Tuesday, March 19, 2024

सीपी कमेंट्री: कोरोना-कालीन वैश्विक अगुआई के लिये अश्वमेध यज्ञ पर निकले अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन

अमेरिकी नागरिक और विचारक भाषाविद प्रोफेसर नॉम चॉम्स्की ने वहां के हालिया चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी प्रत्याशी और तब के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर की तरह सामाजिक तौर पर विकृत ‘सोशियोपैथ‘ बता कर कहा था कि ‘कोरोना काल‘  में ट्रंप की वैश्विक अगुआई खतरनाक होगी क्योंकि उन्हें दूसरों की नहीं हमेशा अपनी ही फ़िक्र रहती है।

बहरहाल, इस चुनाव में ट्रम्प के खिलाफ जीते डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन ने 45 वें राष्ट्रपति का पदभार सम्भालने के बाद वैश्विक अगुवआई ले लिये एक तरह से ‘अश्वमेघ यज्ञ‘ शुरू कर दिया है।

राष्ट्रपति बाइडेन ने अपनी पत्नी जिल बाइडेन के साथ इसी विदेश यात्रा के दौरान नई सहस्त्राब्दि की नयी महामारी कोविड 19 से निपटने के लिये वैश्विक टीकाकरण की योजना का खुलासा करने की भी घोषणा की है। 

बाइडेन की कुल 8 दिनों की विदेश यात्रा का मकसद अमेरिका की वैश्विक अगुआई कायम करने की नये सिरे से कोशिश करने के साथ ही कोरोना काल में पूंजीवादी व्यवस्था के गहराते संकट से निपटने का साफ रास्ता भी ढूंढना है। इसके लिये वह सबसे पहले ब्रिटेन में ग्रुप ऑफ सेवन यानि जी-7 के देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने लंदन पहुंच चुके हैं। जी-7 में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा हैं। जी-7 शिखर सम्मेलन रविवार तक चलेगा।

राष्ट्र्पति बाइडेन 16 जून को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से बातचीत करने के लिये स्विट्जरलैंड के जेनेवा जायेंगे। वह पुतिन से मिलने से अमेरिका की अगुआई में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1949 में बना सैन्य संगठन, नाटो यानि नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन के सभी सदस्य देशों के हुक्मरान की अहम बैठक में भाग लेने के लिये बृसेल्स भी जायेंगे।  

ट्रंप शासन के दौरान अमेरिका के सम्बंध चीन ही नहीं रूस से भी खराब ही रहे। विदेश यात्रा पर रवाना होने के मौके पर बाइडेन ने कहा कि मेरी यह यात्रा चीन और रूस के नेताओं को संदेश है कि अमेरिका और यूरोप के संबंध मजबूत हैं।

नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स में ही है। इसमें अभी शामिल 30 देशों में अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नार्वे, निदरलैंड्स और पुर्तगाल शामिल हैं। बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में हाल में नाटो का नया मुख्यालय परिसर बना है। (देखे फोटो)

फ्लैशबैक 2020

कोरोना के खिलाफ मुकाबले में वैश्विक वीर की भूमिका में नजर आने को आतुर डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली एक जैसी रही है। अमेरिका में कोरोना का पहला संक्रमित मरीज भारत से 10 दिन पहले 20 जनवरी 2020 को मिला। वहाँ भी भारत की तरह टेस्टिंग की तैयारी नहीं थी। कोरोना को भगाने के लिये मोदी जी विज्ञान से परे अपने ‘ज्ञान‘ के सहारे भारत के लोगों से ताली–थाली बजवा कर और फिर घरों में घंटों बत्ती गुल रखने का उपक्रम कर चुके हैं। ट्रंप उनसे पीछे नहीं रहे। कभी कहा अमेरिका ने कोरोना की दवा ढूंढ ली है। कभी इसका ठीकरा चीन पर फोड़ दिया।

कभी नई सहस्त्राब्दि की इस नई महामारी की रोकथाम में लगे हुए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ से भिड़ गये तो कभी इस चुनाव में उन्हें चुनौती देने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन से ही भिड़ कर उन्हें चीन का एजेंट तक कह डाला। ट्रंप ने फरमाया कोरोना वायरस फ्लू नहीं अमेरिका पर हमला है। यह कोई फ्लू नहीं है। 1917 में अमेरका पर ऐसा आखिरी हमला हुआ था। ट्रम्प ने डब्ल्यूएचओ को अमेरिकी अंश दान रोक दी। फिर कहा, चीन  पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन का समर्थन कर रहा है। यदि बाइडेन जीत गये तो अमेरिका पर चीन का कब्ज़ा हो जाएगा।”

