भगत सिंह ने कहा था कि आजादी का मतलब गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण नहीं है। इसका एकमात्र आशय यही है कि भारत की आजादी का मतलब लुटेरों से लुटेरों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण नहीं था उसकी जगह वे भारत के किसान, मजदूर, शोषित उत्पीड़ित वर्गों के हाथों में वास्तविक सत्ता चाहते थे।
देश को जब 1947 में आज़ादी मिली तब समाजवादी समाज की स्थापना कांग्रेस सरकार का वादा था। जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूरे करने के लिए अधिकतम प्रयास किए लेकिन कथित कुछ लोगों के जाल में उलझकर उन्होंने उस वक्त के समाजवादियों से किनारा कर लिया।
इंदिरा गांधी ने भी नेहरू की विचारधारा को लेकर कांग्रेस को आगे बढ़ाया किंतु अंतिम समय में इसी तरह के एक गिरोह ने उन्हें आपातकाल लगाने का सुझाव दिया, उन्होंने लगाया और उसके परिणाम भुगते। कांग्रेस चुनाव हारी। वे सत्ताच्युत हुई। मगर दो साल से पहले ही मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई। मध्यावधि चुनाव में जनता के बीच किए गए इंदिरा गांधी के जनहितैषी कार्यों की याद करते हुए उसने उन्हें पुनः सत्ता सौंप दी।
राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने भी नेहरू की रीति-नीति के मुताबिक भारत सरकार चलाई। किंतु मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में भूमंडलीकरण के जाल में भारत फंस गया जिसके परिणामस्वरूप पूंजीवादी ताकतों को देश में हावी होने का रास्ता खुला परन्तु उनके रहते फिर भी पूंजीपतियों की स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं हो पाई कि वे प्रधानमंत्री की पीठ पर हाथ रख सकें।
लेकिन सन् 2014 में जिसे वर्तमान में मौजूद कंगना रानावत वास्तविक आज़ादी का वर्ष मानती हैं, में दो पूंजीपतियों ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कथित तौर पर चाय बेचने वाला प्रचारित कर, प्रधानमंत्री बनाने में अनंत अंबानी की शादी में होने वाले खर्च से कई गुना धन, चुनाव प्रचार में ख़र्च किया। दोनों पूंजीपति अंबानी, अडानी गुजरात से हैं। संयोग ने उनकी तकनीक और मोदी के धमाकेदार झूठे प्रचार ने जीत हासिल की।
इस तरह देश पूरी तरह से पूंजीपतियों की गिरफ्त में आ गया और कांग्रेस के आज़ाद भारत को सजाने संवारने के सपने धुंधला गए। नई आई सत्ता कांग्रेस मुक्त भारत के लिए प्रतिबद्ध हो गई। नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी परिवार के राजीव सोनिया और राहुल तो जैसे इनकी आंख की किरकिरी बन गए। देश के अरबों रुपए का खर्च इनकी छवि धूमिल करने में लगाया गया।
देश की अवाम को दो लोकसभा चुनावों में धर्म के नाम और झूठे वायदों जिन्हें बाद में जुमला कहा गया, के नाम से गुमराह किया गया। मगर सन् 2024 लोकसभा चुनाव ने इन धोखे और चालबाजों को सबक सिखा दिया है। चार सौ पार का ख़्वाब देखकर हिंदू राष्ट्र बनाने वालों को 240 पर ला खड़ा किया है, जो बहुमत से 32 सीट दूर हैं किंतु दो बैशाखियों पर सरकार बनाकर टिके हैं।
यह देश के लोकतंत्र की विजय है, जिस परिवार से उन्हें सख़्त नफ़रत थी, तथा जिस कांग्रेस पार्टी मुक्त शासन की वे बात करते रहे आज उसी परिवार का बेटा राहुल गांधी प्रतिपक्ष का नेता है और सदन में आंख मिलाकर पीएम मोदी से जवाब मांग रहा है। समूचे इंडिया गठबंधन ने उसे अपना नेता बनाया है।
देशवासियों हम सबको इस बात पर गौर करना चाहिए कि जब देश की सरकार अयोध्या में रामजी को लाकर भी अयोध्या हार जाती है तो हम रामजी के सहारे कैसे बैठे रह सकते हैं। अब ‘रामभरोसे जो रहें पर्वत पर हरियाएं’ का वक्त नहीं है, राम राज्य भी नहीं है, मोदी राज है। कहा जाता है उन्होंने बचपन में मां के गहने चुरा लिए थे, अब उनके राज में केदारनाथ को दान में मिला 228 किलो स्वर्ण पीतल में बदल जाता है। काशी विश्वनाथ के मंदिर के स्वर्ण के साथ भी ऐसा ही होता है। आखिरकार इस लूट का पता क्यों नहीं ज़ोर शोर से लगाया जाता।
उन्होंने अब रामजी, महाकाल बाबा विश्वनाथ और केदारनाथ बाबा से दूरी बना ली है, वे अब जय जगन्नाथ की ओर मुखातिब हुए हैं, ओडिशा चुनाव तो जीत लिए हैं, अब पुरी के इस ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर के खजाने को खुलवाया गया है, और देखते ही देखते वहां का खजाना चोरी हो गया क्या इस संपदा की लूट पर बहुसंख्यक तमाम हिंदू इसे देखते रह जाएंगे। जाने क्यों वे इन लूटों पर ख़ामोश है जहां उनकी आस्था सर्वाधिक है।
