मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राकेश टिकैत को दिया आश्वासन, किसान आंदोलन का करती रहेंगी समर्थन

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देश में चल रहे किसान आंदोलन को लगभग छह महीने हो गए हैं। इस दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं बीच कई बार बात हुई है। लेकिन हर बात नाकाम ही साबित हुई है। इस आंदोलन को लेकर चल रही मांगों के बीच भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत और महासचिव युद्धवीर सिंह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की और इसके लिए समर्थन मांगा है।

बुधवार को पश्चिम बंगाल के सचिवालय (नवान्न) में हुई बैठक में तीन कृषि कानूनों को लेकर बात की गई। जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आश्वासान दिया है कि वह इस आंदोलन का समर्थन करती  रहेगी। आपको बता दें दीदी केंद्र सरकार के कई ऐसे बिलों का खुलकर विरोध करती रही हैं। सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर भी वह खुलेकर सरकार के विरोध में खड़ी हो हुई थी। कोरोना के दौरान भी राज्य की जीएसटी को लेकर केंद्र सरकार का खुलकर विरोध किया।

बुधवार को हुई बैठक के दौरान एक बार फिर केंद्र सरकार पर हमला करते हुए दीदी ने कहा कि उद्योगों को नुकसान हो रहा है और दवाओं पर जीएसटी लगाया जा रहा है। पिछले सात महीनों में केंद्र सरकार ने किसानों से बात करने की जहमत तक नहीं उठाई। मेरी बस यही मांग है कि तीन काले कृषि कानूनों को वापस लिया जाए। इसमें ही किसानों का भला है।

कल हुई मुलाकात के बाद एक फिर पश्चिम बंगाल में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का जिक्र किया है। युद्धवीर सिंह ने कहा कि वह दीदी से राज्य में फलों, सब्जियों और दुग्ध उत्पादों के लिए एमएसपी तय करने की मांग चाहते हैं। ताकि यह बाकी जगहों में मॉडल की तरह काम करे।

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय किसान यूनियन के बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों से मुलाकात कर उन्हें एमएसपी के बारे में बताया साथ ही भाजपा को वोट न करने की अपील की। इस दौरान पश्चिम  बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों को खेती और उससे जुड़े मुद्दों के बारे में बताने के साथ-साथ दिल्ली में बैठे किसानों का समर्थन करने की अपील की। इस दौरान सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी चुनावी रैलियों के दौरान केंद्र सरकार पर लगातार इन मुद्दों पर जमकर प्रहार किया।

सातवें चरण में चुनाव से पहले आसनसोल आई मुख्यमंत्री ने तीन कृषि कानूनों और प्राइवेटाइजेशन का जिक्र किया। साथ ही लोगों को चेताया कि अगर वह अपने और अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित बनाना चाहते है तो भाजपा को वोट न करें। लेकिन सोचनी वाली बात है जिस प्रदेश की मुख्यमंत्री लगातार कृषि कानूनों के मामले में केंद्र सरकार पर हमला कर रही है। वहां के किसानों का हाल बुरा है।

पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रदेश में धान, दलहन, आलू, चाय मुख्य रुप से उपजाया जाता है। यहां तीन सीजन में धान की खेती होती है, जो क्रमश: आउस, अमन बोरो है। धान की पैदावार के हिसाब से खरीफ के सीजन में साल 2019-2020 में पूरे देश में पश्चिम बंगाल में दूसरे नंबर पर है। इतनी पैदावार के बाद भी किसानों ने 1350 रुपए में व्यवसायी को बेचने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के पत्रकार का कहना है कि यहां धान सरकारी दफ्तरों में ही बेचा जाता है। बाकी बचा हुआ व्यवसायियों को बेचा जाता है। उत्तर बंगाल के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो पूरे राज्य में पूरे सालभर चावल की खेती होती है। लेकिन इसके बाद भी किसान इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल की किसान लाभ के मामले में पांचवे स्थान पर है।

आंकड़ों के अनुसार राज्य मे 73 लाख से ज्यादा किसान है। जिसके अनुसार चार में से तीन व्यक्ति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से कृषि से जुड़ें हुए हैं। आलू की खेती के मामले में पश्चिम बंगाल भारत का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। राज्य में आलू का उत्पादन 11,591,30 टन प्रतिवर्ष है। देश के अन्य हिस्सों में यहां से आलू को निर्यात किया जाता है। अब ऐसे में देखने वाली बात है पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर हो रही खेती में धान के अलावा अन्य चीजों में किसानों को एमएसपी का लाभ मिल पाएगा।

(आसनसोल से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

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