न्यूज़ एजेंसी रायटर्स ने सबसे पहले इस खबर को ब्रेक किया है, जिसमें बताया गया है कि अमेरिकी मिलिट्री एयरक्राफ्ट में इन अवैध भारतीयों को लेकर विमान भारत की ओर उड़ गया है, लेकिन भारत में इसे पहुंचने में कम से कम 24 घंटे लगेंगे।
अमेरिका से अवैध प्रवासियों को लेकर उनके देश में छोड़ने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे सैन्य हवाई जहाज की यह सबसे लंबी यात्रा होने जा रही है।
वहीं एक और खबर यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले सप्ताह मुलाकात के लिए वाइट हाउस आमंत्रित किया है। यह खबर भी रायटर्स के हवाले से है, जिसके अनुसार प्रवासी भारतीयों को डिपोर्ट करने के कुछ घंटे बाद इस मीटिंग के बारे में वाइट हाउस अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी है।
इसके साथ ही पेंटागन ने एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगो में अमेरिकी अधिकारियों की हिरासत में रखे गये 5,000 से अधिक प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए फ्लाइट्स मुहैया कराने की शरूआत कर दी है।
ऐसा भी नहीं कि भारतीय मूल के अप्रवासियों को कोई पहली बार अमेरिका से बाहर किया जा रहा है। इससे पहले भी यह सब होता रहा है, लेकिन किसी भी पूर्व राष्ट्रपति ने इस प्रकार से गाजे-बाजे के साथ विदेशी मूल के लोगों को खुलेआम घोषणा कर, उस देश को बदनाम कर निष्काषित नहीं किया था।
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, करीब 7, 25,000 अवैध भारतीय अप्रवासी अमेरिका में रहते हैं, जो मैक्सिको और अल साल्वाडोर के बाद अवैध प्रवासियों का तीसरा सबसे बड़ा समूह है। पिछले महीने, विदेश मामलों के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा था कि भारत हमेशा से अवैध भारतीय नागरिकों की वैध वापसी को स्वीकार करने के लिए तैयार रहा है। जब अमेरिकी निर्वासन योजनाओं के बारे में पूछा गया, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उल्लेख किया कि भारत यह सत्यापित कर रहा है कि उनमें से किसे वापस भेजा जा सकता है, लेकिन सटीक संख्या अभी भी स्पष्ट नहीं है।
पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा को लेकर भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी और भूराजनीतिक एवं रक्षा मामलों के जानकार, प्रवीण साहनी ने आज ही अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा है, “प्रधानमंत्री मोदी 13 फरवरी को राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने वाशिंगटन जाने वाले हैं। खबरों के मुताबिक, ‘समय की कमी और अमेरिकी पक्ष में पर्याप्त व्यक्तिगत संपर्क की कमी के मद्देनजर व्यक्तिगत संपर्क को फिर से स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।’
तो, फिर क्यों जाना? तब तक प्रतीक्षा करनी चाहिए, जब दोनों पक्षों को एक-दूसरे की जरूरत महसूस हो।
बहरहाल, ट्रंप के पास मोदी के लिए एक एजेंडा है:
1. दोनों देशों के बीच व्यापार में भारत के पक्ष में 35 बिलियन डॉलर सरप्लस है, उसमें भारत कटौती करे। भारत इसके लिए सहमत हो गया है।
2. मल्टी-करेंसी व्यापार की ब्रिक्स योजना से भारत दूर रहे। भारत सिर्फ अमेरिकी डॉलर में व्यापार के लिए राजी हो गया है।
3. ज्यादा मात्रा में अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद करे। मोदी सरकार निश्चित रूप से ऐसा करेगी
4. अमेरिका से अधिक ऊर्जा (आयल) खरीदे। भारत सहमत हो गया है
(मूल रूप से कहें तो अमेरिका, रूस के साथ भारत की टाइम-टेस्टेड रणनीतिक साझेदारी को धीरे-धीरे खत्म होते देखना चाहता है)
विदेश नीति में @DrSJaishankar की रणनीतिक स्वायत्तता के लिए बधाई!”
अमेरिकी सैन्य विमान द्वारा प्रवासियों को भारत भेजे जाने की खबरों के बाद, अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि हालांकि विशिष्ट विवरण साझा नहीं किए जा सकते, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका अपने सीमा और आव्रजन कानूनों को सख्ती से लागू कर रहा है। प्रवक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि की गई कार्रवाइयों से “स्पष्ट संदेश जाता है कि अवैध प्रवास जोखिम के लायक नहीं है।”
रायटर्स की खबर की मानें तो पीएम मोदी अमेरिकी यात्रा पर जा नहीं रहे, बल्कि उन्हें बुलावा भेजा गया है। ये डोनाल्ड ट्रम्प शर्तिया 4 वर्ष पहले वाले मित्र डोनाल्ड नहीं हैं, बल्कि उसके ठीक उलट इनका बर्ताव अपने मित्र राष्ट्रों के साथ देखने को मिल रहा है। और जैसा कि प्रवीण साहनी बता रहे हैं कि ट्रम्प-मोदी की इस मुलाक़ात में भारत की जनता को देखने-दिखाने जैसा कुछ नहीं होने जा रहा है, तो फिर क्या मोदी जी अमेरिका के निर्देशों पर मंजूरी देने के लिए जा रहे हैं?
