अमेरिका के व्यापार सौदे
अमेरिका के व्यापार सौदों और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उनके प्रभावी योगदान का अभी तक मिलाजुला रिकॉर्ड रहा है।
अमेरिका विश्व व्यापार संगठन (WTO) जो कि एक बहुपक्षीय व्यापार समझौते का मंच है, का हिस्सा है। इसके अलावा, यह संयुक्त राज्य अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौते (USMCA) का भी हिस्सा है, जिसने 2020 में विवादास्पद NAFTA (उत्तर अटलांटिक मुक्त व्यापार समझौते) की जगह ली है। देखा जाये तो USMCA ने टैरिफ वार के बगैर भी अमेरिका में नौकरियों को बढ़ाने में अपना योगदान दिया है! लेकिन अमेरिका अन्य शक्तियों के साथ व्यापार सौदे के अपने प्रयासों में ऐसी ही समान सफलता को हासिल नहीं कर पाया है।
अमेरिका-जापान व्यापार समझौता (USJTA) आधिकारिक रूप से 1 जनवरी 2020 से लागू हो गया था। हालांकि, यह समझौता अमेरिका और जापान के बीच गहन व्यापार प्रतिद्वंद्विता के तीन दशकों के बाद जाकर संभव हो सका, जिसमें विशेषकर जापानी ऑटोमोबाइल्स और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स की अमेरिकी बाजारों पर धावे की वजह मुख्य रही।
यूरोपीय संघ के साथ, अमेरिका ने 2013 में ट्रांसअटलांटिक ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप (TTIP) नामक व्यापार सौदे के लिए वार्ता शुरू की थी, लेकिन 2016 में यह वार्ता रद्द कर दी गई और यह कदम सफल नहीं हो सका। यहां पर विडंबना यह है कि कथित रूप से खुद को मुक्त बाजार पूंजीवाद के दो प्रमुख केंद्र घोषित करने वाले ही आपस में व्यापार समझौते पर राजी नहीं हो सके।
इसके अलावा, अमेरिका ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) का भी सदस्य रहा है, जो अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको और पेरू और सुदूर-पूर्व से जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम के बीच एक व्यापार व्यवस्था थी। इसका इतिहास परेशानी वाला रहा, और 2017 में अमेरिका स्वंय इस समझौते से पीछे हट गया था।
बढ़ते व्यापार घाटे का सामना कर रहा है अमेरिका
2024 में, चीन अमेरिका के लिए सबसे बड़ा माल आपूर्तिकर्ता था, जिसका आयात मूल्य तकरीबन 501.22 बिलियन डॉलर था, हालाँकि यह 2022 में चीन से अमेरिका के निर्यात मूल्य 536.3 बिलियन डॉलर से कम था। यह दर्शाता है कि चीन के खिलाफ अमेरिका का संरक्षणवाद ट्रंप 2.0 से पहले ही शुरू हो चुका था। 2024 में, चीन का अमेरिका से कुल आयात 462.62 बिलियन डॉलर हो चुका था, जो 2023 में चीन के अमेरिका से 165.16 बिलियन डॉलर आयात की तुलना में बहुत ज्यादा वृद्धि है, जिसकी मुख्य वजह अमेरिकी व्यापार धमकियों के चलते संभव हो पाई थी। 2024 में अमेरिका और चीन के बीच संचित व्यापार घाटा 295.4 बिलियन डॉलर रहा।
जबकि यूरोपीय संघ ने 2024 में संयुक्त राज्य अमेरिका को लगभग 527.49 बिलियन डॉलर मूल्य के माल का निर्यात किया है, वहीं दूसरी ओर उसने मात्र 372.59 बिलियन डॉलर का ही आयात किया है, जो 2023 में 347 बिलियन डॉलर की तुलना में उचित वृद्धि कही जा सकती है, लेकिन इसकी वजह भी अमेरिकी व्यापार धमकियों में छुपी है। यहां पर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि यूरोपीय संघ एक एकल निर्यातक इकाई नहीं है, क्योंकि इसमें कई देश शामिल हैं जबकि यूरोपीय संघ का व्यापार सौदा सभी यूरोपीय संघ के देशों पर बाध्यकारी होगा। 2024 में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच वर्षों से संचित व्यापार घाटा 235.6 बिलियन डॉलर रहा।
2024 में, कनाडा ने संयुक्त राज्य अमेरिका को लगभग 439.6 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तु एवं सेवाओं का निर्यात किया जबकि अमेरिका से कनाडा ने 421.21 बिलियन डॉलर मूल्य के माल और सेवाओं का आयात किया। 2024 में अमेरिका और कनाडा के बीच संचित व्यापार घाटा 63.3 बिलियन डॉलर रहा।
मैक्सिको की ओर से अमेरिका को 436.6 बिलियन डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया, वहीं अमेरिका ने मैक्सिको को 334 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। 2024 में अमेरिका और मैक्सिको के बीच संचित व्यापार घाटा 171.8 बिलियन डॉलर था।
कुलमिलाकर हम पाते हैं कि अमेरिका का अपने चार प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ कुल संचित व्यापार घाटा 750 बिलियन डॉलर से भी अधिक रहा। इससे ट्रंप की ओर से अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के खिलाफ तलवार भांजने की मुद्रा और टैरिफ वार की शुरुआत करने की धमकी की वजह समझ में आती है। ट्रंप की नई आक्रामकता का यही वह आर्थिक आधार है। लेकिन तस्वीर का यह सिर्फ एक पहलू है। ट्रंप के व्यापार आक्रमण से प्रति-आक्रमण के भड़कने की पूरी-पूरी संभावना है।
प्रतिशोधात्मक काउंटर-टैरिफ और बड़े पैमाने पर ट्रेड वॉर का खतरा