जैसे मोदी ने इस बरस के प्रारम्भ में भारत में कोरोना का टीका तैयार हो जाने का शंखनाद किया उसी तरह ट्रंप ने पिछले बरस 21 मार्च 2020 को ही दावा किया था कि अमेरिका ने कोरोना की दवा के बतौर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और एज़िथ्रोमाइसिन का कॉम्बिनेशन मेडिसिन बना ली है जो दुनिया में बड़ा गेम चेंजर साबित होगा। पर ट्रंप के इस बयान के तुरंत बाद 21 मार्च को ही अमरीका के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने रिपोर्ट दी कि कोरोना के मरीज़ों के लिए एफ़डीए ने तब तक कोई दवा स्वीकृत ही नहीं की थी।

मोदी पर दबाव

इससे पहले ट्रंप ने मोदी पर दवाब डाल कर मलेरिया के उपचार में प्रयुक्त हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन टेबलेट्स के भारत से निर्याय पर प्रतिबंध हटवा लिया।

चार अप्रैल 2020 को सुबह 07.08 बजे मोदी का ट्वीट था: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फ़ोन पर लंबी बात हुई। हमारी बातचीत अच्छी रही। दोनों देश कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में पूरे दम-खम से एक दूसरे का साथ देने के लिए राजी हुए। मोदी ने ये नहीं बताया अमेरिका भारत से क्या मदद चाहता है। पर खुद ट्रंप ने खुलसा कर दिया”।

ट्रम्प को कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली से सहयोग मिला। सभी दावा करते रहे चीन ने कोरोना को जैविक हथियार की तरह बनाया, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से कोरोना लीक हो गया, चीन ने कोरोना का ब्यौरा दुनिया को नहीं दिया, चीन में अमेरिका से ज़्यादा मौतें हुईं जिसे उसने छिपा लिया,चीनी कम्पनियों ने अपने सुरक्षा उपकरण, वैक्सीन, वेंटिलेटर, टेस्टिंग किट, मॉस्क आदि के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए दुनिया को कोरोना की आग में झोंक दिया। अमेरिका और जर्मनी की निजी कम्पनियों ने चीन से भारी-भरकम हर्ज़ाना माँग डाला। अमेरिकी राज्य मिसूरी ने चीन के ख़िलाफ़ मुक़दमा ठोकने की धमकी दी। चीन, नाटो देशों के निशाने पर आ गया। लेकिन फ़्राँस ने कहा कोरोना प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता। वुहान में इसका प्रगट होना संयोग है। चीन ने कहा कि ‘हम दोषी नहीं, पीड़ित हैं। हमने ज़िम्‍मेदारी से काम किया।

बाइडेन का मकसद

हम राष्ट्रपति बाइडेन की विदेश यात्रा के बारे में इस तरह से विश्लेषण और तथ्य पेश करेंगे जो भारत के लिये प्रासंगिक हो। बाइडेन का फौरी मकसद वैश्विक व्यापार में पूर्व साम्यवादी देश रूस और अभी भी एक खास तरह की लगभग लोकतंत्रविहीन साम्यवादी व्यवस्था वाले देश चीन के विश्व व्यापार में बढ़ते आर्थिक प्रभाव को नियंत्रित करने में नाटो की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी है।

अमेरिका ने चीन की वैश्विक व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को टक्कर देने के लिये बाइडेन प्रशासन द्वारा उद्योग और अनुसंधान में 200 अरब डालर के निवेश की योजना इस योजना को हाल में मंजूरी दी है।

बाइडेन के इस विदेश यात्रा का समापन 16 जून को रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ शिखर सम्मेलन में होगा। राष्ट्रपति बाइडेन अपनी इस विदेश यात्रा के दौरान ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ और प्रधानमंत्री बोरिस जानसन  समेत करीब 35 नेताओं से अलग से भी मिलेंगे।

ये रेखांकित करना जरुरी है कि बाइडेन की इस विदेश यात्रा में भारत कही नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति की विदेश यात्रा के कार्यक्रम महीनों पहले बन जाते हैं।  राष्ट्रपति बाइडेन की भारत यात्रा का कोई कार्यक्रम सार्वजनिक रूप से अभी तक घोषित नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की भी अमेरिका की कोई प्रतावित यात्रा की खबर तत्काल नहीं मिली है।

भारत द्वारा अपने प्रधानमंत्री और राष्ट्पति की यात्राओं के लिये करीब 48 अरब रुपये के खर्च से खरीदे पूर्णतया सुसज्जित दो विशेष विमान ‘बोइंग-777 ईआर‘ शायद ही विदेश जा पाया है। जी हाँ, कुल लागत की गणना 48 अरब रुपये पड़ती है। ऐसे एक विमान की कीमत 320 मिलियन डॉलर है जो भारतीय मुद्रा में 23 अरब 95 करोड़ 11 लाख 20 हज़ार होती है। इसलिये कुल लागत इसकी दो गुणा रकम हुई।

बहरहाल, देखना यह है कि चीन के खिलाफ रूस को अपने पाले में लाने के लिये अमेरिका की राजनयिक शतरंज की बिसात पर रूस के राष्ट्र पति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी का रुख कितना खुलता और कितना बंद रहता है।

(चंद्रप्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार लेखक हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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