इन धार्मिक आस्था केंद्रों का फायदा चुनाव में लेने की हरचंद कोशिश हुई लेकिन यह संतोष का विषय है कि अयोध्या, बद्रीनाथ, चित्रकूट, नासिक जैसे तीर्थ क्षेत्र से वे हार गए हैं। यह भगवानों की कृपा से नहीं बल्कि जनता-जनार्दन की टूटती ख़ामोशी का प्रतीक है। इन तीर्थों पर जो निर्माण कार्य हुए उनमें हुए भ्रष्टाचार की कलई भी अच्छे से खुल गई। सोचिए जो भगवान के घर लूट और भ्रष्टाचार करवाते हैं, वे अपनी रिआया के हित में कैसा काम करेंगे।
इसकी तस्वीर भी इस साल बारिश में देखने को मिल रही है, नवीनतम संसद भवन टपक रहा है। हवाईजहाज़ और बुलेट ट्रेन में झरने झर रहे हैं। बिहार में एक के बाद एक पुल गिरते जा रहे हैं। गुजरात माडल प्रदेश में भी यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा। अयोध्या के राजपथ से लेकर कई नगरों की सड़कें गायब हो गई। महानगर भी अछूते नहीं रहे लखनऊ शहर से तो नदी ही निकल गई। गांवों की खबर कौन ले।
पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ गिरे बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों के चित्र तो सामने आए पर वहां के लोगों का क्या हुआ नहीं दिखाया गया। वारिश के मौसम में इस तरह की बढ़ती घटनाओं के पीछे भी भारत सरकार की आर्थिक नीतियों का कमज़ोर होना तथा किए गए काम में भारी भरकम भ्रष्टाचार ही दिखाई देता है। इन घटनाओं के लिए शायद ही किसी को जिम्मेदार माना जाएगा क्योंकि सब कुछ कमाई के चक्कर का परिणाम ही है।
लूट का तो कोई हिसाब खाता नहीं। गुजरात के लोगों ने बड़ी तादाद में मोदीजी की शह पर, बैंक लूटे और विदेश भाग गए। अंबानी-अडानी को भारत सरकार ने जिस तरह हर क्षेत्र में देश की 75 साल में जोड़ी निजी संपत्ति सस्ते में बेच दी तथा पेट्रोल,गैस, डीजल, रेल, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निजीकरण की तूती बोल रही है। उसमें की गई लूट यहीं तक सीमित नहीं रही। जनता के मौलिक अधिकारों का भी व्यापक तौर पर हनन हुआ है।
उनकी निजी आस्थाओं पर चोट पहुंचाई जा रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य अब आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। भुखमरी का आलम ये है कि आज भी देश के 80 करोड़ लोग राशन पर निर्भर हैं। अमीरों को और अमीर बनाकर ग़रीबों का हक छीना जा रहा है। स्विस बैंक की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि 2014 से पहले यहां जितना अवैध धन जमा था, आज उससे दोगुना जमा है। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि लूट किस कदर बढ़ी है। उसे वापस लाने और बांटने की चर्चा सिरे से गायब है।
आज़ सबसे बड़ी चुनौती जो इस सरकार से देश को मिली है, वह है देश के संविधान को ख़त्म करने और साम्प्रदायिक ताकतों को बढ़ावा देने की। जिसे अब सनातन कहा जा रहा है, हिंदू राष्ट्र बनाने का है। हालांकि 2024 में जनता ने उनके इस विचार को धराशाई कर दिया है।
बैसाखियों पर टिकी सरकार को अब पहली बार प्रतिपक्ष का नेता मिला है, जो सरकार के लिए चुनौती साबित हो रहा है। दूसरी ओर इंडिया गठबंधन का दबाव भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे सरकार की मनमानी नहीं चल पाएगी। इससे बढ़ती धुंध निश्चित तौर पर छंटेगी।
देश आज देश के युवाओं की ओर आशा भरी नज़रों से देख रहा है। लेखकों ,कलाकारों, बुद्धिजीवियों ने जिस तरह आज़ादी लाने और देश को समृद्ध कर प्रत्येक देशवासी की खुशहाली का स्वप्न देखा था, वह आज तिरोहित हो रहा है। हमें चंद घरानों की समृद्धि बढ़ाने के सिलसिले को रोकने के लिए कमर कसने की ज़रूरत है।
क्योंकि इनके पास हमारी लूट का पैसा ही बोलता है। इस खाई को पाटना ही देश की सरकार का संकल्प होना चाहिए। तमाम संवैधानिक संस्थाओं को सरकारी दबाबों से मुक्ति हेतु संकल्पबद्ध होना होगा।
बढ़ती धार्मिक कट्टरता की खिलाफत करना तथा नफरती ताकतों से देश को बचाना होगा। महिलाओं को लाड़ली बहना कहकर, कुछ हज़ार रुपए देना कर्मठ महिलाओं और युवा बेरोजगारों की तौहीन है। इसे समझना होगा और अपने रोजगार के अधिकार के लिए लड़ना होगा। देश की संपदा लूटने वालों के खिलाफ भी स्टैंड लेना होगा।
सच मानिए यदि आप सब प्रतिपक्ष की ताकत बन उसके साथ खड़े हो जाते हैं, तो निश्चित रूप से आज़ाद भारत की धुंधलाती तस्वीर फिर रौशन की जा सकती है।
आईए अपने देश की आज़ादी की 78वीं वर्षगांठ पर देश के समुन्नत विकास हेतु हम प्रतिबद्ध हों। जय हिंद। आज़ादी अमर रहे।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)