादी तत्वों ने 2018 में झारखण्ड में उनके लीवर को इतना आघात पहुँचाया कि वह तब से सामान्य नहीं हो सका। इसी कुकृत्य को 2019 में भी दोहराया गया था जब स्वामीजी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि देने जा रहे थे। क्या यह है भारतीय …
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मशीन और पूंजी के नहीं श्रम के पक्षधर थे गांधी
अहिंसा महात्मा को सिर्फ बीती सदी तक ही सीमित करना, उनके साथ न्याय करना नहीं होगा। यह सही है, उनका कर्म रंग मंच 19वीं और 20वीं सदी रही हैं। लेकिन वे किसी राष्ट्र या भूभाग या नस्ल के बारे में तो स्वयं को सीमित नहीं रखते हैं। उनकी प्रासंगिकता कल-आज-कल के फलक पर समानरूप से…
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गांधी:भारतीय समाज की स्पष्ट समझ और परख
यदि मैं मार्क्सवादी भाषा में कहूं तो उस समय का मुख्य अंतर्विरोध था साम्राज़्यवाद और उसकी दासता से आज़ादी उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के मध्य तक यह अंतर्विरोध प्रमुख बना रहा। गांधी जी अपनी दृष्टि, आस्था और सिद्धांत से मार्गदर्शित होकर इस मुख्य अंतर्विरोध का समाधान करना चाहते थे, और वो भी अहिंसा के माध्यम…
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परिवर्तनशील, प्रयोगधर्मी व निरंतरता के गांधी
जब यह फ्रेम गांधी जी के लिए है ही नहीं तब क्यों उनकी प्रासंगिकता पर चिंतन किया जाए। ऐसा चिंतन फिजूल की क़वायद ही होगी।यह सही है, कोई भी नायक-महानायक अपने, चिंतन, विचारधारा और क्रिया में समय-समाज सापेक्ष होते हैं। इन्हें भौतिक विकास अवस्था के संदर्भों से काट कर नहीं देखा जा सकता। यदि ऐसा किया…