अमेरिका के सैनिक विमान से जिस तरह भारतवासियों को हथकड़ी और जंजीरों में बांधकर लाया गया है, वह किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए बेहद शर्मसार करने वाली घटना है। जहां तक ट्रंप की बात है वे तो चुनाव ही इसी सवाल पर लड़े थे और इन विजुअल्स के माध्यम से वह पूरी दुनिया को यह संदेश देना चाहते थे कि वे इस सवाल पर कितने दृढ़ हैं।
बताया जा रहा है कि कई और देशों के नागरिकों को भी वापस भेजा गया है। इनमें एक छोटे देश कोलंबिया ने जिस तरह का साहस दिखाया है, वह प्रशंसनीय है। वहां के राष्ट्रपति ने अमेरिकी सैनिक विमान को अपने देश में लैंड नहीं करने दिया। उसकी जगह अपने देश से विमान भेजकर अपने नागरिकों को ससम्मान वापस ले आया। उन्होंने यह बयान भी दिया कि वे अमेरिका के लिए भले अवैध नागरिक हो सकते हैं, लेकिन वे अपराधी नहीं हैं। और उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है।
लल्लनटॉप की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका से भारत डिपोर्ट हुए लोगों ने बताया 40 घंटे तक उनके हाथ-पैर जंजीर से बांध के रखे गए। वाशरुम जाने की भी इजाज़त नहीं थी। बार-बार आग्रह करने बाद घिसटते हुए वाशरूम तक गए।
सबसे शर्मनाक तो यह है कि 140 करोड़ आबादी वाले भारत ने जिसके प्रधानमंत्री राष्ट्रपति ट्रंप से अपनी दोस्ती का गाना गाते नहीं थकते हैं, वे साढ़े चार करोड़ आबादी वाले कोलंबिया के राष्ट्रपति जैसा भी साहस नहीं दिखा सके। भारत सरकार ने वैसा कुछ भी नहीं किया। अलबत्ता मीडिया उसे कवर न कर सके, इसका पुख्ता इंतजाम किया गया। उधर उसी दिन प्रधानमंत्री कुंभ में स्नान करते रहे, जिस पर मीडिया का फोकस बना रहा।
शीतल पी सिंह ने अपनी पोस्ट में ठीक लिखा है कि “कोलंबिया कुल पांच करोड़ लोगों की आबादी वाला छोटा सा देश है। दक्षिणी अमेरिका में स्थित होने के कारण अमरीका की सीधी जद में है। किसी तरह की आर्थिक या सामरिक शक्ति भी नहीं है लेकिन ख़ुद्दार है।
वहां के नागरिकों को भी अमेरिका ने उसी तरह वापस भेजा था जैसे हमारे नागरिकों को भेजा है! वहां के राष्ट्रपति ने सख़्त प्रतिवाद किया और उसके नागरिकों को ला रहे अमरीका के सैनिक जहाज़ को वापस लौटा दिया। जबकि 145 करोड़ के हमारे देश के विश्वगुरु के मुंह से तो बोल तक न फूटा और उनके बहादुर देशभक्त समर्थक उल्टे अपने मज़बूर देशवासियों को ही कोस रहे हैं !”