बड़ा सवाल है कि भारत जैसे विशाल देश के लिए ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है कि जैसा डोनाल्ड ट्रम्प कहे, उसकी हर बात न मानी तो प्रलय आ जायेगा? बता दें कि डोनाल्ड ट्रम्प ने सबसे पहले पड़ोसी देशों मेक्सिको और कनाडा के खिलाफ 25% ड्यूटी बढ़ाने का फैसला लिया था, लेकिन कल ही इसे लागू करने की तारीख को एक माह के लिए बढ़ा दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि कनाडा और मेक्सिको भी अमेरिकी आयात के खिलाफ 25% ड्यूटी लगाने की तैयारी कर चुके थे।
ट्रम्प ने चीन के खिलाफ भी 10% आयात शुल्क की घोषणा कर दी है, जिसे अमेरिकी समय के हिसाब से आज मंगलवार सुबह 12 बजकर 1 मिनट पर लागू होना था। चीन ने भी इसके जवाब में आज अमेरिका से होने वाले वस्तुओं में से कुछ पर 10% आयात शुल्क की घोषणा कर दी है।
हालांकि ये टैरिफ अगले सप्ताह से लागू होंगे। चीन को ट्रम्प की तरह हड़बड़ी नहीं है, वह केक को ठंडा करके खाना चाहता है। हालांकि चीन ने अमेरिकी कंपनी गूगल के खिलाफ एंटी मोनोपली जांच शुरू कर दी है। चीन को पता है कि अमेरिकी कॉर्पोरेट पर दबाव ज्यादा कारगर रहेगा।
उधर यूरोपीय संघ के देश भी डोनाल्ड ट्रम्प के तानाशाहीपूर्ण रवैये के खिलाफ लामबंद होने शुरू हो चुके हैं। अमेरिका के भीतर भी ट्रम्प के अविवेकपूर्ण फैसलों पर खुद रिपब्लिकन पार्टी से असंतोष के स्वर उभरने शुरू हो चुके हैं।
भले ही ट्रम्प ने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ जैसे नारे के आधार पर बड़ी संख्या में श्वेत आबादी और अश्वेत कामगारों दोनों को अपने पक्ष में वोट करने के लिए राजी करा लिया, लेकिन कॉर्पोरेट और कृषि क्षेत्र दोनों को पता है कि यदि मेक्सिको, वेनुजुएला, भारत सहित दक्षिण एशिया के लाखों-लाख अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निर्वासित कर दिया गया तो अमेरिका में सस्ते दर पर खेती, भवन निर्माण, नर्सिंग जैसे काम असंभव हो जायेंगे।
ऊपर से चीन और कनाडा के साथ व्यापार संबंध खराब करने का मतलब है देश में भारी मुद्रास्फीति, जिसे काबू में करने के लिए फेडरल रिजर्व को पिछले दो साल तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी और ब्याज दरों को लगातार बढ़ाना पड़ा।
ऐसे में यह बात समझ से बाहर है कि जो बात कनाडा, मेक्सिको, चीन सहित यूरोपीय संघ के देशों को समझ आ रही है, उसे भारत की मौजूदा मोदी सरकार आकलन क्यों नहीं कर पा रही? भारतीय विदेश नीति को तैयार करने वाले अधिकारियों और प्रशासन की क्षमता अभी भी उच्च कोटि की है, और भारत ऐसे किसी भी दबाव में झट मान जाए यह संभव नहीं है।
ऐसे में ले देकर सुई एक बार फिर पन्नून मामले में एफबीआई के हाथ लगे सुबूतों और अमेरिकी अदालत में गौतम अडानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की ओर घूम जाना स्वाभाविक है। इन दोनों ही मामलों में विदेश मंत्रालय और विदेश नीति का कोई वास्ता नहीं है। यदि मामला यही है तो यह बेहद गंभीर विषय है।
अमेरिकी धरती पर किये गये अपराध (या अपराध की योजना में शामिल) भारतीय अधिकारी की संलिप्तता या भारतीय कॉर्पोरेट के द्वारा धोखाधड़ी को नजरअंदाज करने के लिए ट्रम्प के साथ डील भारत की संप्रभुता और देशहित को दांव पर लगाने जैसा होगा, जिसे देश किसी भी कीमत पर मंजूरी नहीं दे सकता।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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