न सिर्फ चीन, बल्कि कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ ने भी काउंटर-टैरिफ लगाकर बदले की कार्रवाई शुरु कर दी है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के एक नए चरण की ओर बढ़ने की आहट देता है, जो व्यापक वैश्विक व्यापार युद्ध में तब्दील हो सकता है। बेशक, मुक्त व्यापार कभी भी पूंजीवाद की स्थायी नीति नहीं रही है। यह केवल आकस्मिक नीति के लिहाज से उस देश के लिए कारगर नीति रही है, जिसका निर्यात में मजबूत पक्ष रहा हो। बहरहाल, इस नई व्यापार प्रतिद्वंद्विता के चरण से सभी अर्थव्यवस्थाओं के पारस्परिक व्यापार मुनाफों को नुकसान तो होगा है, उसके साथ ही यह विश्व अर्थव्यवस्था के समग्र विकास को धीमा करने का खतरा उत्पन्न का रहा है।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाये रखने के लिए कुछ अन्य चुनौतियाँ
अमेरिकी वस्तु और सेवाओं को दक्षिण कोरिया, ताइवान, ब्राजील और भारत से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इन देशों ने उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में भी अमेरिकी बाजार की हिस्सेदारी में सेंध लगानी शुरू कर दी है।
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर 9.1% हो गई थी, जो शुरू में 2022 में यूरोपीय संघ में 8% की तुलना में अधिक थी, लेकिन बाद में अमेरिका में मुद्रास्फीति 4.5% तक कम हो गई, लेकिन यूरोपीय संघ में यह 2024 के अंत तक भी 6.5% के आसपास मंडरा रही थी। लेकिन इसके चलते अमेरिकी माल और सेवाएँ विदेशों में महंगी हो चुकी हैं।
इसके साथ ही अमेरिका के पास अब उच्च-तकनीक के क्षेत्रों पर एकाधिकार नहीं रहा, और इस मामले में उसे न सिर्फ चीन से बल्कि एक बार फिर से खुद को खड़ा कर रहे जापान, और उभरते यूरोप और कुछ खास क्षेत्रों में ब्रिक्स के देशों से भी बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। नई उच्च-तकनीकी क्षेत्रों जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन, माइक्रोप्रोसेसर और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में, आज अमेरिका को न सिर्फ चीन बल्कि ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अमेरिका के पास केवल पारंपरिक विनिर्माण के मामले में श्रम लागत का लाभ है, लेकिन उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में उसके पास यह लाभ नहीं है। इस श्रम लागत का लाभ होने के बावजूद, हेल्थकेयर कास्ट, अन्य श्रम कल्याण लागत और उच्च उत्पादन लागत के चलते अमेरिकी बाजारों में जापान और जर्मनी से आने वाला माल अधिक प्रतिस्पर्धी साबित हो रहा है।
टैरिफ उपायों का दीर्घकालिक प्रभाव
टैरिफ बढ़ाना या जैसे को तैसा टैरिफ लागू कर देना अमेरिकी माल और सेवाओं को, विशेष रूप से निर्यात बाजारों में केवल अस्थायी संरक्षण ही मुहैया करा सकता है। लेकिन इसका उल्टा नतीजा यह भी देखने को मिल सकता है कि टैरिफ वृद्धि आयातित उत्पादों की कीमतों को 10% और घरेलू उत्पादित वस्तुओं के मूल्य को 16% तक बढ़ा देगी। अमेरिका में अर्थशास्त्रियों की राय में गहरा मतभेद है। कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि ट्रंप के टैरिफ वृद्धि से आर्थिक मंदी और जीडीपी में मामूली कमी आ सकती है। संरक्षित क्षेत्रों में जिन नौकरियों की रक्षा करने की बात कही जा रही है, या नई नौकरियां पैदा की जाने की बात हो रही है, अर्थव्यवस्था को समग्रता में देखें तो उससे अधिक नौकरियाँ जा सकती हैं।
इस प्रकार ट्रंपवाद एक अस्थायी, अन्तर्मुखी परिघटना है जो दीर्घकाल में प्रतिगामी साबित हो सकती है। लेकिन चूँकि यह श्रमिक वर्ग और अमेरिका-फर्स्ट टाइप के दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद की एंटी-एस्टाब्लिश्मेंट भावनाओं का शोषण करने वाली लोकलुभावन बयानबाजी पर आधारित है, इसलिए इसे जारी रखा जाएगा।
ट्रंप के द्वारा डी-डॉलराइजेशन की मुहिम के खिलाफ, विशेषकर ब्रिक्स शक्तियों के खिलाफ जमकर धमकियां जारी की जा रही हैं। फिलहाल डॉलर अभी भी मजबूत है। लेकिन इसके साथ ही अमेरिका का संप्रभु ऋण बढ़ता जा रहा है। अगर उच्च मुद्रास्फीति फिर से अमेरिका में लौटती है, तो डॉलर के रूप में रिजर्व मुद्रा को बढ़ती चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। बड़े संकट के पहले संकेत पर, यदि डॉलर ने डगमगाना शुरू कर दिया तो अमेरिका से पूंजी पलायन रफ्तार पकड़ सकता है। वैसे फिलहाल अभी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए स्थिति इतनी निराशाजनक नहीं है, लेकिन जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है।
और दीर्घकाल के हिसाब से कहें, तो जैसा कि कहा जा रहा है, ट्रंपवाद की भी मौत संभव है!
(बी. सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। sivaramanlb@yahoo.com पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)
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