महाकाल एक्सप्रेस ट्रेन में मंदिर स्थापित करवाकर मोदी ने एक बार फिर उड़ाई संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की खिल्ली

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। संविधान द्वारा खड़ी की गयी धर्मनिरपेक्षता की दीवारों को किस तरह से एक-एक कर गिराया जा रहा है उसकी एक बानगी कल बनारस में देखने को मिली। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से इंदौर जाने वाली महाकाल एक्सप्रेस ट्रेन का उद्घाटन किया। बताया जा रहा है कि इस ट्रेन की बोगी के एक हिस्से में मंदिर बना दिया गया है और उसमें भगवान शंकर की मूर्ति स्थापित कर दी गयी है।

रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि महाकाल एक्सप्रेस के कोच नंबर बी-5 की सीट नंबर 64 को भगवान शंकर के लिए हमेशा-हमेशा के लिए आरक्षित कर दी गयी है। इस सीट को एक मिनी मंदिर में तब्दील कर दिया गया है। आप को बता दें कि पीएम मोदी ने कल वाराणसी में बनारस से इंदौर के बीच चलने वाली इस ट्रेन का उद्घाटन किया है। 

यह संविधान के बुनियादी वसूलों के ठीक विपरीत है। कहां तो हम और हमारा संविधान धर्म को व्यक्तिगत आस्था का विषय मानता रहा है लेकिन मौजूदा सरकार उसकी मान्यताओं के विपरीत जाकर हर वो काम कर रही है जिससे उसकी धज्जियां उड़ें। 

अब कोई पूछ ही सकता है कि भला किसी ट्रेन में इस तरह के मंदिर के होने का क्या मतलब है? और अगर वहां मंदिर है तो कल दिल्ली से अजमेर जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में कोई अजमेर दरगाह की प्रतिकृति की भी मांग कर सकता है। फिर उस पर सरकार का क्या रुख होगा? दरअसल भले ही संसद से हिंदू राष्ट्र का कोई प्रस्ताव नहीं पारित हुआ हो लेकिन मौजूदा सरकार अपनी सारी कार्यावाहियां और गतिविधियां इसे हिंदू राष्ट्र मान कर ही चला रही है। इसी तरह से कहीं शिवाजी की मूर्ति लगाने पर जोर है तो कहीं बस अड्डों समेत स्थानों का नाम महाराणा प्रताप और दूसरे हिंदू राजाओं के नाम पर रखने पर तरजीह दी जा रही है।

आईजीआई पर लगायी गयी शंख।

यहां तक कि दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर बाकायदा शंख की एक बड़ी मूर्ति लगायी गयी है। जिसके जरिये देश और दुनिया से राजधानी में कदम रखने वालों को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि वे हिंदू राष्ट्र की राजधानी में प्रवेश कर रहे हैं। इन मूर्तियों और मंदिरों को स्थापित करने का यही सलिसिला रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर ट्रेन और बस में मंदिर और देवताओं की मूर्तियां दिखेंगी। इस बात में कोई शक नहीं कि अभी तक इन जगहों पर कोई ड्राइवर अपनी इच्छा और आस्था के मुताबिक अपने-अपने धर्मों से जुड़े देवताओं की छोटी-मोटी मूर्तियां या फिर अपनी आस्था के दूसरे प्रतीक लगाए रखता था। लेकिन अगर इस काम को स्टेट करने लगे तब आपत्ति उठना स्वाभाविक है। 

यह सिलसिला आगे बढ़ा तो वह समय दूर नहीं जब हम देखेंगे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के काफिले में किसी मंदिर या फिर किसी देवता की मूर्ति का साथ चलना अनिवार्य कर दिया गया है।

देश में जब स्कूलों से ज्यादा जोर मंदिरों के निर्माण पर हो जाए। और अस्पतालों से ज्यादा मूर्तियां स्थापित की जानी लगें तो हमें यह समझने में देरी नहीं करनी चाहिए कि हम जाहिलियत के नये दौर में पहुंच गए हैं। अनायास नहीं सरसंघ चालक मोहन भागवत देश में तलाकों के पीछे शिक्षा और दौलत को दोषी ठहरा कर दूसरे तरीके से जाहिलियत और गरीबी को ही महिमामंडित करने का काम रहे हैं।

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author