104 भारतीयों को जिनमें 19महिलाएं थीं हथकड़ी बेड़ी में 40 घंटे की यात्रा करके जिस विमान में लाया गया उसमें केवल एक टॉयलेट था। किस नारकीय और अमानवीय यातना से हमारे देशवासियों को गुजरना पड़ा, इसकी कल्पना की जा सकती है। यह भारत सरकार का अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने नग्न आत्मसमर्पण है। बताया जा रहा है कि ऐसे 7 लाख 25 हजार भारतीय हैं जिन्हें अवैध घोषित करके भारत भेजने की तैयारी है। इनमें से अनेक लगता है वहां अमानवीय स्थितियों में डिटेंशन सेंटर में रखे गए हैं।
बहरहाल आज लाख टके का सवाल यह है कि यह स्थिति आखिर क्यों आई? खबरों के अनुसार जो लोग अमेरिका से भारत लाए गए हैं, उसमें सर्वाधिक संख्या गुजरात के लोगों की है, उसके बाद पंजाब की। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि विकास के जिस गुजरात मॉडल को मोदी जी के आदर्श राज्य के बतौर पूरे देश में प्रचारित किया गया, उसी गुजरात के लोग डंकी रूट से अमेरिका जाने को अभिशप्त हैं।
उधर पंजाब जो कृषि क्षेत्र में देश का सबसे विकसित राज्य है, वहां के नौजवान भी नशाखोरी के नशे में डूबने या विदेश जाने के लिए मजबूर हैं। ये नौजवान, उनके अभिभावक खेत बेचकर, घर की महिलाओं के गहने बेचकर उन्हें विदेश भेजे जहां उनके सस्ते श्रम, सरप्लस लेबर से अमेरिकियों की कमाई हो रही थी। मार्क्स ने जैसा कहा है मजदूरों का कोई देश नहीं होता, वे अपना श्रम बेचते हैं, जिसमें से उनको आजीविका भर देकर उनके सरप्लस लेबर को पूंजीपति लूट लेते हैं।
बहरहाल इस पूरे मामले में सबसे शर्मनाक प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री की आई है। जिन्होंने इस पर तो कुछ नहीं ही बोला, उल्टे आपातकाल के दौरान जो हथकड़ी बेड़ी लगाई गई थी, उसकी चर्चा छेड़ दिया। क्या इन दोनों मामलों की कोई तुलना हो सकती है? बेशक दोनों निंदनीय हैं। लेकिन एक अपने देश का अंदरूनी मामला है और दूसरा एक साम्राज्यवादी ताकत द्वारा हमारे देश के नागरिकों को हथकड़ी बेड़ी डालकर अमानवीय व्यवहार का मामला है। यह एक तरह से हमारी सरकार को, हमारे राष्ट्र को चुनौती है।
इसका जवाब केवल और केवल वही हो सकता था जो छोटे से स्वाभिमानी राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष ने अमेरिका को दिया। उन्होंने कहा “प्रवासी कोई अपराधी नहीं हैं। उनके साथ मानवीय ग़रिमा और सम्मान के साथ व्यवहार होना चाहिए। मैं अपने लोगों को उस देश में नहीं रहने दूंगा जो उन्हें अपने यहां नहीं रखना चाहता। लेकिन अगर वह देश उन्हें वापस भेजना चाहता है तो यह उनके प्रति और हमारे देश के प्रति गरिमामय व्यवहार और सम्मान के साथ होना चाहिए। हम अपने देशवासियों को नागरिक विमान से ले आएंगे, बिना उनके साथ अपराधी जैसा व्यवहार किए। कोलंबिया का सम्मान सुरक्षित रखा जाएगा। “
यह बेहद शर्मनाक है कि एक छोटा सा देश अमेरिका के सामने इस तरह डट कर खड़ा होता है और दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री इसका प्रतिवाद करना तो दूर इसे सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। विदेशमंत्री ने बताया कि यह अमेरिका के 2012 के कानून के तहत हुआ।
उन्होंने तो यह गलत बयानी भी की कि महिलाओं और बच्चों को हथकड़ी नहीं लगाई गई जिसका महिलाओं ने प्रतिकार किया कि उन्हें हथकड़ी लगाकर लाया गया। तो मोदी जी आपातकाल की बेड़ी और हथकड़ी की याद दिलाने लगे। यह राष्ट्रीय अपमान की, साम्राज्यवाद के आगे समर्पण करने वाली सरकार है। सभी देशभक्त नागरिकों को उसके शर्मनाक व्यवहार का पुरजोर विरोध करना चाहिए।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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