चीफ जस्टिस के साथ एक समिति चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का सबसे अच्छा तरीका हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को कहा कि एक समिति जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों, चुनाव आयुक्तों के चयन का सबसे पारदर्शी तरीका सुनिश्चित कर सकती है। पीठ की अगुआई कर रहे जस्टिस केएम जोसेफ ने टिप्पणी की कि आप क्षमता के अलावा क्या देखते हैं, क्या महत्वपूर्ण है कि आपको चरित्र वाले किसी व्यक्ति की आवश्यकता है, जो खुद को बुलडोजर से चलने की अनुमति नहीं देता है। तो मुद्दा यह है कि इस व्यक्ति की नियुक्ति कौन करेगा?

उन्होंने कहा कि कम से कम दखल देने वाली प्रणाली वह होगी जिसमें नियुक्ति समिति के हिस्से के रूप में मुख्य न्यायाधीश होंगे। हमें लगता है कि उनकी मौजूदगी से ही यह संदेश जाएगा कि कोई गड़बड़ नहीं होगी। हमें सबसे अच्छा आदमी चाहिए। और इस पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। जजों के भी पूर्वाग्रह होते हैं। लेकिन, कम से कम आप तटस्थता की उम्मीद कर सकते हैं।

संविधान पीठ ने कहा है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त  और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में संविधान की चुप्पी और कानूनी प्रावधान  के अभाव के कारण  जो रवैया अपनाया जा रहा है, वह परेशान करने वाली परंपरा है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 324 का हवाला दिया और कहा कि यह अनुच्छेद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात तो करता है, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया के पर चुप है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कानून बनाने पर गौर किया जाना चाहिए था लेकिन 72 साल में ऐसा नहीं किया गया। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने इस प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। 

संविधान पीठ ने कहा कि 2004 के बाद से कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में छह मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए जबकि एनडीए के आठ साल के कार्यकाल में आठ मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इसे देश के लिए एक परेशान करने वाली परंपरा करार दिया है।

संविधान पीठ ने कहा कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति प्रक्रिया के मामले में संविधान की चुप्पी को किस तरह से शोषित किया गया है, यह साफ-साफ दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कोई कानून नहीं है और इस तरह कानूनी तौर पर यह सब सही है। कानून के अभाव में कुछ नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उस अर्जी पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं जिनमें चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम तैयार करने की मांग की गई है।

संविधान पीठ  ने कहा कि यहां तक कि संस्थान के मुखिया के तौर पर चीफ इलेक्शन कमिश्नर का जो खंडित कार्यकाल होता है, उसमें वो कुछ ठोस नहीं कर पाते हैं। 2004 के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों की लिस्ट देखा जाए तो ज्यादातर ऐसे हैं जिनके दो साल से ज्यादा का कार्यकाल भी नहीं है। कानून के मुताबिक, छह साल का कार्यकाल होना चाहिए या फिर 65 साल की उम्र तक का कार्यकाल होना चाहिए। इनमें जो पहले हो जाए, वही कार्यकाल माना जाता है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्यादातर ब्यूरोक्रेट होते हैं और सरकार ऐसे ब्यूरोक्रेट की उम्र पहले से जानती है जिन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाता है। उन्हें तब मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया जाता है जब वह कभी भी छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते हैं और उनका कार्यकाल खंडित ही रहता है।

संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि संविधान को लागू हुए 72 साल हो गए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। संविधान सभा चाहती थी कि संसद इसको लेकर कानून बनाए। 72 साल संविधान लागू हो गए लेकिन इसको लेकर कानून नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और उसे गैर-संवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट उसे निरस्त नहीं कर सकती है। संविधान सभा ने इसी मॉडल को स्वीकार किया था और ऐसे में शीर्ष अदालत यह नहीं कह सकता है कि इस मौजूदा मॉडल या प्रक्रिया पर विचार की जरूरत है। इस बारे में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है जिसकी व्याख्या की जाए। 

इस दौरान जस्टिस जोसेफ ने कहा कि संविधान को लागू हुए 72 साल हो गाए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। संविधान सभा चाहती थी कि संसद इसको लेकर कानून बनाए। जो पार्टी पावर में आती है वह पावर में रहना चाहेगी और कुछ भी गलत नहीं लगता है। हमारी नीति लोकतांत्रिक है और लोकतंत्र में चुनाव के जरिए सरकारें बदलती हैं। ऐसे में पारदर्शिता और शुद्धता गहराई से जुड़े हुए हैं और यह संविधान का मूल ढांचा है।

जस्टिस जोसेफ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि अगर यह संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है तो फिर यह जरूरी है कि कोर्ट इसकी समीक्षा करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर बीआर आंबेडकर ने संविधान सभा की बैठक में कहा था कि अनुच्छेद 324 आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगा। अदालत ने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि वह कोर्ट को अवगत कराएं कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए क्या मेकैनिजम अपनाया जाता है। 

सुप्रीम कोर्ट मामले में बुधवार को आगे की सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए।

संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी टी रविकुमार भी शामिल हैं, ने कहा कि इसका प्रयास एक प्रणाली को स्थापित करना है ताकि “सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति” को सीईसी के रूप में चुना जा सके।“कई सीईसी रहे हैं और टीएन शेषन कभी-कभार ही होते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई उसे बुलडोजर चलाए। तीन पुरुषों (दो ईसी और सीईसी) के नाजुक कंधों पर भारी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की तलाश करनी है। सवाल यह है कि हम उस सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को कैसे ढूंढे और उस सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की नियुक्ति कैसे करें।

वेंकटरमणि ने कहा कि इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती और उनके विचार में सरकार भी बेस्ट मैन की नियुक्ति का विरोध नहीं करने जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे किया जा सकता है.“संविधान में कोई रिक्तता नहीं है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वर्तमान में राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर की जाती है। जब कोई अधिनियमन नहीं था, तो विनीत नारायण और विशाखा निर्णय (जिसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए थे) हुए, लेकिन इस मामले में ऐसा कोई खालीपन नहीं है।

संविधान पीठ ने कहा कि 1990 के बाद से, विभिन्न हलकों से आवाज उठाई गई है और एक बार, अनुभवी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव आयुक्तों सहित संवैधानिक निकायों के लिए एक कॉलेजियम जैसी प्रणाली के लिए लिखा था।“लोकतंत्र संविधान की एक बुनियादी संरचना है। इसके बारे में कोई बहस नहीं है। हम भी संसद को कुछ करने के लिए नहीं कह सकते हैं और हम ऐसा नहीं करेंगे। हम सिर्फ उस मुद्दे पर कुछ करना चाहते हैं जो 1990 से उठाया जा रहा है। जमीनी स्तर पर स्थिति चिंताजनक है।

पीठ ने कहा कि हम जानते हैं कि मौजूदा व्यवस्था से आगे नहीं जाने देने के लिए सत्ता पक्ष की ओर से विरोध होगा। अदालत यह नहीं कह सकती है कि वह असहाय है और कुछ भी नहीं कर सकती है और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो ईसी और सीईसी की नियुक्ति की वर्तमान संरचना से अलग हो।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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